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रविवार, 6 अगस्त 2023

सच्चा सुख 

ना तो हीरे मोती में है ,ना ही चांदी और सोने में 
सच्चा सुख मिलता, पग पसार, अपने बिस्तर पर सोने में 

चाहे वो कितने थके पके, सारी थकान मिट जाती है 
अपने पलंग पर जब लेटो, तो नींद चैन की आती है 
सब परेशानियां भग जाती , मिटते जीवन के सन्नाटे 
निद्रा देवी की गोदी में ,जब आने लगते खर्राटे 
मन में शांति छा जाती है ,क्या रखा रोने धोने में 
सच्चा सुख मिलता पग पसार,अपने बिस्तर पर सोने में

भरपेट अगर भोजन कर लो , तो तन अलसाने लगता है 
पलके मुंदती,थोड़ा सरूर ,आंखों में छाने लगता है 
हो तकिया नरम सिरहाने में ,चलता हो पंखा या ऐ सी 
तुम स्वप्नलोक में उड़ते हो ,फिर दुनिया की ऐसी तैसी 
वह मजा और ही होता है, मीठे सपनों में खोने में 
सच्चा सुख मिलता पग पसार,अपने बिस्तर पर सोने में

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जो होना है जो होना है 

सुख दुख आते जाते रहते क्या हंसना क्या रोना है 
सब चलता है हरि इच्छा से,जो होना है सो होना है 

अच्छा कभी,कभी दुखदायक, पल-पल भाग्य बदलता है 
जैसा लिखा काल का क्रम है, वैसा ही सब चलता है 
नियति आगे नाचा करता ,मानव बस एक खिलौना है 
सब चलता है हरि इच्छा से,जो होना है सो होना है 

लेकिन यदि हो जो पुरुषार्थ , तुम सकते हो तकदीर बदल 
सत्कर्म करो तो किस्मत की ,जाती है सभी लकीर बदल 
बस थोड़ी हिम्मत रखनी है और धीरज को ना खोना है 
सब चलता है हरि इच्छा से ,जो होना है सो होना है 

मन में थोड़ा विश्वास रखो ,घबराओ मत तुम शांत रहो 
नित नई समस्या आएगी ,उनसे मत तुम आक्रांत रहो 
अपने बूते ,अपने बल से ,तुमको तकदीर संजोना है 
सब चलता है हरि इच्छा से ,जो होना है सो होना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 23 जुलाई 2023

मन की पीर 

जब नींद रात को ना आती 
हम सोते करवट बदल बदल 
बेचैन हुए लेटे रहते 
हैं कभी इधर तो कभी उधर 
इतना छाता एकाकीपन 
सपने भी तो आते है कम 
क्योंकि इतनी ना उमर बची,
उनको पूरा कर पाएं हम 
 दिल लगे पहाड़ों से लंबे 
 मुश्किल से ही कट पाते 
 घबराहट प्रकट नहीं करते,
 हम फिर भी रहते मुस्काते 
 लेकिन इन मुस्कानों पीछे
 है दर्द न दिखता अंदर का 
 लगता विशाल, पी ना पाते 
 खारा जल भरा समुंदर का 
 मन की पीड़ायें छुपी हुई 
 लेने लगती जब अंगड़ाई 
रह रह कर याद हमे आती,
कुछ अपनों की ही रुसवाई 
नयनों में बस जाता सावन 
और झर झर आंसू झरते हैं 
बस इन्हीं परिस्थितियों में हम 
नित जीते हैं ,नित मरते है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जीवन व्यापन 


उमर हमारी ज्यों ज्यों बढ़ती
वैसे जीवन अवधि घटती 
यह अटल नियम है प्रकृति का,
पकती है फसल, तभी कटती 
बचपन , यौवन,वृद्धावस्था 
ये ही तो है जीवन का क्रम 
हंसते गाते, सुख में, दुख में,
जैसे तैसे कटता जीवन 

यह नहीं कदापि आवश्यक 
जीवन पथ कंटक हीन रहे 
बाधाएं सब को ही मिलती,
 कितना ही कोई प्रवीण रहे 
 हो राह अगर जो कंकरीली 
 चलते हैं तो चुभते पत्थर 
 हो राह अगर कीचड़ वाली,
 बढ़ते हैं पांव मगर धस कर 
 चलना पड़ता है संभल संभल 
 लड़ना है मुश्किल से हर क्षण 
 हंसते गाते, सुख में, दुख में 
 जैसे तैसे कटता जीवन 
 
कुछ लोग मौज काटा करते,
 डूबे रहते हैं मस्ती में 
 कुछ की कट जाती उम्र यूं ही 
 उलझे रह करके गृहस्थी में 
 अपना अस्तित्व बचाने को 
 करना पड़ती है मार काट 
 चाहे अनचाहे तत्वों से 
 करनी पड़ती है सांठगांठ 
 रहना पड़ता संघर्षशील ,
  है सरल नहीं जीवन व्यापन 
  हंसते गाते ,सुख में ,दुख में 
  जैसे तैसे कटता जीवन 
  
है प्यार कभी, तकरार कभी 
इंकार कभी , इकरार कभी
तुम बूढ़े हुए ,बदल जाता 
अपनों का भी व्यवहार कभी 
अपने-अपने सब कामों में 
हो जाते अपने सभी व्यस्त 
और तरह तरह के रोग हमें 
करने लगते हैं बहुत त्रस्त
जर्जर होता चंदन सा तन 
और पल-पल विव्हल होता मन 
हंसते गाते ,सुख में ,दुख में ,
जैसे तैसे कटता जीवन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदनसीबी 

जिससे करी थी हमने मोहब्बत थी बेपनाह 
उस बेमुरव्वत में हमें लेकिन किया तबाह 
हमराह मिली ऐसी की गुमराह कर दिया ,
कर नहीं पाई  संग हमारे जरा निभाह
दो-चार दिन में ही हमें गुलाम कर दिया 
मां-बाप को हमारे है गुमनाम कर दिया

घोटू 

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