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गुरुवार, 9 नवंबर 2023

दीपावली पर भेंटआई 

एक सदाबहार मिठाई ?


बड़े प्रेम से और हर्ष से दीपावली मनाई जाती 

इष्ट मित्र रिश्तेदारों से,बहुत मिठाई है आ जाती 

रसगुल्ला ,मिठाई छेने की, दो दिन में निपटा देते हम

 क्योंकि अगर जो हुई पुरानी ,उन में आ जाता खट्टापन 

भले जलेबी हो या इमरती ,अच्छी लगती गरम-गरम है 

गाजर हलवा गरम सुहाता ,जब होता ठंडा मौसम है 

काजू कतली थोड़े दिन में, चिपचिप करती नहीं सुहाती 

और सभी रस भरी मिठाई ,कुछ दिन में

सूखी पड़ जाती 

सब मिठाईयां होती बासी ,कुछ दिन में ढल जाए जवानी 

केवल एक मिठाई ऐसी, जिसका नहीं कोई भी सानी 

वह चिरयुवा ,स्वाद और सुंदर ,मुंह में रखो पिघल जाती है 

पीतवर्ण,मनभावन ,प्यारी , सोहनपपड़ी कहलाती है 

उसका लंबा टिकने वाला , यौवन ही उसका दुश्मन है 

इस दिवाली भेंट मिली तो अगली तक निपटाते हम हैं

सबसे सुंदर स्वाद स्वदेशी ,यह मिष्ठान बड़ा प्यारा है 

कभी प्रेम से खा कर देखो इसका स्वाद बड़ा न्यारा है 

चॉकलेट से ज्यादा प्यारी ,पर लोगों नाम धर दिया 

इसके स्वस्थ दीर्घ जीवन ने,है इसको बदनाम कर दिया 

सोहनपपड़ी भेंट मिले तो, सुनो दोस्तों डब्बा खोलो 

उसका प्यारा स्वाद चखो तुम ,अपने मुंह में अमृत घोलो 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 1 नवंबर 2023

एक शेर : हो गया ढेर


हां मैं  कभी शेर था 

सब पर सवा सेर था 

रौबीला ,जोशीला ,जवानी से भरपूर था अपनी ताकत के नशे में चूर था 

गर्व से दहाड़ा करता था 

हर कोई मुझसे  डरता था 

फिर एक दिन में एक चंचल हिरणिया 

के चक्कर में पड़ गया 

उसके प्यार का भूत मेरे सर पर चढ़ गया मैं उसकी प्यारी आंखों का हो गया दीवाना वह बन गई मेरी जाने जाना 

मुझे उस हो गया उससे प्यार 

उसकी अदाओं ने ,कर लिया मेरा शिकार 

मेरा सारा शेरत्व हो गया गुम 

मैं उसके आगे हिलाने लगा दुम 


और फिर जब पड़ा गृहस्थी का बोझ 

मैं नौकरी पर जाने लगा रोज 

पर वहां मेरा बॉस था एक गधा 

मुझ पर रौब डालता था  था सदा 

कई बार गुस्सा तो इतना आता था कि  झपट्टा मार कर उसे खा जाऊं 

पर मैं उसका मातहत था ,

उसके आगे करता था म्याऊं म्याऊं 

हालत में मुझे कहां से कहां ला दिया था एक शेर को बिल्ली बना दिया था 


फिर मेरे घर जन्मे दो प्यारे बच्चे

कोमल मुलायम खरगोश की तरह अच्छेे

वे मेरे मन को बहुत भाते थे 

मेरे साथ खेलते थे ,

कभी गोदी में कभी सर पर चढ़ जाते थे 

मैं उनको पीठ पर बिठा कर घुमाता था अपने प्यारे प्यारे खरगोशों के लिए 

मैं घोड़ा बन जाता था 


फिर एक दिन में हो गया रिटायर 

और धीरे धीरे बन गया एकदम कायर

मेरे अंदर का बचा कुछ शेर 

धीरे-धीरे हो गया ढेर

हर शहर का शायद यही होता हैअंत 

कि बुढ़ापे में वह बन जाता है संत 


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

तुमको हमारी उम्र लग जाए 

मेरी पत्नी हर साल करवा चौथ का व्रत करती है 
मुझसे प्यार करने का दम भरती है 
दिन भर भूखी प्यासी रहकर 
प्रार्थना करती है कि हे ईश्वर 
मेरा सुहाग रहे अजर अमर 
उसको लग जाए मेरी उमर 

भगवान ने उसकी सुन ली है,
उसके भाग्य जग गए हैं 
उसकी उम्र के दस साल 
मुझे लग गए हैं 

मैं अपनी उम्र से बड़ा दिखता 
हूं दस साल
और वह अपनी उम्र से छोटी दिखती है दस साल 
ये है करवा चौथ व्रत का कमाल
क्योंकि शादी के समय मेरी उम्र थी पच्चीस 
उसकी उम्र थी बीस
और शादी के बीस साल बाद ,
उम्र के मामले में ,
मैं उसके सामने नहीं टिकता हूं 
वह खुद को तीस साल का बताती है 
और मैं पचपन का दिखता हूं 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

जाकी रही भावना जैसी 

एक मूरत पत्थर की 
मैंने भी देखी, तुमने भी देखी 
मैंने उसमें ईश्वर देखा 
तुमने उसमें पत्थर देखा 
मैंने उसमें दिखाई श्रद्धा और विश्वास तुमने उड़ाया उसका उपहास 
तुम्हारा मखौल
नहीं कर सका मुझे डांवाडोल 
मेरी आस्तिकता बनी रही 
तुम्हारी नास्तिकता से डरी नहीं 
मेरी आस्था और निष्ठा
ने की उसमें प्राण प्रतिष्ठा 
तुम्हारी आलोचना और अविश्वास 
दिखाता रहा नास्तिकता का अहसास 
मैंने पूरी आस्था के साथ
उसे चेतन समझा तो वह चैतन्य हो गया उसने मेरी मनोकामना पूर्ण की 
मैं धन्य हो गया 
तुम पत्थर को अपनी तार्किक बुद्धि के साथ जड़ ही समझते रहे
तुममें नम्रता नहीं आई
और तुम जड़ के जड़ ही रहे
उस पत्थर ने जिसे मैने इश्वर समझा था
उसने इश्वर बन मेरा उपकार किया
और उसने जिसे तुमने पत्थर समझा था
तुम्हारे संग पत्थर सा व्यवहार किया
जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बच्चों का जीविका पथ 


तुम थे पहले दाल चने की ,

हमने बना दिया है बेसन 

मीठे या नमकीन बनोगे ,

इसका निर्णय अब लोगे तुम


गाठिया,सेव ,फाफड़े बनकर 

चाहोगे तुम स्वाद लुटाना 

या कि ढोकले और खांडवी 

गरम पकोड़े से बन जाना 


मीठा मोहन थाल बनो तो 

गरम आंच में तपना होगा 

मोतीचूर अगर बनना है ,

पहले बूंदी बनना होगा 


बेसन के लड्डू बन कर के 

प्रभु प्रसाद बनना चाहोगे 

या फिर कढ़ी, बेसनी रोटी 

या चीला बन सुख पाओगे 


बन सकते हो छप्पन व्यंजन 

सबका होगा स्वाद सुहाना 

रूप कोई सा भी ले लेना ,

लेकिन सबके मन तुम भाना 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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