एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 11 मई 2021

सुनो ,मेरी बात पर गौर करो

 बिके  हुए चैनल के समाचार मत देखो ,
आधी बिमारी ,दहशत कम हो जायेगी ,
पता नहीं कुछ लोग,न जाने किस मतलब से ,
छवि  बिगाड़ने में भारत की तुले हुए है  

अपनी अपनी राजनीति को चमकाने के ,
ढूंढ रहे है अवसर जो इस आफत में भी ,
इनकी कोई बातों पर तुम ध्यान न देना ,
क्योंकि इरादे इनके विष में घुले हुए है

जुते हुए है स्वार्थ साधने में कितने ही
कालाबाज़ारी कर कमाई के चक्कर में है ,
हाथ जोड़ते ये चेहरे शैतान बहुत है ,
नहीं दूध से कोई इनमे धुले हुए है

अपने मन में दबे हुए संवेदन को तुम ,
आज झिझोडो,और जगाओ,सोने मत दो
,देशद्रोहियों के बहकावे में मत आओ ,
ये तो देश को गिरवी रखने तुले हुवे है

शुक्र मनाओ ईश्वर का ,तुम भाग्यवान हो ,
गर्व करो तुमको ऐसा  नेतृत्व मिला है ,
जो निस्स्वार्थ कर रहा भारत महिमामंडन ,
और हौसलें भी बुलंद और खुले हुए है

जरूरत है ये आज ,सावधानी हम बरतें ,
बना दूरियां रखें ,और मुख पट्टी बांधें ,
और बढ़ाएं तन मन की अवरोधकशक्ति ,
प्राणायम के भी विकल्प सब खुले हुए है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 10 मई 2021

आओ कुछ खुशियां बिखरायें
गुमसुम मुरझाये चेहरों पर ,जरा मुस्कराहट फैलाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

बहुत दिन हुए गप्पें मारे अपनों के संग वक़्त गुजारे
घर में ही घुस कर बैठे है ,सबके सब , कोरोना मारे
टी वी देखो,समाचार सुन,उल्टा मन भरता है डर से
रामा जाने ,दूर हटेगी कब ये आफत ,सबके सर से  
कर देती लाचार सभी को ,आती जाती ये विपदाएं
आओ कुछ खुशियां बरसायें

सहमे सहमे दुबके है सब ,उडी हुई चेहरे की रंगत
हर कोई पीड़ित चिंतित है सबके मन में छायी दहशत
गौरैया की तरह हो गयी ,हंसी आज चेहरे से गायब
मार ठहाके ,यार दोस्त संग ,हंसना भूल गए है अब सब
बुझे हुए अंधियारे मन में ,आशा की हम किरण जगाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

किन्तु करेंगे हम ये कैसे ,ना सुनते अब लोग लतीफे
लड्डू,पेड़ा ,गरम जलेबी ,सब पकवान लग रहे फीके
न तो पार्टी ना ही महफ़िल ,ना उत्सव ,त्योंहार मनाना
दो गज दूरी ,मुंह पर पट्टी ,बंद हुआ सब आना जाना
कोई के प्रति ,तो फिर कैसे ,अपने भावों को दर्शाएं
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

इस विपदा में साथ दे रहा है सबका ,अपना मोबाईल
बस उसको सहला ऊँगली से ,लोग लगाते है अपना दिल
तो क्यों न हम मोबाईल पर ,हालचाल अपनों का  जाने
कभी ज़ूम पर मीटिंग करके मिले जुलें ,मन को बहलाने  
देख एक दूजे  की सूरत ,मन में कुछ सुकून  तो आये  
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

मदन मोहन बहती 'घोटू '

   

सोमवार, 3 मई 2021

संडे की सुबह

संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात सेटरडे वाली होती है
अलसाये से और उनींदे ,थके हुए,
तन की मस्ती की बात निराली होती है

पत्नी बाहों में बांह डाल  कर ये बोले ,
देखो कितना दिन चढ़ आया ,उठ जाओ
सच्चा प्यार तुम्हारा तब ही जानूँगी ,
अपने हाथों से चाय बना कर पिलवाओ
अमृत से  ज्यादा स्वाद और मन को भाती ,
तुम्हारी बनी ,चाय की प्याली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है
जब बीती रात  सेटरडे वाली होती है

उत्सव जैसा ये दिन आता है हफ्ते में ,
पूरे दिन आराम ,मस्त खाना ,पीना
ना दफ्तर की फ़िक्र ,काम की ना चिंता ,
मौज और मस्ती से मन माफिक जीना
सन्डे सुबह बिखरते है रंग होली के ,
और सन्डे की रात दिवाली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात ,सेटरडे वाली होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


शादीशुदा मर्द का दुखड़ा

सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने  
थोड़ा खुल कर सांस नहीं मैं ले सकता ,
जीते जी ही मार दिया है बीबी ने

सर पर थे जो बाल ,झड़ गए सेवा में ,
दिनभर उसकी लल्लू चप्पू करता हूँ
मैं कुछ गलती करूं ,मूड उसका बगड़े ,
तने नहीं उसकी भृकुटी ,मैं डरता हूँ
कंवारेपन की मौज मस्तियाँ गायब है ,
ऐसा बंटाधार किया है  बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

शादीशुदा आदमी कैदी हो जाता ,
उमर गुजरती उसकी हाँ जी ,हाँ जी में
बीबी जी नाराज़ कहीं ना हो जाए ,
लगा हुआ रहता है मख्खनबाजी में
निज मरजी का कुछ भी तो ना कर सकता
मुझको यूं लाचार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

करता दिन भर काम ,मोहब्बत का मारा ,
बन गुलाम जोरू का  ,यही हक़ीक़त है
पराधीन ,सपने में भी है सुखी नहीं ,
उसके जीवन में बस आफत ही आफत है
इतना सब कुछ कर भी प्यार अगर माँगा ,
नखरे कर ,इंकार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-