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रविवार, 14 जून 2020

फुरसत का असर

वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
किसी के हुस्न ,हुनर सादगी और उल्फत की
थोड़ी तारीफ़ कर दें ,इतनी शराफत नहीं थी

काम के बोझ से इतना  अधिक  लदे  रहते ,
वक़्त मिलता न था ,निपटायें कैसे और क्या करें
लॉक डाउन  के कारण , हुई है  ये हालत ,
इतनी फुरसत है ,समझ आता नहीं है  क्या करें
पहले हम काम से थक जाया करते थे इतना,
बड़ी मुश्किल से ही ,आराम थोड़ा  कर पाते
अब तो  आराम करते करते थक गए इतना
काम को आतुर ,पर बाहर निकल नहीं पाते
अपना सब प्यार लुटा देते अपनी बीबी पर
पहले थकते थे इतना ,बचती ही हिम्मत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की  फुरसत नहीं थी

पहले थाली में जो भी पुरस देती थी बीबी ,
फटाफट खा लिया करते थे ,पेट भरते थे
कितना भी अच्छा और लज्जत भरा हो वो खाना ,
मुंह से तारीफ़ के दो लफ्ज़ ना निकलते थे
और अब बैठ के फुरसत में जो  खाते  खाना ,
स्वाद देते है एक एक ग्रास उनकी थाली के
इतना लज्जत भरा खाना कि खा के जी करता ,
चूम लूं हाथ मैं ,जाकर  पकाने वाली के
मोहब्बत का मसाला होता उनके खाने में ,
प्यार के तड़के बिना ,आती ये लज्जत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चौदह दिन का क्वारंटाइन

एक केस कोरोना का मोहल्ले में हो गया ,
सब वासिंदों के मन को एक दहशत से भर दिया
बीमार भरती हो गया जा अस्पताल में ,
चौदह दिनों को मोहल्ले को सील कर  दिया
बाहर निकल न सकता कोई ,घर में कैद है ,
सब बेक़सूर लोगों को भी मिल रही सजा ,
बारिश कहीं पे हुई थी ,कीचड कहीं पे है ,
कोविद ने ऐसा जीवन को तब्दील कर दिया

बदल गया है मिजाज थोड़ा मौसम का ,
हमारे जीने का अंदाज नहीं बदला है
धुन में थोड़ा सा बदलाव आ गया लेकिन ,
वो ही साजिंदे है और साज नहीं बदला है
एक मनहूसियत सी फैला दी हवाओं ने ,
एक दहशत सी गयी पसर पूरे मंजर में ,
ऐसे हालातो ने है कैद कर रखा हमको ,
सज़ा मासूम को ,रिवाज नहीं बदला है

घोटू 

शुक्रवार, 12 जून 2020

टावर -१ के सील होने पर

बाहर निकल सकते नहीं ,घर में कैद है ,
क्योंकि पड़ोस में कोई बीमार हो गया
मारी है ऐसी मार करोना के खौफ ने ,
अब चैन से जीना भी है दुःश्वार हो गया
 कोई ने ख़ता की है मग़र क़ैद है कोई ,
बरसात उनके घर हुई ,हम भीग रहे है ,
कितना अजीब दुनिया ने दस्तूर बनाया
कैसा अजीब लोगों का व्यवहार हो गया

'घोटू '

बुधवार, 10 जून 2020

पीने की चाहत

ना जरूरत है मधुशाला की ,ना जरूरत है मधुबाला की ,
ना जरूरत है पैमानों की ,प्याले भी सारे  रीते है
किसको फुरसत है ,मधुशाला जा  भरे पियाला और पिये ,
हम वो बेसबरे बंदे है , सीधे बोतल से पीते  है
ली दारू बोतल ठेके से ,गाडी में आये और खोली ,
आधी से ज्यादा बोतल तो  ,गाडी में निपटा देते है
लेते संग में नमकीन नहीं ,ना गरम पकोड़े आवश्यक ,
हम तो मादक मदिरा पीकर ,मस्ती का जीवन जीते है

है इतने दर्द जमाने में ,कि उन्हें भूलने के खातिर ,
जब हो जाते है परेशान ,ये काम कर लिया करते है
पानी की जगह बीयर पीते ,शरबत की जगह पियें वाइन ,
जैसा महफ़िल का रुख देखा ,हम जाम भर लिया करते है  
करने को कभी गलत ग़म को,या कभी मनाने को खुशियाँ ,
कोई न कोई बहाने से ,तर हलक़ कर लिया करते है
दुनिया के दिए हुये जख्मो ,को सीने से बेहतर पीना ,
ये दारू नहीं ,दवाई है ,पी जिसे  जी लिया  करते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कब लौटेगी जिंदगी ढर्रे पे

फैल रही बेचैनी, जर्रे जर्रे पे
कब लौटेगी यार जिंदगी ढर्रे पे

घबराहट से भरा हुआ माहौल है
सभी व्यवस्थायें अब डांवाडोल है
आम आदमी बुरी तरह घबराया है
सभी तरफ एक सन्नाटा सा छाया है
हालत बिगड़ी हुई बहुत बाज़ारों की
अस्पताल में भीड़ लगी ,बीमारों की
कोरोना का कोप इस तरह फैल रहा
हर परिवार, दंश है इसके झेल रहा
है सबके मुख बंद ,बंध रहा पट्टा है
बैठा हुआ देश का  अपने  भट्टा  है
दुःख के बादल ,छाये गाँव मुहल्ले पे
कब लौटेगी यार  जिंदगी  ढर्रे पे

बहुत ढीठ ये कीट कोरोना वाइरस है
जिसके आगे सारी दुनिया बेबस है
दो हज़ार और बीस पड़ रहा भारी है
पटरी से उतरी विकास की गाडी है
इतने है प्रतिबंध ,लोग है मुश्किल में
बार बार भूकंप ,ख़ौफ़ लाते दिल में
सीमा पर दुश्मन संग गहमागहमी है
सागर तट ,तूफानों की बेरहमी  है
डरे हुए सब,फैली मन में दहशत ये
 कब छोड़ेगी ,पिंड हमारा,आफत ये
कब बरसेगी ,फिर से ख़ुशी धड़ल्ले से
कब लौटेगी  यार जिंदगी ढर्रे पे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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