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शनिवार, 14 जनवरी 2012

जिंदगी यूँ ही गुजर रही है ,
और अँधेरा थम नहीं रहा,
दूरियों  को मिटाना आसान था कभी ,
अब दूर तलक शमशान है ...
खामोश थे हम बेवजह कभी,
अब वो खामोश हो गए |
वजह कुछ  खास थी उनकी .....
बताना बहुत कुछ था
जुबान भी सही सलामत थी मेरी |
पर उनके कान निर्जीव पड़े थे ........
दबे पावों लौट आया एक अनकही कहानी बनकर ...
अब अलविदा भी कहना बेईमानी लगता है |




कवि परिचय:
विकास कुमार
केमिकल इंजिनियर
गुजरात 

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