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गुरुवार, 13 जून 2019

एक लड़की  को देखा तो ऐसा लगा

कल मैंने फिर एक लड़की देखी
पचास साल के अंतराल के बाद
मुझे है याद
पहली ल ड़की तब देखी थी जब मुझे करनी थी शादी
ढूंढ रहा था एक कन्या सीधी सादी
मैं उसके घर गया
मेरे लिए ये अनुभव था नया
वैसे तो कॉलेज के जमाने में खूब लड़कियों को छेड़ा था
काफी किया बखेड़ा था
पर उस दिन की बात अलग थी इतनी
मैं ढूंढ रहा था अपने  लिए एक पत्नी
थोड़ी देर में ,
हाथ में एक ट्रे में  चाय के कप लिए ,
वो शरमाती हुई आई
थोड़ी डगमगाती हुई आई
चाय के कप आपस में टकरा कर छलक रहे थे
उसके मुंह पर घबराहट के भाव झलक रहे थे
थोड़ी देर में वो सेटल हुई और चाय का कप मेरी ओर बढ़ाया
मैं भी शरमाया,सकुचाया और मुस्काया
फिर चाय का कप होठों से लगाया  
तो उसकी मम्मी ने फ़रमाया
चाय बेबी ने है खुद बनाई ,
आपको पसंद आई
बेसन की बर्फी लीजिये बेबी ने ही बनाया है
इसके हाथों में स्वाद का जादू समाया है
मैंने लड़की से पूछा और क्या क्या बना लेती हो ,
लड़की घबरा गयी ,भोली थी
बोली कृपया क्षमा करना ,मम्मी झूंठ बोली थी
मम्मी ने कहा था की लड़का अगर पूछे किसने बनाया ,
तुम झूंठ बोल देना ,पर मेरा मन झूंठ नहीं बोल पाता
पर सच ये है कि किचन का काम मुझे ज्यादा नहीं आता
ये चाय मैंने नहीं बनाई है
और बर्फी भी बाजार से आई है
उसकी इस सादगी और सच्चाई पर मैं रीझ गया
प्रेम के रस भीज गया
उसकी ये अदा ,मेरा मन चुरा गयी
और  वो मेरे मन भा  गयी
और एक दिन वो मेरी बीबी बन कर आ गयी
बाद में पता लगा कि ये सच और झूंठ का खेल ,
सोचा समझा प्लान था
जिस पर मैं हुआ कुर्बान था
जिसने लड़की की कमजोरी को खूबसूरती से टाल दिया
और उस पर सादगी का पर्दा डाल दिया
पचास वर्षों के बाद  ,
मैं अपने बेटे के लिए लड़की देखने गया था कल
मिलने की जगह उसका घर नहीं ,
थी एक पांच सितारा होटल
न लड़की डगमगाती हुई हाथ में चाय की ट्रे लाइ
न शरमाई
बल्कि आर्डर देकर वेटर से कोल्ड कोफ़ी मंगवाई
अब मेरा कॉफी किसने बनाई पूछना बेकार था
पर मैं उसके कुकिंग ज्ञान को जानने को बेकरार था  
जैसे तैसे मैंने खानपान की बात चलाई पर
इस फील्ड के ज्ञान में भी वो मुझसे भारी थी
उसे 'मेग्गी' से लेकर 'स्विग्गी' की पूरी जानकारी थी  
फिर मैंने ऐसे मौको पर पूछे जानेवाला,
 सदियों पुराना प्रश्न दागा
क्या तुम पापड़ सेक सकती हो जबाब माँगा
उसने बिना हिचकिचाये ये स्पष्ट किया
वो जॉब करती है और प्रोफेशनल लाइफ के दरमियाँ
बेलने पड़ते है कितने ही पापड़
तभी पा सकते हो तरक्की की सीढ़ी चढ़
जब ये पापड़ बेलने की स्टेज निकल जायेगी
पापड़ सेकने की नौबत तो तब ही आएगी
जबाब था जबरजस्त
मैं हो गया पस्त
मैंने टॉपिक बदलते हुए पूछा 'तुम्हारी हॉबी '
उसने अपने माँ बाप की तरफ देखा
और उत्तर फेंका
मैं किसी को भी अपने पर हॉबी नहीं होने देती हूँ
घर में सब पर मैं ही हाबी रहती हूँ
और शादी के बाद ये तो वक़्त बताएगा
कौन किस पर कितना हॉबी रह पायेगा
हमने कहा हॉबी से हमारा मतलब तुम्हारे शौक से है
वो बोली शौक तो थोक से है
देश विदेश घूमना ,लॉन्ग ड्राइव पर जाना
मालों में शॉपिंग ,होटलों  में खाना
सारे शौक रईसी है
उनकी लिस्ट लंबी है
हमने कहा इतने ही काफी है
इसके पहले कि मैं कुछ और पूछता ,
उसने एक प्रश्न मुझ पर दागा
और मेरा जबाब माँगा
आप अपने बेटे बहू के साथ रहेंगे
या उन्हें अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने देंगे
और बात बात में उनकी लाइफ में इंटरफियर करेंगे
ये प्रश्न मेरे दिमाग में इसलिए आया है
क्योंकि मुझे देखने जिसे शादी करनी है वो नहीं आया है
आपको भिजवाया है
प्रश्न सुन कर मैं सकपकाया
क्या उत्तर दूँ ,समझ में नहीं आया
मैंने कहा ये सोच नाहक है
हर एक को स्वतंत्रता से जीने का हक़ है
हम भला बच्चों की जिंदगी में टांग क्यों अड़ायेगे
अपने अपने घर में अपनी अपनी मल्हार जाएंगे
हम भी अपनी आजादी और सुख देखेंगे
और किसी को अपने पर हॉबी नहीं होने देंगे
वो तो उत्सुकता वश हम तु म्हे देखने आ गए ,
वर्ना अंतिम निर्णय तो हमारा बेटा ही ले पायेगा
जो किसी के साथ अपना घर बसाएगा
खैर हम लड़की देख कर
आ गए अपने घर
लड़की तब भी देखी  थी
लड़की अब भी देखी है
पर पचास साल बाद आया है इतना अंतर
पहले लड़कियां लूटती थी भोली बन कर
आजकल लूटती है तन कर
पहले शादी के बाद अपनी चलाती थी
अब शादी के पहले से अपनी  चलाती है
क्योंकि खुद नौकरी करती है ,कमाती खाती है
इसलिए खुद को 'इंडिपेंडेंट 'समझती है
अपनी मन मर्जी से चलती है
सकुचाने शरमाने का फैशन हो गया है ओल्ड
आज की लड़कियां हो गयी है बोल्ड
उनका अहम् प्रबल हो गया है
उनका 'आई ' केपिटल ' हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

