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गुरुवार, 7 मई 2020

ऐसा कोई दिन ना बीता

चालिस दिन  तालाबंदी में ,ऐसा कोई दिन ना बीता
जिस दिन मैंने कोरोना पर ,लिखी नहीं हो कोई कविता

किया शुरू में उसका वंदन ,मख्खन मारा ,तुष्ट रहेगा
यही सोच कि तारीफ़ सुनकर ,ये दुनिया को कष्ट न देगा
लेकिन उस पर असर हुआ ना ,और गर्व से फैल गया वो
चमचागिरी ,चापलूसी के ,अस्त्र चलाये ,झेल गया वो
उस रावण ने साधु रूप धर,करली हरण ,चैन की सीता
ऐसा कोई दिन न बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता

फिर सोचा ये कुटिल धूर्त है ,नहीं प्यार से ये समझेगा
जूते मार इसे तुम पीटो ,शायद ये तब ही  सुधरेगा  
ये लातों का भूत न माने ,सीधी  सादी सच्ची  बातें
इसको गाली दो और मारो ,जमकर घूंसे और तमाचे
तीखे तेवर देख भगेगा ,उलटे पैरो ,हो भयभीता
ऐसा कोई दिन ना बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब जाओ भाग कोरोना

कर दिया त्रसित है तुमने ,दुनिया का कोना कोना
तुम सुई नोकसे छोटे ,अति सूक्ष्म 'वाइरस' हो ना
तुमने औकात दिखा दी ,मानव है कितना बौना
सब जान गये है तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

तुमने कितने महिनो से ,लोगों को बिठा रखा घर
मजदूर दिहाड़ी के बिन ,अब भटक रहे हैं दर दर
बंद प्रतिष्ठान है सारे , रौनक बाज़ार की गायब
बंद पड़ी रेल ,बस,मेट्रो ,जाने चल पाएगी कब
आदत में आया हमारी ,अब परेशानियां ढ़ोना
सब जान गए हैं  तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

हम सब सामजिक प्राणी,आपस में हिलमिल हँसते
अब  भूले  मिलना जुलना , दूरी  से  करें  नमस्ते
हाथों में सेनेटाइजर ,और मुख पर बांधे पट्टी
दुनिया  तुमसे आतंकित ,गुम  सबको सिट्टी पिट्टी  
सब पीड़ित किसके आगे ,जा रोयें अपना रोना
सब जान गए है तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 6 मई 2020

आदत पड़ गयी  पीने की

फैक्टरी बाजारों की बंदी
आने जाने पर पाबंदी
है अर्थव्यवस्था में मंदी
,तालाबंदी दो महीने की

मजदूर काम ना कुछ पाये
निज दर्द किसे वो दिखलाये
वो भूख पेट को तड़फाती
,वो आग धधकती सीने की

कितनी हो गयी तबाही है
सब करते त्राहि त्राहि  है
कोरोना वाइरस फैलाया,
 हरकत ये चीन कमीने की
 
वो मंदिर मस्जिद वो बाबा
वो तीर्थ सभी ,काशी काबा
सब बंद हुए,अब कहाँ गयी,
शक्ति वो दुःख हर लीने की
 
मैं घुस बैठा घर के अंदर
लगता है इंफेक्शन से डर
दूरी अपनों से रखी बना ,
हसरत में लम्बा जीने की
 
कोरोना से लगता है डर
हाथों में मल सेनेटाइजर
मेरे हाथ हो गये 'अल्कोहलिक
उन्हें आदत पड़ गयी पीने की

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ;
फ़जीता *

जो मज़ा कभी पत्नी के संग ,करके तूतू मैंमैं आता
वो आता नहीं मनाने में ,जो मज़ा रूठने में आता
शरबत ना ,स्वाद गोलगप्पे भर ,पानी खट्टे तीते में
वो मज़ा आता अमरस में,आता जो स्वाद फजीते में

घोटू *
*फजीता - खटटे और अधपके आमों के रस में पानी मिला
गुठली सहित सब मसाले ड़ाल और छोंक कर बनाया हुआ
रसम की तरह का शोरबा जो गाढ़ी अरहर दाल और चांवल
के साथ और बार बार गुठली को शोरबे में डूबा डूबा चूंस चूंस
खाया जाता है  उसे फजीता कहते है 
पति की परेशानी

बीबी के साथ सदा खटपट ,पत्नी की डाट ,दिखाती रंग
किचकिच करती बच्चों की माँ ,तूतू मैंमैं  घरवाली संग
जोरू से सुनता  नित  ताने ,गाली खा ,बेलन की पड़ती
अम्मा की बहू को पति हित ,ना समय ,काम में रह खटती
माशूका बड़ी टेढ़ी मिजाज ,हरदम नखरे ,तीखे तेवर
और डूब प्रेमरस प्रेमिका ,है हमें नचाती ऊँगली पर
वाइफ सर के ऊपर चढ़ कर ,दिखलाती रौब ,नहीं डरती
है पीछे प्राण के प्राणप्रिया ,व्रत करवा चौथ का है करती
सजनी ,सजधज कर,मोहपाश में बाँध लिया करती हमको
मिल जाता है थोड़ा सुकून ,बेगम हर लेती हर गम को
सिन्दूर मांग भर ,हृदयेश्वरी ,करती मांगों की फरमाइश
एक पति बेचारे पर रहती ,फिर कहाँ ख़ुशी की गुंजाईश
वो ढंग से हंस भी ना पाता , हरदम करता है समझौता
इस दुनिया में सबसे निरीह और दुखी जीव है पति होता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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