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सोमवार, 25 नवंबर 2024

वह बहन हमारी चली गयी

जो सबकी बड़ी दुलारी थी

हम भी बहन की प्यारी थी

धार्मिक थी ,पर उपकारी थी

           वह बहन हमारी चली गयी

थी समझदार,सुलझे विचार

सबके प्रति मन में भरा प्यार

पाये थे अच्छे संस्कार

           वह बहन हमारी चली गयी

जिसने पग पग संघर्ष किया

पूरा जीवन आदर्श जिया

ऊंचे पद पर उत्कर्ष किया

          वह बहन हमारी चली गयी 

जनसेवा का व्रत था मन में

थी भरी हुई ऊर्जा तन में 

थी सदा यशस्वी जीवन में

           वह बहन हमारी चली गयी

सामाजिक जीवन रहा सदा

चेहरा रहता मुस्कान लदा

हो गयी सदा के लिए बिदा

           वह बहन हमारी चली गयी

प्रभु यही प्रार्थना,यही आस 

निज चरणों में दे उसे वास

वो पाये मोक्ष का दिव्य प्रकाश

          वह बहन हमारी चली गयी


मदन मोहन बाहेती घोटू



गुरुवार, 29 अगस्त 2024

मेरी बीबी, मेरी बीबी


मेरी बीबी,मेरी बीबी,

बड़ी ही प्यारी बीबी है 

मैं उसका प्यारा शौहर हूं 

यह मेरी खुशनसीबी है 


बड़ा ही स्वीट है नेचर 

मिलती जुलती है मस्काकर 

सभी की सहायता करने ,

हमेशा रहती है तत्पर 

मुस्काती ,मृदु भाषी ,

बड़ी ही सादी ,सीधी है 

मेरी बीबी ,मेरी बीबी

बड़ी ही प्यारी बीबी है 


सवेरे जब मैं उठता हूं 

तो झट से चाय है हाजिर 

प्लेट में काट करके फल 

खिलाती है वह मुझको फिर 

नहा कर जब निकलता

 नाश्ता तैयार रखती है 

मेरी बीवी मेरी बीवी 

बड़ी ही प्यारी बीवी है 


कभी जब टूट मैं जाता 

मुझे ढाढस बंधाती है 

कभी जब रूठ मैं जाता 

प्यार से वह मनाती है 

मेरे हर दर्द पीड़ा में ,

वो मेरा मेरा ख्याल रखती है 

मेरी बीवी मेरी बीवी 

बड़ी ही प्यारी बीवी है 


मेरे सुख में खुश रहती 

मेरे दुख में वो शामिल है  

प्रार्थना करती है मुझ पर

आए ना कोई भी मुश्किल 

बड़ी कोमल हृदय वाली 

मेरी सबसे करीबी है 

मेरी बीवी मेरी बीवी 

बड़ी ही प्यारी बीवी है 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुढ़ापे का कम्युनिकेशन 


