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सोमवार, 3 मई 2021

शादीशुदा मर्द का दुखड़ा

सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने  
थोड़ा खुल कर सांस नहीं मैं ले सकता ,
जीते जी ही मार दिया है बीबी ने

सर पर थे जो बाल ,झड़ गए सेवा में ,
दिनभर उसकी लल्लू चप्पू करता हूँ
मैं कुछ गलती करूं ,मूड उसका बगड़े ,
तने नहीं उसकी भृकुटी ,मैं डरता हूँ
कंवारेपन की मौज मस्तियाँ गायब है ,
ऐसा बंटाधार किया है  बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

शादीशुदा आदमी कैदी हो जाता ,
उमर गुजरती उसकी हाँ जी ,हाँ जी में
बीबी जी नाराज़ कहीं ना हो जाए ,
लगा हुआ रहता है मख्खनबाजी में
निज मरजी का कुछ भी तो ना कर सकता
मुझको यूं लाचार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

करता दिन भर काम ,मोहब्बत का मारा ,
बन गुलाम जोरू का  ,यही हक़ीक़त है
पराधीन ,सपने में भी है सुखी नहीं ,
उसके जीवन में बस आफत ही आफत है
इतना सब कुछ कर भी प्यार अगर माँगा ,
नखरे कर ,इंकार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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