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मंगलवार, 8 सितंबर 2020

यश के बस

ज्योतिष को  थी कुंडली,दिखलाई एक बार
उसने बोला  भाग्य में ,है यश की भरमार
है यश की भरमार , मिलेगी यश से सिद्धी
घर में शांति रहेगी , होगी पद  की   वृद्धी
फंसे उमर भर 'घोटू' यस के  चक्कर में हम
यस सर यस सर दफ्तर में ,घर में यस मेडम

घोटू 

रविवार, 6 सितंबर 2020

गुरुघंटालों के प्रति -शिक्षकदिवस पर

मैंने गुरु से सीखा जितना ,उतना गुरुघंटालों से
ढाई घर चलनेवाली ,उनकी शतरंजी चालों से

जीवनपथ पर जब निकला मैं ,था सीधासादा सच्चा  
पर लोगों को चुभता था यह,मैं क्यों हूँ इतना अच्छा
बार बार थे मुझे सताते राहों में अटका रोड़ा
ठोकर खा ,रोड़ों से बचना ,सीखा मैं थोड़ा थोड़ा
जब भी उनने,मुझे फंसाने,उलटी सीधी चाल चली
बच बाहर आने को मैंने ,ढूंढी पतली कोई गली
चुगलखोरियाँ ,चमचगिरियाँ,मख्खनबाजी ,मक्कारी
अपना स्वार्थ साधनेवाली ,चालबाजियां वो सारी
चाल शकुनि मामा जैसी,चलना फेंक गलत पासे
भ्र्ष्ट करे सबकी बुद्धि वह ,सीखा मंत्र ,मंथरा से
कब दे ढील ,खींचना डोरी ,और पतंग काट देना
भाई भाई के बीच दीवारें ,करके खड़ी ,बाँट देना
जितने गुरुघंटाल मिले ,थे इन खेलों में पारंगत
दावपेंच कुछ सीखा गयी ,हमको उनकी थोड़ी संगत
इन उलटी सीधी चालों का ,ज्ञान बहुत आवश्यक था
वरना उनके चक्रव्यूह से ,कोई भी ना बच सकता
सदगुरु ने था ज्ञान सिखाया ,अच्छी अच्छी शिक्षा दी
पर जीवन में कई बार जब आयी घडी परीक्षा की
सीधी ऊँगली ,घी ना निकला ,टेढ़ी की ,तब सका निकल
गुरुघंटालों की शिक्षा ने ,रस्ता मेरा ,किया सरल
सच का रस्ता ,अच्छा होता ,मगर बात ये भी सच्ची
अगर किसी का भला कर सके ,कभी झूंठ भी है अच्छी
टेढ़ा ज्ञान ,काम में ला ,मैं  निकला हूँ जंजालों से
मैंने गुरु से जितना सीखा ,उतना गुरुघंटालों से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 2 सितंबर 2020

प्यार की बरसात

जबसे मेरी मसें भीगी ,
मेरे मन में प्यार के कीड़े कुलबुलाने लगे
सारे हसीं चेहरे ,मेरा मन लुभाने लगे
यौवन की ऊष्मा में ,जब मन तपता था
तो हृदय के सागर में ,
मोहब्बत का मानसूनी बादल उठता था
ये आवारा बादल ,किसी हसीना को देख के
कभी गरज कर छेड़खानी करते ,
कभी आँख मारते ,तड़ित रेख से
और कभी कभी छींटाकशी कर ,
अपना मन बहलाते थे
पर बेचारे बरस नहीं पाते थे
भटकते रहते थे ,सही जगह और ,
सही दबाब वाले क्षेत्र की तलाश में
बरसने की आस में
ये होते रहे घनीभूत
और जब तुम्हे देखा ,
तो प्यार से होकर अभिभूत
ये द्रवित हुए और जब तुमसे मुलाकात होगयी
और प्यार की बरसात हो गयी

घोटू 
प्रभु ,ऐसे दिन  कभी  न आये  

ना यारों संग ,बैठक ,गपशप  
मौज और मस्ती ,खाना पीना
ना बीबी के कन्ट्रोल बिन ,
थोड़े घंटे ,खुल कर जीना
ना नित शेविंग ,सजना धजना ,
प्रेस वस्त्र में ऑफिस जाना
दिन भर यससर यससर सुनना ,
आता है वो याद जमाना
इस कोरोना की दहशत ने ,
कैसे दिन हमको दिखलाये
प्रभु ऐसे दिन कभी  नआये

 घर का काम पड़े खुद करना ,
ना महरी का आना जाना
झाड़ू पोंछा ,गृह कार्यों में ,
पत्नीजी का हाथ  बटाना
बरमूडा ,टी शर्ट पहन कर ,
दिन भर रहना घर में घुस कर
कब तक अपना वक़्त गुजारें ,
टी वी चैनल ,बदल बदल कर
दिन भर पड़े  रहें बिस्तर में ,
हरदम अलसाये अलसाये
प्रभु ऐसे दिन कभी  न आये

सबके मुंह पर बंधी पट्टियाँ ,
तुम उनको पहचान न पाओ
होटल में जाकर न खा सको ,
बाहर से कुछ ना मंगवाओ
जली कटी खानी भी पड़ती ,
जली कटी सुननी भी पड़ती
कुछ बोलो तो झगड़ा होता ,
बात बात में बात बिगड़ती
अपनों से तुम मिल ना पाओ ,
दो गज दूरी रहो बनाये
प्रभु ,ऐसे दिन कभी न आये

कोई अपना जो बीमार हो,
 हाल पूछने तुम न जा सको
मिलने वालों की शादी में
शिरकत कर दावत न खा सको
कोई बर्थडे कोई उत्सव ,
मना न पाओ ,हंसकर गाकर  
नहीं किसी की शवयात्रा में ,
दुःख अपना दिखलाओ जाकर
आपस में बढ़ गयी दूरियां ,
अपने ज्यों हो गए पराये
प्रभु ,ऐसे दिन कभी न आये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
यूं जीना आसान नहीं है

कटा उन्यासी वर्षों जीवन
कभी ख़ुशी थी और कभी गम
देख लिए सारे ही मौसम
बाकी दिन भी कटे ख़ुशी से ,
             अब मन में अरमान यही है
संग उमर के लगी बिमारी
वृद्धावस्था की लाचारी
रोज दवा की मारामारी
ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
             यूं जीना आसान नहीं है
ठुकरा दूँ सारे  आमंत्रण
खानपान पर रखूँ नियंत्रण
फिर जीवन में क्या आकर्षण
मन को हरदम रहो मसोसे ,
            होठों पर मुस्कान नहीं है
बार बार कहता है ये मन
बचा हुआ थोड़ा सा जीवन
मनमरजी से क्यों न जियें हम
जब तक जीवन मज़ा उठायें ,
          मन पर कोई लगाम नहीं है
दिवस मौत का अगर मुक़र्रर
तो फिर हम क्यों जियें डर कर
जीवन का सुख लूटें जी भर
तरस तरस कर भी क्या जीना ,
             जिन्दा है पर जान नहीं है
रचे प्रभु ने सुख के साधन
मीठा और चटपटा भोजन
कर उपयोग मज़ा पाएं हम
तिरस्कार उन सबका करना ,
          क्या प्रभु का अपमान नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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