बुधवार, 12 जून 2019


                              पत्नी अष्टक  

 ब्याह समय सही लक्ष लियो और फूल को हार गले मोरे डारो
तबसे बंध्यो ,बंधुवा मजदूर सो ,पत्नी इशारों पे  नाचूँ  बिचारो
ऐसो वो पहनयो  है हार गले ,कभी जीत न पायो ,सदा मैं हारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि,संकट दायिनी  नाम  तिहारो -१
हाथ में हाथ मिलाय पुरोहित ,बांध्यो है  बंधन ,ऐसो  हमारो
कोशिश लाख करी पर कबहुँ भी ,भाग नहीं मैं पायो बिचारो  
भाग्य लिखी है जो भाग्यविधाता ने ,मान  वो ही सौभाग्य हमारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि  संकटदायिनी  नाम  तिहारो -२
मंत्र  पढाय कराय के पंडित ,पावन यज्ञ  को  फेरा थो  डारो
हर फेरन संग ,एक वचन दई ,सात वचन  पत्नी संग  हारो
फेर में फेरन के ऐसो ,फस्यो फिर ,शादीशुदा भयो ,रह्यो न कंवारों
को नहीं जानत  जग में भामिनि ,संकट दायिनी नाम  तिहारो -३
लछमी  बन करती छम छम तुम आई प्रसन्न हुयो घर सारो
नैनन से, मृदु बैनन से अरु अधरन से इहि  जादू सो डारो
रूप के जाल में ,ऐसो मैं उलझयो कि निकल न पायो ,वासना मारो
को नहीं जानत  जग में  भामिनि, संकट दायिनी  नाम  तिहारो -४
चार दिनन की रही मस्ती फिर ऐसो गृहस्थी  को बंधन  डारो
कोल्हू को बैल बन्यो दिन भर फिर ,काम में उलझ्यो रहुँ मैं बिचारो
मै दिन रेन ,करूँ विनती प्रभु ,लौटा दो फिर से तुम चैन हमारो
को नहीं जानत है जग में भामिनि , संकट दायिनी नाम  तिहारो -५
नाच नचाय ईशारन पर नित  ,रोज मैं  नाच नाच प्रभु  हारो
देवी की सेवा करूं इतनी सब ,देवीदास कह ,मोहे  पुकारो
स्वर्णाभूषण भेंट करूं जब ,तब ही लगूं ,उनके मन प्यारो
को नहीं जानत, जग में भामिनि , संकट दायिनी  नाम  तिहारो -६
कौन कला तुम्हे आये रमापति ,कौन सो जादू  रमा पर डारो    
शेष की शैया पे आप बिराजो ,लक्ष्मीजी पाँव दबाय  तुम्हारो
वो ही कला प्रभु मोहे सिखला दो ,मानूंगा मैं उपकार हजारों
को नहीं जानत , जग में भामिनि , संकट दायिनी नाम  तिहारो -७
काज कियो बड़ देवन के तुम ,हे हनुमान ,मोहे भी उबारो
शादी के फेरे में आप फंसे नाही ,तबही रह्यो वर्चस्व तुम्हारो
त्रिया त्रसित प्रभु दास तुम्हारो ,पत्नी को अब स्वभाव  सुधारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि, संकट दायिनी नाम  तुम्हारो -८
                       दोहा
      स्वर्ण देह ,जादू बसे ,नैनन में भरपूर
     कृपा करो पत्नी प्रिया ,रहे न मद में चूर

घोटू

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

बस्ती की एक सुबह

 
 

कबूतरों की बस्ती की एक सुबह

