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बुधवार, 11 जनवरी 2012

एक थैली के चट्टे बट्टे

एक थैली के चट्टे बट्टे
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बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस
सब दल जनता को भरमाते,
है बदल बदल कर अलग भेष
मन बहलाते इनके वादे,
भाषण लम्बे लम्बे
पर हमने देखा ये सब है,
एक बेल के तुम्बे
सत्ता मिलते ही ये देखा,
सब करते है ऐश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये कर देंगे,वो कर देंगे,
दिखलाते है ख्वाब
रंग बदलने में ये सब है,
गिरगिट के भी बाप
रंग बिरंगी टोपी,झंडे,
रंग बिरंगी ड्रेस
बी जे पी हो या कांग्रेस
सभी बढ़ाते है मंहगाई,
सब चीजों के भाव
एक गली में भों भों करते,
जब होता टकराव
पर खुद का मतलब होने पर,
हो जाते है एक
बी जे पी हो या कांग्रेस
एक थैली के चट्टे बट्टे,
कुछ है नाग,संपोले
इस हमाम में सब नंगे है,
अब किसको क्या बोलें
नेताओं ने लूट लूट कर,
किया खोखला देश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

मुस्कुराहट तेरी



कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |

देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |

जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |

नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |

आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |

पर  "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |

देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |

कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

सोमवार, 9 जनवरी 2012

ये आँखें



कभी अनमोल मोतियों
को गिरा देती हैं |
तो कभी बहुत कुछ 
अपने में छुपा लेती हैं ,
ये आँखें |
   -- " दीप्ति शर्मा "

अब आने वाला चुनाव है


अब आने वाला चुनाव है
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मरे हुए सपनो को फिर से,
जीवन दिलवाने के खातिर
सपनो का संसार दिखा कर,
फिर से बहलाने के खातिर
पांच साल में,एक बार जो,
मिलकर यज्ञ किया जाता है
राजनीती के इस खेले को,
नाम चुनाव दिया जाता है
इक दूजे को 'स्वाह 'स्वाह' कर,
'इदं न मम' की बातें करते
बार बार इस आयोजन में,
मन्त्र न,झूंठे वादे पढ़ते
मन में भर कर भाव कलुषित,
फैलाते ये घना धुंवां  है
मार पीट और खूनखराबा,
अक्सर कितनी बार हुआ है
समिधा बना खरचते पैसा,
आहुति होती धन और बल की
संचित धन हो जाए कई गुना,
इसी मधुर आशा में कल की
बाहुबली, दबंग सभी तो,
सत्ता सुख का सपना पाले
उजले वसन पहन कर दिखते,
बगुला भगत बने ये सारे
पदासीन फिर सत्ता पाने,
एडी चोंटी जोर लगाते
बढ़ा दाम,फिर सस्ता करते,
घटा रहे मंहगाई ,बताते
अच्छा ,भला,बुरा क्या छांटे,
जिसको देखो वो है नंगा
डुबकी सभी लगाना चाहें,
बहती है सत्ता की गंगा
कोशिश टिकिट जाय मिल सबको,
बीबी ,बेटा,साला,भाई
वंशवाद फैले और विकसे,
पांच साल तक करें कमाई
  भ्रष्टाचार  मिटा देंगे हम,
और विकास का वादा करते
सर्व प्रथम खुद का विकास कर,
अपनी अपनी झोली भरते
एक बार मिल जाए सत्ता,
जीवन में आ जाय उजाला
फेंट रहे सब अपने पत्ते,
अब चुनाव है आनेवाला
 
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 8 जनवरी 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में, पूर्ण चन्द्र की रात में, निखार पर है होती ये धवल चाँदनी । मदमस्त सी करती, धरनि का हर कोना, समरुपता फैलाती ये धवल चाँदनी । क्या नदिया, क्या सागर, क्या जड़, क्या मानव, हर एक को नहलाती ये धवल चाँदनी । निछावर सी करती, परहित में ही खुद को, रातों को उज्ज्वल करती ये धवल चाँदनी । प्रकृति की एक देन ये, श्रृंगार ये निशा रानी का, मन "दीप" का हर लेती ये धवल चाँदनी ।

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