एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

सजना संवरना

नहीं पड़ती कोई जरुरत ,है बचपन में संवरने की ,
जवानी में यूं ही चेहरे पे  छाया नूर होता  है
दिनोदिन रूप अपने आप ही जाता निखरता है ,
लबालब हुस्न से चेहरा भरा भरपूर  होता है
मगर फिर  भी हसीनायें ,संवरती और सजती है,
आइना देख कर के अक्स भी मगरूर होता है
पार चालीस के घटती लुनाई जब है चेहरे की ,
नशा सारा जवानी का ,यूं ही काफूर होता है
सफेदी बालों में और चेहरे पे जब सल नज़र आते ,
बुढ़ापा इस तरह आना   नहीं  मंजूर होता है
तभी पड़ती है जरूरत ख़ास ,नित सजने सँवरने की ,
नहीं तो हुस्न का जलवा ये चकनाचूर होता है

घोटू 
पर्यटक का प्यार

आज मेरी चाह 'अजमेरी 'हुई है ,
और 'दिल्ली' की तरह है दिल धड़कता
'चेन्नई 'सा चैन भी खोने लगा है ,
'आगरे' की आग में तन बदन जलता
मैं 'अलीगढ' का अली हूँ ,तुम कली थी,
देह' देहरादून' सी विकसी  हुई है
मन बना है 'बनारस' जैसा रसीला ,
मुरादें  अब , 'मुरादाबादी' हुई है
चाहता हूँ प्यार से दिल विजय करके ,
तुझे 'जयपुर' में गले जयमाल डालूं
बना रानी ,रखूँ  'रानीखेत' दिल में ,
मिलान की रजनी 'मनाली 'में मनालूं

घोटू  
माँ का आशीर्वाद

बचपन से ले अब तक जिसका ,रहा हमारे सर पर साया
जिसने हमको पाला,पोसा ,पढ़ा लिखा इंसान बनाया  
जीवन में आगे बढ़ने का सदा दिया हमको प्रोत्साहन
जिस ममता की मूरत  माँ ने ,प्यार लुटाया हम पर हरदम
चली गयी वो हमें छोड़ कर ,घर में  बिखर गया  सूनापन
याद तुम्हारी ,आती माता ,हमको हर दिन ,हर पल ,हर क्षण
बैठी हो तुम ,दूर स्वर्ग में ,किन्तु नेह जल हो  छलकाती
फूलें फलें ,रहें सुखी हम   ,सब  पर आशीषें  बरसाती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

मन यायावर

कितना ही समझालो फिर भी ,
रहे भटकता इधर उधर
मन यायावर
झर झर करते झरनो के संग हँसता गाता
या यादों के सागर में हिचकोले  खाता
कभी मचलता सरिता सा कल कल बहता है
आशाओं के पंख लगा उड़ता रहता है
कभी गुजरता कुंजगली में बृंदावन की
कभी भीजता ,रिमझिम बारिश में सावन की
या तितली सा उपवन में करता अठखेली
भ्र्मरों सा गुंजन करता ,लख कली नवेली  
 आसमान में उड़ता रहता है पतंग सा
या फिर छाया रहता है मन में उमंग सा
कभी जाल में चिंताओं के उलझा रहता
या उन्मुक्त पवन के झोंकों जैसा बहता
नहीं रात को चैन ,भटकता है सपनो में
कभी ढूंढता रहता अपनापन ,अपनों में
है द्रुतगामी तेज ,गति विद्युत् से ज्यादा
पल में जाने कहाँ कहाँ की सैर कराता
जहाँ न पहुंचे रवि ,कवि  सा पहुंचा करता
पुष्पों की मादक सुरभि सा महका करता
कभी चाँद को छू लेने को मचला करता
कभी दीप सा जल ,जग में उजियारा करता
कभी भटकता रहता बादल सा आवारा
गाँव गाँव और गली गली में बन बंजारा
पथरीली डगरों पर नंगे पाँव विचरता
तप्त धूप में  तरु की छाया ढूँढा करता
काम काम विश्राम नहीं लेता है पल भर
मन यायावर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

चेंज का चक्कर

मैंने पत्नी से कहा अजी सुनती हो
उसने कहा फरमाइए
मैंने कहा एक रस जिंदगी जीते जीते ,
मै बोअर हो गया हूँ ,
मुझे कुछ चेंज चाहिए
वो बोली ठीक है रोज की दाल रोटी के बदले
आज खिला देती हूँ हलवा पूरी
हमने कहा तुम बौड़म हो पूरी
खाने पीने में ही उंढेल देती हो सारा प्यार
रखती हो मेरा इतना ख्याल
पर मुझे ऐसा चेंज नहीं ,वैसा चेंज चाहिए
पत्नी बोली कैसा चेंज चाहिए
क्या मुझ बुढ़िया से मन भर गया है
जो चेंज करने को मन कर गया है
जरा अपनी उम्र देखो और देखो हालात
एक मैं  ही ठीक से सम्भल नहीं पाती ,
करते हो चेंज की बात
मैंने कहा नहीं मेरी सरकार
तुम तो रोज लुटाती हो इतना प्यार
मेरी नज़र में तुम हो सबसे हसीन
पर कोई सिर्फ मीठा ही मीठा नहीं खा सकता
उसे संग चाहिए नमकीन
इसी तरह प्यार ही प्यार के साथ ,
अच्छे लगते है कभी कभी झगडे
मुझे चेंज चाहिए आओ हम थोड़ा सा लड़े
पत्नी बोली लड़ते तो हम तभी से आये है
जबसे आपसे नयना लड़ाये  है
आप हमसे इतना लाड लड़ाते है
कि हम आपसे लड़ ही नहीं पाते है
हमने कहा वो तो हम ही सीधेसादे है
जो आपके प्यादे है
वरना हमारे दोस्त लोग तो ,
अपनी बीबी को इशारों पर नचाते है
आपने हमारे सीधेपन का बहुत फायदा उठाया है
क्या आपकी अम्मा ने आपको लड़ना नहीं सिखाया है
क्या वो भी आपकी तरह सीधी और स्यानी थी
वो चिल्लाई देखो जी ,अम्मा की बात मत करो ,
वो तो झाँसी की रानी थी
उनके आगे तो पिताजी क्या अच्छे अच्छे कांपते थे ,
ऐसा उनका रौब था
पूरे घरभर में उनका खौफ था
आप हमारे और आपके बीच में हमारी अम्मा को
या मायके वाले को क्यों घसीट लाते है
अपनी अम्मा की बात क्यों भूल जाते है
वो भी लड़ने में क्या थी कम
बड़ा सासपना दिखलाती थी ,
मेरी नाक में कर दिया दम
और तुम्हारी बहने याने मेरी ननदें क्या कम नकचढ़ी थी
सब की सब ,लड़ने में माहिर बड़ी थी
कितना किया करती थी मुझे तंग
वो तो मैं ही हूँ जो निभा पाई हूँ सबके संग
और तुम भी क्या कम थे हमेशा उनका ही पक्ष लेते थे
और रात को प्यार कर ,पुचकार कर ,
पाँव पकड़ कर माफ़ी मांग लेते थे
मैं अपने मायके वालों के बारे में ,
कोई भी ऐसी वैसी बात , सहन नहीं कर पाऊँगी
मै चुप नहीं बैठूंगी ,एक की सौ सुनाऊँगी
 वो तो मै ही हूँ जो चाहती हूँ कि हममें ,
आपस में न कोई तनातनी रहे
और घर में शांति बनी रहे
 वरना तुम तो हमेशा ही मेरा दिल तोड़ते हो
कभी झल्लाते हो ,कभी काटने को दौड़ते हो
मुझे तंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हो
वो तो तुम्हे हाई ब्लूडप्रेशर है और हार्ट है कमजोर
इसलिए सब सहन करके चुप रहती हूँ ,
नहीं मचाती हूँ शोर
वरना एक बार जो भड़क गयी
तो तुम्हारी हालत पस्त  कर दूँगी
ठीक से बोल भी न पाओगे ,ऐसा दुरुस्त कर दूँगी
वो मेरा रोज रोज तुम्हारा रखना इतना ख्याल
और प्रदर्शित करना इतना प्यार
ये मेरा स्वभाव नहीं,तुम्हारा उपचार है
तुम हाई ब्लडप्रेशर के मरीज हो इसलिए ,
डॉक्टर की सलाह पर मेरा ऐसा मृदुल व्यवहार है
मैंने छोड़ दिया है करना क्रोध
ताकि मना सकूं करवा चौथ
क्योंकि लड़ाई पर आगयी तो पता नहीं ,
तुम कितना झेल पाओ
हमने कहा देवीजी ,हमने आपकी लड़ाई की
 झलक देखली है ,अब शांत हो जाओ  
आपका ये अंदाज हमें पसंद आ गया है
आज के झगड़े में तो आनंद आ गया है
पर अब हम कभी भी चेंज के चक्कर में नहीं पड़ेंगे
प्यार से ही रहेंगे और कभी नहीं झगड़ेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
,

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-