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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

 दिन न रहे

मदमाती मनमोहक ,चंचल ,चितवन वाले दिन न रहे
इठलाते और इतराते वो ,यौवन वाले दिन न रहे
अब तो एक दूजे को सहला अपना मन बहला लेते ,
मस्ती और गर्मजोशी के चुंबन वाले दिन न  रहे
संस्कारों के बंधन में बंध ,दो तन एक जान है हम ,
बाहुपाश में बंधने वाले ,वो बंधन के दिन न रहे
नजदीकी का सबसे ज्यादा ,वक़्त बुढ़ापे में मिलता ,
इधर उधर की ताकझाँक और विचरण वाले दिन न रहे
सूर्य जा रहा अस्ताचल को ,आई सांझ की बेला है ,
प्रखर किरण की तपन जलाती तनमन वाले दिन न रहे
मैं अपना 'मैं 'भूल गया और तू अपना 'मैं 'भूल गयी ,
अब समझौता समाधान है ,अनबन वाले दिन न रहे
यह तो है त्योंहार उमर का ,जिसे बुढ़ापा कहते है ,
संग जीने मरने के वादे और प्रण वाले दिन न रहे
जैसा होगा, जो भी होगा ,लिखा भाग्य  का भोगेंगे ,
मौज मस्तियाँ ,अठखेली के जीवन वाले दिन न रहे

 मदन मोहन  बाहेती 'घोटू '
  

रविवार, 25 अप्रैल 2021

बुरा वक़्त ये नहीं रहेगा

देश चल रहा रामभरोसे
एक दूसरे को सब कोसे
कोई दल का भी हो नेता
जिम्मेदारी कोई न लेता
सब पोलिटिकल गेम कर रहे
एक दूजे को ब्लेम कर रहे
उन्हें मिल गया एक स्टेज है
बना रहे अपनी इमेज है
अपनी रोटी सेक रहे है
दुनिया वाले देख रहे है
 रोते रहते है बस  रोना
किया केंद्र ने ,ये ना  वो ना
केवल देते रहना गाली
यही तुम्हारी ,जिम्मेदारी
राज्यों में सरकार तुम्हारी  
फैली जहाँ बहुत महामारी
तुमने क्या क्या जतन किये है
या फिर भाषण सिर्फ दिए है
बिमारी बन गयी सुनामी
तुम्हारी भी है नाकामी
देश जल रहा था तबाही में
लगे हुए थे तुम उगाही में
नहीं तुम्हे है शर्म भी जरा
फोड़ केंद्र पर रहे ठीकरा
अरे देश के तुम नेताओं
मन में राष्ट्रभाव भी लाओ
जनता दुखी ,बुरी हालत में
मिल कर काम करो आफत में
तुम जगाओ अपने जमीर को
दुखी जनो की हरो पीर को
बहुत कठिन ये दिन मुश्किल के
इनसे लड़ना ,सबको मिल के
आज देश में बनी वेक्सीन
ना बनती ,होता क्या इस बिन
  पर मुश्किल ने कब छोड़ा है
आज ऑक्सीजन का तोड़ा है
बुरा समय पर जब आता है
कई मुश्किलें संग लाता है
बचने का उपाय अपनाओ
रखो दूरियां ,मास्क लगाओ
वो अच्छे दिन भी आएंगे
सबको जो राहत लाएंगे
ईश्वर हमें सहारा देगा
बुरा वक़्त ये नहीं रहेगा
अगर प्यार है जो अपनों से
काम करें ,केवल ना कोसें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

संकल्प

ऐसा कोरोना वायरस है कहर ढा रहा ,
घुस कर के फेंफड़ों में वो हर एक बीमार में
घर घर में  फैला  ,सब ही परेशान दुखी है ,
 लोगों की भीड़ लग रही है अस्पताल में
जंगल से ,दरख्तों से खुले आम मिले थी ,
कुदरत मुफत में बांटती थी जिसको प्यार में
ऑक्सीजन प्राणदायिनी का  टोटा पड़ा है ,
वो बिक रही है आजकल कालाबाज़ार में
ये दोष नहीं मेरा ,तुम्हारा ,सभी का है
हमने प्रगति  के नाम पर प्रकृति बिगाड़ दी
जंगल हरे भरे थे ,हमने वृक्ष काट कर ,
कुदरत की नियामत थी जो उसको उजाड़ दी
और उस जगह कॉन्क्रीट के जंगल खड़े किये ,
बनवा के ऊंची ऊंची कितनी ही इमारतें
करनी का अपनी ही तो है हम फल भुगत रहे ,
बचना बड़ा मुश्किल है अब कुदरत की मार से
तो आओ पश्चाताप करें ,माफ़ी मांग कर ,
कुदरत की इस जमीन को कर दे हरा भरा
जितने भी काटे ,उससे दूने वृक्ष ऊगा दें ,
आओ संवार  फिर से दें ,हम अपनी ये धरा
फिर से लगे बहने वो हवा प्राणदायिनी ,
पर्यावरण सुधरे और बहे नदिया और नाले
पंछी की चहक हो जहाँ फूलों की महक हो
ऐसा निराला स्वर्ग हम धरती पर बसा लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

बचे हुए का फिर क्या होगा ?

यह कैसी बिमारी आयी
दुनिया भर में आफत छाई
कितने लोग बिमार पड़े है
बेबस और लाचार पड़े है
अस्पताल में 'बेड 'नहीं है
ऑक्सीजन की गैस नहीं है
है चपेट में इसकी घर घर
हम तुम में यदि आई किसी पर
बिछड़ा कोई ,दे गया धोखा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

जब जब यह ख़याल आता है
तो मन सिहर सिहर जाता है
जिसके संग संग जीवन काटा
पीड़ा, सुख दुःख मिल कर बांटा
बंधन जग के सभी तोड़ कर
चला गया यदि साथ छोड़ कर
बस  तनहाई  बचेगी बाकी
सूना सा जीवन एकाकी
अगर आ गया ऐसा मौका
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

चिंता यही सताती हर क्षण
फिर कैसे गुजरेगा जीवन
मन में सोच हमेशा इतना
कौन निभाएगा तब कितना
ख्याल रखेगा ,बढ़ी उमर में
अगर पड़ गए हम बिस्तर में
जब होंगे मुश्किल के मारे
तभी आएगा समझ हमारे
भेद पराये और अपनों का
बचे हुए का फिर क्या होगा?

सिर्फ कल्पना मात्र डराती
मन में व्याकुलता छा जाती
मैं  इतना ज्यादा डर जाता
नहीं ठीक से भी सो पाता
थोड़ा भावुक ,थोड़ा पागल
मैं तड़फा करता हूँ पल पल
जब कि पता कल किसने देखा
मिटता नहीं,नियति का लेखा
लिखा भाग्य का सबने भोगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

साथी अगर छूट जाता है
दुःख का पहाड़ टूट जाता है
क्योंकि उमर ज्यों ज्यों बढ़ती है
साथी की जरूरत पड़ती है  
रखते ख्याल एक दूजे का
तभी बुढ़ापा कटे मजे का
हम चाहे कितना भी चाहें
दोनों लोग साथ में जायें
ऐसा भाग्य मगर कब होगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

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