इस बढ़ती हुई उम्र में यूं ,

कम हुआ हमारा कम्युनिकेशन 

कुछ गला हमारा बैठ गया ,

कुछ तुम भी ऊंचा सुनने लगे 


पहले जब भी हम लड़ते थे 

तो बोलचाल बंद हो जाती 

पर अब तो ऐसा लगता है 

हम रोज-रोज ही लड़ने लगे 


इस तरह खत्म है भूख हुई 

एक रोटी में पेट भर जाता 

या तो तुम पकाना भूल गई 

या फिर हम भूल गए खाना 


पहले तुम करती थी  फॉलो

अब हम करते तुमको फॉलो 

तुम कहती इस रस्ते पर चलो 

उसे रास्ते पर पड़ता जाना 


जितना तुम से बन सकता है 

तुम सेवा हमारी करती हो,

बढ़ता जा रहा दिनों दिन है 

हमने और तुममें अपनापन 


 मैं जीता सहारे तुम्हारे 

तुम जीती मेरे सहारे हो

देखो वृद्धावस्था लाई ,

जीवन में कितने परिवर्तन 


एकदूजे का एकदूजे बिन,

अब बिलकुल काम नहीं चलता 

अब प्यार हमारा या झगड़ा 

थमता है इस स्टाइल में 


हम एक दूजे से मुंह फेरे,

इस तरह रूठते रहते हैं,

तुम खुश अपने मोबाइल में 

मैं खुश अपने मोबाइल मे


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 12 अगस्त 2024

बूढ़े बुढ़िया और बुढापा 


देखो बूढ़ा अपनी बुढ़िया ,

को किस तरह सताता है 

काम धाम कुछ भी ना करता,

केवल जुबां हिलाता है 


जब से हुआ रिटायर घर में 

रहता बैठा ठाला है 

दिन में सात आठ बार चाहिए ,

उसे चाय का प्याला है 


थोड़ा बरसाती मौसम हो 

पकौड़ियां तलवाता है 

या स्विग्गी से मंगा समोसे 

चुपके-चुपके खाता है 


कभी चाहिए दही पापड़ी ,

छोला और भटूरा है 

आलू टिक्की, पानी पूरी 

का भी आशिक पूरा है 


गाजर हलवा, गरम जलेबी,

 खाना बहुत सुहाता है 

स्वीट टूथ है देख मिठाई 

मुंह पानी भर लाता है 


हालांकि यह सब खाने की 

लगी हुई पाबंदी है 

फिर भी आंख चुरा खाने की 

उसकी आदत गंदी है 


 सुबह-सुबह अखबार चाटता 

देख सीरियल टीवी में 

दिनभर की मिल गई सेविका 

उसको अपनी बीवी में 


हाथों में हर दम मोबाइल 

व्हाट्सएप पर चैट करें 

देर रात तक रहे जागता 

सोने में भी लेट करें 


कभी बोलना सर दुखता है 

थोड़ा तेल लगा दो तुम 

कभी बोलना दर्द पांव में 

थोड़े पैर दबा दो तुम 


कभी बैठकर बीते किस्से 

दोनों याद किया करते 

हर फंक्शन में ,दोनों सज कर 

खुलकर भाग लिया करते 


बुढ़िया बूढ़े को सहती है 

बूढ़ा बुढ़िया को सहता 

पूरा दिन भर एक दूजे का 

ख्याल हमेशा पर रहता 


कभी रूठना ,कभी झगड़ना

 मान मनौव्वल कभी-कभी 

बहुत अधिक भावुक हो करके 

रोने के पल कभी कभी 


दोनों में से पहले कौन 

जाएगा यह चिंता करना 

कैसे गुजरेगा एकाकी 

जीवन सोच सोच डरना 


कहता  जितना जीवन जीना 

क्यों ना मस्ती मौज करें 

मौत आनी है ,आएगी ही

उससे क्यों हर रोज डरें 


इस जीवन के बचे कुचे दिन 

शान रहे और ठाठ रहे 

इसी तरह मिल बूढ़े बुढ़िया 

वृद्धावस्था काट रहे


मदन मोहन बाहेती घोटू 

 

शनिवार, 10 अगस्त 2024

बूढ़ों की लोरी 


बिस्तर पर लेटें हैं बूढ़ा और बुढ़िया

 इनको सुलाने को आ जा तू निंदिया 


कभी दौरा खांसी का बुढिया को आता  

तो बूढ़ा उठ कर के पानी पिलाता 

कभी दर्द बूढ़े के पैरों में आया

पेनबाम बुढिया ने झट से लगाया 

कभी याद करते पुरानी वो बातें 

लाख जतन करते, सो नहीं पाते 

कैसे भी इनको ,सुला जा तू निंदिया 

इनको सुलाने को आजा तू निंदिया 


बूढ़ा उठ के बार बार बाथरूम जाता 

तकिए को बाहों में अपनी दबाता 

करवट बदलते ही रहते हैं दोनों 

बस ऐसे जगते ही रहते हैं दोनों 

कभी  पाठ हनुमान चालीसा करते 

कभी राम का नाम रह रह के जपते 

इनको भी सपने दिखा जा तू निंदिया इनको सुलाने आ जा तू निंदिया 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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