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सोमवार, 6 मार्च 2023

तेरा आना 

तुम आती तो रजनीगंधा, दिन में भी महकने लगती है 
ठिठुराती सर्द शिशिर में भी, कोकिल सी कुहुकने  लगती है 
एक आग मिलन की गरमी की,मेरे दिल में दहकने लगती है
 दिल मेरा चहकने लगता है ,मेरी चाल बहकने लगती है 
 तेरे आने की आहट से ,मन में छा जाती
  मस्ती है 
  बिजलियां सैंकड़ों गिर जाती,जब तू मुस्कुराती हंसती है 
 तेरी मतवाली चाल देख ,भूचाल सा मन में 
 उठता है 
 ऐसी हो जाती हालत है कि चैन हृदय का
  लुटता है 
  मन करता मेरे आस-पास, तुम बैठो यूं ही नहीं जाओ 
  मैं पियूं रूप रस , घूंट घूंट,तुम प्यार की मदिरा छलकाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दो का ठाठ 

हो अगर अकेला कोई तो, 
मुश्किल से वक्त कटा करता,
पर जब दो मिलकर दोस्त बने,
 तो अच्छी संगत कहते हैं 
 
जब एक आंख मारी जाती,
 तो उसे छेड़खानी कहते ,
 पर जब दो आंखें मिल जाती,
 तो उसे मोहब्बत कहते हैं 
 
हो एक टांग तो फिर उस से ,
आगे ना कदम बढ़ा सकते ,
दो टांगे जब संग चलती है ,
तब कोई आगे बढ़ता है 

एक होंठ अकेला बेचारा,
कुछ काम नहीं कर सकता है ,
दो होंठ मगर जब मिलते हैं,
तब ही चुंबन हो सकता है

हो अगर अकेला एक हाथ ,
तो बस चुटकी बज सकती है ,
दो हाथ मगर जब मिल जाते ,
तो फिर बज जाती ताली है 

इंसान अकेला हो घर में ,
तो काटा करता है सूनापन,
 घर में रौनक छा जाती है ,
 जब आ जाती घरवाली है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नवजीवन

 मैंने नवजीवन पाया है 
 विपदा के बादल ने सूरज को घेरा था 
 सहमी सहमी किरणों ने भी मुंह फेरा था
 क्षण भर को यूं लगा रोशनी लुप्त हो गई,
 आंखों आगे जैसे छाया अंधेरा था 
 पर अपनों की दुआ, हवा बन ऐसी आई,
 धीरे-धीरे से प्रकाश फिर मुस्कुराया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 भूले भटके किए गए कुछ कर्म छिछोरे 
 इस जीवन में या कि पूर्व जनम में मोरे 
 कभी हो गए होंगे जो मुझसे गलती से ,
 मुझे ग्रसित करने को मेरे पीछे दौड़े 
 किंतु पुण्य भी थोड़े बहुत किये ही होंगे ,
 जिनके फलस्वरूप ही यह तम हट पाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 जीवन के सुखदुख क्रम में ,दुख की बारी थी 
 जो यह काल रूप बन आई बीमारी थी 
 हुआ अचेतन तन था ,मन भी था घबराया,
 ऐसा लगता था जाने की तैयारी थी 
 लेकिन करवा चौथ ,कठिन व्रत पत्नी जी का जिसके कारण हुई पुनर्जीवित काया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 शायद तीर्थ भ्रमण, दर्शन ,पूजन ,आराधन 
 या कि बुजुर्गों की आशिषें, आई दवा बन 
 या कि चिकित्सक की भेषज ने असर दिखाया या की हस्तरेखा में शेष बचा था जीवन जाते-जाते शिशिर हुई है फिर बासंती
 मुरझाए फूलों को फिर से महकाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 अब जीवन स्वच्छंद रहा ना पहले जैसा अनुशासन में बंध कर रहना पड़े हमेशा 
 खानपान पर कितने ही प्रतिबंध लग गए,
 खुलकर खाओ पियो ना तो जीवन कैसा 
 जीभ स्वाद की मारी तरस तरस जाती है,
  ऐसा बढ़ी उमर ने उसको तड़फाया है 
  मैंने नवजीवन पाया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

फिसलन

जब मैं जवान था तेज भरा ,
मस्ती में इठलाया करता 
मुड़ जाती नजर हसीनों की ,
जब इधर-उधर जाया करता 
कोई डोरे डाल फसा ना ले,
 मेरी पत्नी जी डरती थी 
 जब भी मैं बाहर जाता था,
 वह मेरे संग ही चलती थी 
 मुझ पर चौकीदारी करती,
 कितनी ,कैसी, क्या बतलाऊं 
 चक्कर में किसी हसीना के ,
 वह डरती , मैं न फिसल जाऊं
 मन डगमग बहुत हुआ ,
 जब भी कोई मौका आया
 पर पत्नी के अनुशासन में ,
 रह कर मैं फिसल नहीं पाया
 
कट गई जवानी ऐसे ही,
क्या याद करूं अगला पिछला 
दिल डगमग डगमग बहुत किया ,
ना तब फिसला, ना अब फिसला
आ गया बुढ़ापा है लेकिन,
तन मेरा है डगमग डगमग 
पत्नी रखती मुझको संभाल,
पल भर भी होती नहीं अलग 
मैं जब भी कभी कहीं जाता ,
वह हाथ थाम कर चलती है 
ठोकर खा फिसल नहीं जाऊं,
 वो मुझे बचा कर रखती है 
 अब वृद्ध हुआ, मैं ना फिसला ,
 बस यूं ही जिंदगी निकल गई 
 फिसलन से रहा सदा बच कर ,
 पर उमर हाथ से फिसल गई

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023



मैं इक्यासी
जन्म दिवस का पर्व मनाते खुशियों से हम 
जब कि बढ़ती उम्र, घट रहा जीवन हर क्षण समझ ना पाते बात जरा सी 
मैं इक्यासी
अब तक जी भरपूर जिंदगी और सुख भोगे दुनिया घूमी, रहा खेलता संग खुशियों के धीरे-धीरे किंतु व्याधियों ने आ घेरा 
क्षीण हुआ तन और उत्साह घट गया मेरा 
जिस चेहरे पर हंसी खिला करती थी हरदम,
 उस पर छाई, आज उदासी 
 मैं इक्यासी
 क्या गुजर रहा है वक्त पड़े रहते बिस्तर पर
  तरह तरह के ख्याल सताते रहते दिन भर 
  वक्त न कटता बैठे ठाले, हुए निकम्मे 
  पहले सी चुस्ती फुर्ती अब बची ना हममें
  मनपसंद सारे भोजन है अब प्रतिबंधित,
  हुई मुसीबत अच्छी खासी 
   मै इक्यासी
  बेटी ,बेटे ,भाई बहन और संबंधी जन 
  पत्नी जिसने साथ निभाया पूरे जीवन
 दोस्त सखा जो सदा सहायता को थे तत्पर
  इन सब का एहसान न भूलूंगा जीवन भर जन्मों-जन्मों मिलता रहे प्यार इन सब का
   इसी खुशी का, हूं अभिलाषी 
   मैं इक्यासी 
   
 डूब रहा है सूरज पर किरणे स्वर्णिम है 
 किंतु हौंसले है बुलंद ,वे हुऐ न कम है 
जब तक तन में सांस ,तब तलक आस बची है मस्ती से जिएंगे ,हम ने कमर कसी है 
अभी ताजगी बसी हुई है इस जीवन में
 बूढ़ा हूं पर हुआ न बासी
 मैं इक्यासी 

मदन मोहन बाहेती घोटू

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