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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

अब बुढ़ापा आ गया है

        अब बुढ़ापा आ गया है

फुदकती थी,चहकती थी ,गौरैया सी जो जवानी ,
                       आजकल वो धीरे धीरे ,लुप्त सी  होने लगी है
प्रभाकर से, प्रखर होकर,चमकते थे ,तेजमय थे ,
                        आई संध्या ,इस तरह से ,चमक अब खोने लगी है
'पियू '  पियू'कह मचलता था पपीहा देख पावस ,
                          इस तरह हो गया बेबस ,उड़ भी अब पाता नहीं है
भ्रमर मन,रस का पिपासु ,इस तरह बन गया साधु ,
                           देखता खिलती कली  को,मगर मंडराता  नहीं है
इस तरह हालात क्यों है ,शिथिल सा ये गात क्यों है ,
                            चाहता मन ,कर न पाता ,हुई इसी बात क्या है
देख कर यह परिवर्तन,बड़ा ही बेचैन  था मन,
                             समय ने हँस कर बताया ,अब बुढ़ापा आ गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निद्रा के पंचांग

                 निद्रा के पंचांग
                            १
                         तन्द्रा
     एक तरफ दिल ये कहता है,सोना बहुत जरूरी
     लेकिन एक तरफ होती है ,जगने की मजबूरी
     जागे भी हम,ऊंघें भी हम,झपकी भी है आती
     ऐसी हालत जब होती है ,तन्द्रा है कहलाती
                              २
                          करवट  
       कभी सोचते है ,इधर आयेगी   वो 
        कभी सोचते है ,उधर   आयेगी  वो
        इधर ढूंढते है,उधर  ढूंढते  है
         हम नींद को हर तरफ ढूंढते है
        इन्ही उलझनों में पड़े जब भटकना
       इसको ही कहते है ,करवट बदलना
                               ३ 
                          खर्राटे
        मन में जो भी  दबी हुई , रहती  है  बातें
        कुछ मजबूरी वश जिनको हम कह ना पाते 
        जल्दी जल्दी  बाहर निकले ,जब सो जाते
         समझ में नहीं आते ,बन  जाते है खर्राटे
                               ४
                         सपने
         मन के अन्दर  की दबी हुई भावनायें
        या किस्से ,अनसुने ,अनकहे ,अनचाहे
         छिपा हुआ डर  और अनसुलझी समस्यायें
        अधूरे अरमान  ,सब,सपने बन कर आये
                               ५
                         नींद
          न इधर की खबर है
          न उधर की खबर है
          पड़ी शांत    काया ,
          बड़ी  बेखबर    है
          दबी बंद आँखों में ,
          सपने है रहते 
           रहे शांत तन मन ,
           उसे  नींद  कहते

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
           


रविवार, 28 अप्रैल 2013

मिठाई और घी -खूब खा और खुश होकर जी

        मिठाई और घी -खूब खा और खुश होकर  जी

हमारे डाक्टर साहब ने हमें चेक किया ,
और सलाह दी
खाना बंद करो मख्खन,शक्कर और घी
और मिठाइयाँ ,जैसे गुलाबजामुन और जलेबी
वर्ना हो जायेगी 'ओबेसिटी'
बदन हो जाएगा भारी
और लग जायेगी 'डाइबिटीज 'की बिमारी
हमने कहा'डाक्टर साहब ,
हमें बतलाइये एक बात
हमारे श्री कृष्ण भगवन
बचपन से ही खूब खाते थे ,
दूध,दही,मिश्री और मख्खन
तभी इतनी ताकत आई थी कि ,
उंगली पर उठालिया था गोवर्धन
और किया था कंस का हनन
इतनी गोपियों के संग रचाते थे रास
आठ पटरानियो के ह्रदय में करते थे वास
सोलह हज़ार रानियों के थे पति
अच्छे खासे 'स्लिम' थे,
उन्हें तो कोई बिमारी नहीं लगी
हमारे  गणेशजी भगवान,गजानन कहलाते
जम  कर के खूब मिठाई है  खाते
लड्डू और मोदक का भोग है लगाते
और हर कार्य में पहले है पूजे जाते
तो मख्खन मिश्री खानेवाले कृष्ण भगवान कहाते है
और मोदक प्रेमी गजानन ,अग्र देव बन पूजे जाते है
ये सब मख्खन और मिठाई की महिमा है
और हमें आप कहते है ,ये खाना मना है
हमारा मन तो ये कहता है ,
मख्खन,मिठाई और घी
जी भर के खा ,और खुश होकर जी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिन्दगी

            जिन्दगी

बड़ा सीधा जिंदगी का फलसफा है
वही मिलता ,जो कि किस्मत में लिखा है 
होना है जो भी वो हो कर के रहेगा,
सभी बातें ,पहले से ही तयशुदा है 
जो तुम्हारा है तो तुमको ही मिलेगा ,
नाम उस पर अगर तुम्हारा गुदा है
एक ही माँ बाप की संतान है पर,
किस्मतें हर एक की होती जुदा है
बुरा मत सोचे किसीका ,खुद गिरोगे ,
तुम्हारे भी सामने ,गड्डा खुदा है
अपना अपना लेखा  सब ही भोगते है,
कोई खुश है और कोई गमजदा है
करम कर,उस पर नतीजा छोड़ दे तू,
भाग्य में जो है,वही देता खुदा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरक्की

       तरक्की

भीड़ जबसे ये उमड़ने लग गयी है
सड़क की चोडाई बड़ने लग गयी है
इस तरह इमारतों के उगे  जंगल,
गाँव की सूरत बदलने  लग गयी है 
मुश्किलों से साइकिल आती नज़र थी ,
कई कारें वहां चलने   लग गयी है
जलते थे मिटटी के चूल्हे जिन घरों में ,
अब वहां पर गेस  जलने लग गयी है
तेल के दिये  नहीं अब टिमटिमाते,
ट्यूब लाइट अब चमकने लग गयी है
कभी उपले थापती आती नज़र थी ,
बेटियाँ ,स्कूल पढने लग गयी है
नमस्ते अब हाई ,हल्लो ,हो गया है ,
चिठ्ठियाँ ,ई मेल बनने लग गयी है
 तरक्की ने इस तरह है  पग पसारे ,
सभी की हालत सँवरने  लग गयी है
'घोटू'लेकिन  भाईचारा हो गया गुम ,
बात बस ये मन में खलने लग गयी है
घोटू 

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