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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

 दिन न रहे

मदमाती मनमोहक ,चंचल ,चितवन वाले दिन न रहे
इठलाते और इतराते वो ,यौवन वाले दिन न रहे
अब तो एक दूजे को सहला अपना मन बहला लेते ,
मस्ती और गर्मजोशी के चुंबन वाले दिन न  रहे
संस्कारों के बंधन में बंध ,दो तन एक जान है हम ,
बाहुपाश में बंधने वाले ,वो बंधन के दिन न रहे
नजदीकी का सबसे ज्यादा ,वक़्त बुढ़ापे में मिलता ,
इधर उधर की ताकझाँक और विचरण वाले दिन न रहे
सूर्य जा रहा अस्ताचल को ,आई सांझ की बेला है ,
प्रखर किरण की तपन जलाती तनमन वाले दिन न रहे
मैं अपना 'मैं 'भूल गया और तू अपना 'मैं 'भूल गयी ,
अब समझौता समाधान है ,अनबन वाले दिन न रहे
यह तो है त्योंहार उमर का ,जिसे बुढ़ापा कहते है ,
संग जीने मरने के वादे और प्रण वाले दिन न रहे
जैसा होगा, जो भी होगा ,लिखा भाग्य  का भोगेंगे ,
मौज मस्तियाँ ,अठखेली के जीवन वाले दिन न रहे

 मदन मोहन  बाहेती 'घोटू '
  

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