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मंगलवार, 12 मई 2020

विनती -प्रभु से -कोरोना काल में

         चोपाई
जब जब होत धरम की हानि
पीड़ित होते जग के प्राणी
धरती पर छाये अंधियारा
जन जन दुखी ,त्रास का मारा
आकर कोई अत्याचारी
फैलाये विपदा,बीमारी
तब तब प्रभु ने ले अवतारा
दुष्ट राक्षसों को है मारा
जब उत्पात मचायो रावण
राम रूप धर प्रकटे भगवन
लंका जा रावण संहारा
किया दुखी जन पर उपकारा
द्वापर में जब अत्याचारी
कंस मचाई विपदा भारी
कृष्ण रूप लेकर प्रभु प्रकटे
धरा बचाई उस संकट से
इस युग, दुष्ट करोना राक्षस
आ ना रहा ,कोई के भी बस
दुनिया भर में मची तबाही
लोग कर रहे त्राहि त्राहि
विपदा सबकी आन हरो तुम
प्रभु जी अब अवतार धरो तुम
दवा,वेक्सीन ,बन कर प्रकटो
दूर करो सबके संकट को
              दोहा
हाथ जोड़ विनती करे ,'घोटू 'बारम्बार
कोरोना संहार को ,प्रभु जी लो अवतार

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

सोमवार, 11 मई 2020

दो सवैये -रसखान की तर्ज पर
१ (धूल  भरे अति शोभित  श्यामजू---)

घर बैठे अति शोभित साहबजी ,काम न काज ,करावे सेवा
ब्रेकफास्ट,लंच डिनर चाहिये ,चाय के साथ में गरम कलेवा
पल भर भी न जिन्हे फुरसत थी ,फुरसत में अब रहत सदैवा
आपके भाग जो पी  संग रंग में  ,दीनो है रंग  कोरोना देवा

२ (गावे गुनी,गनिका ,गंधर्व ------)

आई सुनी एक नयी बिमारी ,चीन से आ जो सभी सतावे
दिन दूनी और रात चौगुनी ,फ़ैल रही ,काबू नहीं आवे
रोवत सभी कोरोना को रोना ,कोई इलाज समझ नहीं पावे
तासे  चौदह दिन ,क्वेलेन्टाइन ,करवा कर ,सरकार बचावे
घोटू 
भजन -कोरोना काल में

अब सौंप दिया इस जीवन का ,सब भार  तुम्हारे हाथों में
तुम लाओ स्वच्छता ,धोकर कर ,सौ बार ,तुम्हारे हाथों में

घातक ये  कीट करोना है ,यदि तुमको इससे बचना है ,
आवश्यक ,सेनेटाइजर की ,तलवार तुम्हारे  हाथों में

तुम दो गज सबसे दूर रहो ,कोई को पास न आने दो ,
कर जोड़ नमस्ते ,दिखलाओ ,सब प्यार तुम्हारे हाथों में

तुम केवल दूर से 'हाई'करो और'बाय करो बस हाथ हिला ,
वर्जित है हाथ मिलाने का ,व्यवहार  तुम्हारे हाथों में

ये व्याधि  फ़ैल रही इतना ,है परेशान  सारी दुनिया
घर से मत निकलो ,कुशल रहो ,सरकार तुम्हारे हाथों में

कुछ भी लाओ,पाओ,खाओ ,धोकर के काम उसे लाओ  ,
है संक्रमरण   से बचने का ,उपचार तुम्हारे  हाथों  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के कांटे

चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे
हर ओर मौन पसरा है,सन्नाटे ही सन्नाटे

मानव सामाजिक प्राणी,पर उसकी यह मजबूरी
रखना पड़ती अपनों से ,अब उसे बना कर दूरी
अपने सुख ,दुःख और पीड़ा,किसके संग,कैसे बांटे
चुभते है शूलों जैसे , ये कोरोना के कांटे

सब लोग है बंद घरों में ,सड़कें सुनसान पड़ी है
रुकगयी गति जीवन की,यह मुश्किल बहुत बड़ी है
कितने दिन चार दीवारी ,हो कैद जिंदगी काटें
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे

मजदूर पलायन करते ,उत्पादन ठप्प है जबसे
सब व्यापारिक गतिविधियां ,मृतप्रायः पड़ी है तबसे
कैसे संभलेंगे ये सब ,हर रोज होरहे घाटे
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे

यह कैसी भीषण विपदा ,सारी दुनिया में फैली
कर रही बहुत है पीड़ित ,अब और न जाए झेली
एक छोटे से वाइरस ने  ,सबको रख दिया हिलाके
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना  के कांटे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 10 मई 2020

का वर्षा ,जब कृषि सुखाने

की ना मन की कोई शुद्धि
दूर बहुत हमसे सदबुद्धि
हम थे बस दौलत के प्यासे ,
रहे चाहते ,धन की वृद्धि

क्या है बुरा और क्या अच्छा
देते रहे  सभी को  गच्चा
हवस बसी मन में पैसे की ,
चाहे पक्का हो या कच्चा

भुला आत्मीयता ,अपनापन
तोड़ दिये ,पारिवारिक बंधन
भुला दिए सब रिश्ते नाते ,
जुट कर रहे ,कमाने में धन

माया माया ,केवल माया
बहुत कमाया ,सुख ना पाया
भगते रहे ,स्वर्ण मृग पीछे ,
लेकिन उसने ,बहुत छलाया

मन का चैन ,अमन सब खोया
काया का कंचन सब खोया
अपना स्वार्थ साधने खातिर ,
बहुमूल्य ,जीवन सब खोया

बीत गयी जब यूं ही जवानी
वृद्ध हुए तब बात ये जानी
खाली हाथ जाएंगे बस हम ,
दौलत साथ नहीं ये जानी

नाम प्रभु का अगर सुमरते
झोली रामनाम से भरते
सुख,संतोष,शांति से जीते ,
माया के पीछे ना भगते

अपने सब अब लगे भुलाने
पास अंत आया तब जाने
रहते समय ,न आई सुबुद्धि ,
का वर्षा ,जब कृषि सुखाने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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