पौ फटी
कबूतरों की बस्ती में हलचल मची
एक बूढी कबूतरनी ने ,
अपने पंखों को फड़फड़ाया
और पास में सोये अपने कबूतर को जगाया
बोली जागो प्रीतम प्यारे
मोर्निग उड़ान पर निकल चुके है दोस्त तुम्हारे
तुम्हे भी व्यायाम के लिए जाना है
विटामिन डी की कमी को दूर करने ,
थोड़ी देर धूप भी खाना है
आलस में डूबा कबूतर जब कुछ न बोला
तो कबूतरनी ने उसे झिंझोड़ा
बोली उठो ,इस बुढ़ापे में हमें ही ,
अपनी सेहत का ध्यान खुद ही रखना पडेगा
दूसरा कोई ख्याल नहीं रखेगा
क्योंकि बच्चे तो अपना अपना नीड़ बसा
हो गए है हमसे अलग
मुश्किल से ही हमें पूछते है अब
आप उधर व्यायाम करके आओ,
इधर मैं कुछ दाना चुग कर आती हूँ
आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाती हूँ
और सुनो तुम दो दिन से नहाये नहीं हो
आते समय स्विंमिंगपूल में पंख फड़फड़ा कर आ जाना
और किसी अन्य कबूतरी से नैन मत लड़ाना
एक बात और याद रखना
कुछ लोगो ने मंदिर के आसपास ,
बाजरे के दाने बिखरा रखे है ,उन्हें मत चखना
इस तरह दाने बिखरा कर ,
ये लोग सोचते है कि वो पुण्य कमा रहे है
पर दर असल वो हमारी कौम को ,
आलसी और निकम्मा बना रहे है
सुन कर के उनका वार्तालाप
पड़ोस के घोसले में 'लिविंग इन रिलेशनशिप 'में
रहनेवाला एक जवान कबूतर का जोड़ा गया जाग
कबूतरनी ने ली अंगड़ाई
'गुडमॉर्निंग किस' के लिए ,
कबूतर की चोंच से चोंच मिलाई
वो मुस्कराई और बोली डार्लिंग आपका क्या प्रोग्राम है
कहाँ गुजारनी आज की शाम है
कबूतर बोला आज मैंने छुट्टी लेली है
दिन भर करना अठखेली है
पहले हम स्वीमिंगपूल के किनारे जायेगे
पूल में तैरती सुंदरियों के दीदार का मज़ा उठाएंगे
बीच बीच में हम भी थोड़ी जलक्रीड़ा करेंगे
चोंचे मिला कर ,रासलीला करेंगे
और फिर उस चौथी मंजिल वाली बालकनी को
अपनी इश्कगाह बनाएंगे
गुटरगूँ कर पंख फैलाएंगे
हंसी ख़ुशी दिन गुजारेंगे और फिर
अपने घोंसले में लौट आएंगे
पता नहीं क्यों लोग इतने संगदिल होते जारहे है
जो हमारी इश्कगाहों याने अपनी बालकनियों पर ,
जाली लगवा रहे है
वो लोग कभी जिनके प्रेमसन्देशे हम लेकर जाते थे
कबूतर जा जा के गाने गाते थे
आजकल वो ही गए है बन
हमारे प्यार के दुश्मन
बड़ी मुश्किल से कहीं कहीं मिलता है ठिकाना
वरना तड़फता ही रहता ये दिल दीवाना
कबूतरनी बोली छोडोजी ,
जब तक जवानी है ,मौज मना लें
थोड़ा सा हंस लें ,थोड़ा मुस्करालें
वरना फिर तो वो ही दूसरे कबूतरों की तरह ,
रोज रोज दाना चुगने ,दूर दूर जाना पड़ेगा
गृहस्थी की गाडी चलना पड़ेगा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 नमो मोदी ,नमो मोदी 

बहन कूदी ,जुटे जीजा ,मगर ना गेम वन पाया
भीड़ उमड़ीसभाओं में ,मगर ना प्रेम बन पाया 
घूम कर गाँव गलियों में बहुत चीख़ा और चिल्लाया 
बहुत कोशिश की पप्पू नहीं पी.एम.बन पाया 
बुढ़ापे में दुखी होकर ,बिचारी मम्मीजी रो दी 
बहुत हमको सताता तू ,अरे मोदी अरे मोदी 

सभी हथकंडे अपनाये,तरीक़ा जो भी था सूझा 
जनेउ पहन करके मंदिरोंमें जा जाकर करी पूजा 
बताया जो भी गुर्गों ने ,वो सारे नुस्ख़े अपनाये,
मैं बोला मुँह से जो निकला,नहीं समझा नहीं बूझा 
उगेगी जब तो देखेंगे ,फ़सल वादों की यूँ बो दी 
बहुत ही नाच नचवाए,अरे मोदी ,अरे मोदी 

देख कर शेर का रूदबा,सभी सहमे ,मचा क्रंदन 
लोमड़ी और सियारों ने ,बनाया मिल के गठबंधन 
दिया करते थे इक दूजे को जो जमकर सदा गाली ,
लगा अस्तित्व ख़तरे में ,बन गये दोस्त सब दुश्मन 
चलाया पप्पू ने चप्पू ,मगर नैया  ही डूबो दी 
गूँज है शेर बब्बर की ,हर तरफ़ मोदी ही मोदी 

अब तलक देश को लूटा ,सम्पदा का किया दोहन 
ले के रिमोट हाथों में,नचाये ख़ूब मनमोहन
ग़रीबी को मिटाना था ,ग़रीबों को मिटा डाला ,
किये कितने ही घोटाले ,किया जितने बरस शासन
बिठा कर देश का भट्टा,कबर अपनी ही ख़ुद खोदी 
गालियाँ दे रहे है अब ,बुरा मोदी ,बुरा मोदी 

बड़ा है जोश मोदी में ,बहुत बन्दे में है दमख़म 
विदेशों में जा फहराया,हमारे देश का परचम 
न घोटाला ,नहीं चोरी ,स्वच्छता से भरा शासन
नोटबंदी करी इसने ,निकाला कितना कालाधन
बिछाया जाल सड़कों का गेसऔर बिजली सबको दी
नमो मोदी ,नमो मोदी,नमो मोदी ,नमो मोदी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

नमस्ते

मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि क्या आपको मेरा ईमेल मुझे भेजा गया है? अगर हाँ
इसका जवाब दें ताकि हम आगे बढ़ सकें। अगर मुझे पता है कि मुझे वापस मिल जाए तो मैं
इसे फिर से शुरू कर सकते हैं।

समझने के लिए धन्यवाद।

सादर

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