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गुरुवार, 18 अगस्त 2022

तुम काहे को हो घबराती 

तुम मेरे कारण चिंतित हो ,
मुझको तुम्हारी चिंता है ,
फिर से अच्छे दिन आएंगे 
तुम काहे को हो घबराती 
अपने मन को ना समझाती

 हमने  मिल जुल हंसी खुशी से
  सुख-दुख सब जीवन के झेले
  अपनी जोड़ी, जोड़ी प्रभु ने,
   हम तुम जीवन भर के साथी 
   तुम काहे को हो घबराती 
   अपने मन को ना समझाती
   
   संकट कटे ,कम हुई पीड़ा,
    सुख के बादल फिर बरसेंगे 
    हम गाएंगे, मुस्कुराएंगे ,
    फिर खुशियों के फूल खिलेंगे 
    बासंती मौसम आएगा 
    और हवा होगी मुस्काती 
    तुम काहे को हो घबराती
    अपने मन को ना समझाती 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
विचार बिंदु

 हर उदासी के पीछे हंसी,
 और हंसी के पीछे उदासी छिपी रहती है 
 प्यार और निस्वार्थ भाव से चुनी हुई दीवारें मुश्किल से ढहती है 
 अगर कभी कपड़े नहीं पहने होते 
 तो आज नंगे पन का एहसास नहीं होता 
 अगर समझ से रहे होते 
 तो न झगड़ा होता और ना समझौता 
 आज की गई नादानिया,
 कल की परेशानियों की जनक होती है 
 आदमी की बुद्धि फिर जाती है ,
 जब उसमें अहम की सनक होती है

घोटू 
हाल-चाल 

घट गई तोंद,मोटापा कम है 
फिर भैया काहे का गम है 

 तन में जो आई कमजोरी 
 घट जाएगी थोड़ी थोड़ी 
 शनै शनै सुधरेगी सेहत 
 चेहरे पर आएगी रौनक 
 अगर आप परहेज रखेंगे 
 प्राणायाम और योग करेंगे 
 फिर से होगी काया कंचन 
 और प्रफुल्लित होगा तन मन
 
  तुम्हें लगेगा तुममें दम है
  फिर भैया काहे का गम है
  
 भूख बढ़ेगी जमकर खाना 
 होगा जीवन सफर सुहाना 
 और फिर पूरे परिवार संग
 दीप दिवाली, होली के रंग
 हर दिन ही त्योहार मनेंगे 
 और खुशियों के फूल खिलेंगे
  पाओगे नवजीवन प्यारा 
  होगा कायाकल्प तुम्हारा 
  
मस्ती भरा हर एक मौसम है 
तो भैया काहे का गम है

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 17 अगस्त 2022



प्यारऔर डॉक्टर 

प्यार 

मिलने की ललक बढ़ जाती है 
सीने की तड़फ बढ़ जाती है 
जब कोई सुंदर मृगनयनी
दिल चुरा, बढ़ाती बेचैनी 
उस बिन  सब सूना लगता है 
संसार अलूना लगता है 
दिल हो जाता है दीवाना 
जब प्यार हुआ तब यह जाना 

डॉक्टर 

कमजोरी छा जाती तन में 
उत्साह न  रहता जीवन में 
रहने लगता है मन उदास 
चिंताएं रहती आसपास 
तब एक आदमी ,दे भेषज
बंधवाता है मन को ढाढस 
वो डॉक्टर होता देवदूत,
बीमार हुए तब यह जाना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 14 अगस्त 2022

अनोखी दोस्ती

 कैसे मित्र बने हम बहनी 
 मैं शाखामृग ,तू मृग नयनी
 
 मैं प्राणी, बेडोल शकल का
 हूं थोड़ी कमजोर अकल का 
 लंबी पूंछ , मुंह भी काला 
 मैं हूं चंचल पशु निराला 
 मैं तो पुरखा हूं मानव का 
 मेरा भी अपना गौरव था 
 मुख जो देखे सुबह हमारा 
 उसको मिलता नहीं आहारा 
 तेरा सुंदर चर्म मनोहर 
 तीखे नैन बड़े ही सुंदर 
 तू मित्रों के संग विचरती
 हरी घास तू वन में चरती
 तेरे जीवन का क्या कहना 
 मस्त कुलांचे भरते रहना 
 और मैं उछलूं टहनी टहनी 
मैं शाखामृग, तू मृग नयनी

 नहीं समानता हमें थोड़ी 
 कैसे जमी हमारी जोड़ी 
 हम साथी त्रेतायुग वाले 
 रामायण के पात्र निराले
 मैं मारीच, स्वर्ण का मृग बन 
 चुरा ले गया सीता का मन 
 सीता हरण किया रावण ने 
 राम ढूंढते थे वन वन में 
 मैं हनुमान , रूप वानर का 
 मैंने साथ दिया रघुवर का 
 किया युद्ध ,संजीवनी लाया 
 लक्ष्मण जी के प्राण बचाया 
 और गया फिर रावण मारा 
 रामायण में योग हमारा 
 याद कथा ये सबको रहनी 
 मैं शाखामृग, तू मृगनयनी

 मदन मोहन बाहेती घोटू 

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