मेरी जीवन शैली बदल गयी
१
जब कंवारा था ,मनमौजी था ,अपनी मर्जी का मालिक था
कॉलेज की हर सुन्दर लड़की ,पर मरता ,उनका आशिक था
वो दिन बेफिक्र लड़कपन के ,अल्हड़पन था और मस्ती थी
था जोश जवानी का मन में ,जीवन में हुस्न परस्ती थी
लेकिन फिर मेरे जीवन में ,आयी एक सुन्दर सी बाला
जिसने मेरी पत्नी बन कर ,मेरा व्यवहार बदल डाला
उसके अनुशासन में बंध कर ,मेरी हवा ही सारी निकल गयी
जब से मैं शादीशुदा हुआ ,मेरी जीवन शैली बदल गयी
२
मैं बना गृहस्थ ,नौकरी कर ,जाता था रोज सुबह ऑफिस
संध्या को सजी धजी बीबी ,स्वागत करती थी देकर 'किस '
मस्ती से कटता था जीवन ,पर आया ऐसा खलनायक
जिससे डर पत्नी ने अपने ,होठों को लिया ,मास्क से ढक
ना तो चुंबन ,ना हस्तमिलन ,ना बाहुपाश ,दो गज दूरी
ऐसा लॉक डाउन हुआ शहर ,गृह कार्य करो ,थी मजबूरी
करते घर का झाड़ू पोंछा ,मेरी चर्बी सारी पिघल गयी
जब से आया है कोरोना ,मेरी जीवन शैली बदल गयी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
१
जब कंवारा था ,मनमौजी था ,अपनी मर्जी का मालिक था
कॉलेज की हर सुन्दर लड़की ,पर मरता ,उनका आशिक था
वो दिन बेफिक्र लड़कपन के ,अल्हड़पन था और मस्ती थी
था जोश जवानी का मन में ,जीवन में हुस्न परस्ती थी
लेकिन फिर मेरे जीवन में ,आयी एक सुन्दर सी बाला
जिसने मेरी पत्नी बन कर ,मेरा व्यवहार बदल डाला
उसके अनुशासन में बंध कर ,मेरी हवा ही सारी निकल गयी
जब से मैं शादीशुदा हुआ ,मेरी जीवन शैली बदल गयी
२
मैं बना गृहस्थ ,नौकरी कर ,जाता था रोज सुबह ऑफिस
संध्या को सजी धजी बीबी ,स्वागत करती थी देकर 'किस '
मस्ती से कटता था जीवन ,पर आया ऐसा खलनायक
जिससे डर पत्नी ने अपने ,होठों को लिया ,मास्क से ढक
ना तो चुंबन ,ना हस्तमिलन ,ना बाहुपाश ,दो गज दूरी
ऐसा लॉक डाउन हुआ शहर ,गृह कार्य करो ,थी मजबूरी
करते घर का झाड़ू पोंछा ,मेरी चर्बी सारी पिघल गयी
जब से आया है कोरोना ,मेरी जीवन शैली बदल गयी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '