एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

सजना संवरना

नहीं पड़ती कोई जरुरत ,है बचपन में संवरने की ,
जवानी में यूं ही चेहरे पे  छाया नूर होता  है
दिनोदिन रूप अपने आप ही जाता निखरता है ,
लबालब हुस्न से चेहरा भरा भरपूर  होता है
मगर फिर  भी हसीनायें ,संवरती और सजती है,
आइना देख कर के अक्स भी मगरूर होता है
पार चालीस के घटती लुनाई जब है चेहरे की ,
नशा सारा जवानी का ,यूं ही काफूर होता है
सफेदी बालों में और चेहरे पे जब सल नज़र आते ,
बुढ़ापा इस तरह आना   नहीं  मंजूर होता है
तभी पड़ती है जरूरत ख़ास ,नित सजने सँवरने की ,
नहीं तो हुस्न का जलवा ये चकनाचूर होता है

घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-