श्राद्ध और दक्षिणा
दो दिन बाद ,पिताजी का श्राद्ध था
ये मुझे याद था
मैंने पंडितजी को फोन मिलाया
थोड़ी देर घंटी बजती रही ,
फिर उन्होंने डकार लेते हुए फोन उठाया
मैंने कहा पंडितजी प्रणाम
वो बोले खुश रहो यजमान
कहिये किस लिए किया है याद
मैंने कहा परसों है पिताजी का श्राद्ध
आपको सादर निमंत्रण है
वो बोले परसों तो तीन आरक्षण है
पर श्रीमान
आप है पुराने यजमान
आपका निमंत्रण कैसे सकता हूँ टाल
बतलाइये ,आपको यजमानो की सूची में ,
आपको कौनसे नम्बर पर दूँ डाल
मैंने कहा गुरुवर
क्या है ये नम्बर का चक्कर
वो बोले एक नंबर के यजमान के यहाँ ,
हम सबसे पहले जाते है
तर्पण करवाते है
पेट भर खाते है
आप तो जानते ही है कि जितना हम खायेंगे
उतना ही सीधे आपके पुरखे पायेंगे
हमारा पेट भर खाना
याने आपके पुरखों को तृप्ति पहुँचाना
पर इसके लिए दक्षिणा थोड़ी ज्यादा चढ़ाना होता है
और मान्यवर
पंडित के लिए बायाँलिस नंबर का ,
मान्यवर का कुरता पाजामा लाना होता है
ऐसा श्राद्ध ,सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का श्राद्ध कहलाता है
जिससे पुरखा पूर्ण तृप्ति पाता है
दूसरे नम्बर के यजमान के यहाँ ,
हम पूर्ण करने उनका प्रयोजन
कर लेते है थोड़ा सा भोजन
यह अल्पविराम होता है
अच्छी दक्षिणा में हमारा ध्यान होता है
क्योंकि जो हम खातें है वो तो,
यजमान के पुरखों को चला जाता है
हमारे हाथ तो सिर्फ दक्षिणा का पैसा आता है
साल में श्राद्धपक्ष के सोलह दिन
ये ही तो होता है हमारा 'बिजी सीजन '
जब इतना खाते है तो पचाना भी होता है
चूरन आदि भी खाना होता है
सेहत ठीक रखने के लिए जिम भी जाना होता है
और आप तो जानते ही है ,
कि मंहगाई कितनी बढ़ती जा रही है
हर चीज की कीमत चढ़ती जा रही है
क्या आपको यह उचित नहीं लगता है
दक्षिणा की राशि में वृद्धि की कितनी आवश्यकता है
हमको भी चलाना होता घर परिवार है
अब आपसे क्या कहें,आप तो खुद ही समझदार है
रही तीसरे और चौथे यजमान की बात ,
तो उनके यहाँ हम कम ही बैठते है
बस थोड़ा सा मुंह ही ऐंठते है
पेट में जगह ही कहाँ बचती है जो खाएं खाना
बस हमारा तो ध्येय होता है उचित दक्षिणा पाना
पांचवां छटा यजमान भी मिल जाए,
तो उसे भी हम नहीं छोड़ते है
क्योंकि हम किसी का दिल नहीं तोड़ते है
हमने कहा पंडितजी ,आपका वचन सत्य है
अवसर का लाभ लेना ,आदमी का कृत्य है
ये तो आपका सेवाभाव ही है जो आप ,
श्राद्ध के पकवान खा लेते है
और हमारे पुरखों तक पहुंचा देते है
अगर आप ये उपकार नहीं करते
तो हमारे पुरखे तो भूखे ही मरते
ये आपकी विशालहृदयता है
जिसके बदले 'कोरियर चार्जेस 'के रूप में ,
आपका अच्छी दक्षिणा पाने का हक़ तो बनता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दो दिन बाद ,पिताजी का श्राद्ध था
ये मुझे याद था
मैंने पंडितजी को फोन मिलाया
थोड़ी देर घंटी बजती रही ,
फिर उन्होंने डकार लेते हुए फोन उठाया
मैंने कहा पंडितजी प्रणाम
वो बोले खुश रहो यजमान
कहिये किस लिए किया है याद
मैंने कहा परसों है पिताजी का श्राद्ध
आपको सादर निमंत्रण है
वो बोले परसों तो तीन आरक्षण है
पर श्रीमान
आप है पुराने यजमान
आपका निमंत्रण कैसे सकता हूँ टाल
बतलाइये ,आपको यजमानो की सूची में ,
आपको कौनसे नम्बर पर दूँ डाल
मैंने कहा गुरुवर
क्या है ये नम्बर का चक्कर
वो बोले एक नंबर के यजमान के यहाँ ,
हम सबसे पहले जाते है
तर्पण करवाते है
पेट भर खाते है
आप तो जानते ही है कि जितना हम खायेंगे
उतना ही सीधे आपके पुरखे पायेंगे
हमारा पेट भर खाना
याने आपके पुरखों को तृप्ति पहुँचाना
पर इसके लिए दक्षिणा थोड़ी ज्यादा चढ़ाना होता है
और मान्यवर
पंडित के लिए बायाँलिस नंबर का ,
मान्यवर का कुरता पाजामा लाना होता है
ऐसा श्राद्ध ,सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का श्राद्ध कहलाता है
जिससे पुरखा पूर्ण तृप्ति पाता है
दूसरे नम्बर के यजमान के यहाँ ,
हम पूर्ण करने उनका प्रयोजन
कर लेते है थोड़ा सा भोजन
यह अल्पविराम होता है
अच्छी दक्षिणा में हमारा ध्यान होता है
क्योंकि जो हम खातें है वो तो,
यजमान के पुरखों को चला जाता है
हमारे हाथ तो सिर्फ दक्षिणा का पैसा आता है
साल में श्राद्धपक्ष के सोलह दिन
ये ही तो होता है हमारा 'बिजी सीजन '
जब इतना खाते है तो पचाना भी होता है
चूरन आदि भी खाना होता है
सेहत ठीक रखने के लिए जिम भी जाना होता है
और आप तो जानते ही है ,
कि मंहगाई कितनी बढ़ती जा रही है
हर चीज की कीमत चढ़ती जा रही है
क्या आपको यह उचित नहीं लगता है
दक्षिणा की राशि में वृद्धि की कितनी आवश्यकता है
हमको भी चलाना होता घर परिवार है
अब आपसे क्या कहें,आप तो खुद ही समझदार है
रही तीसरे और चौथे यजमान की बात ,
तो उनके यहाँ हम कम ही बैठते है
बस थोड़ा सा मुंह ही ऐंठते है
पेट में जगह ही कहाँ बचती है जो खाएं खाना
बस हमारा तो ध्येय होता है उचित दक्षिणा पाना
पांचवां छटा यजमान भी मिल जाए,
तो उसे भी हम नहीं छोड़ते है
क्योंकि हम किसी का दिल नहीं तोड़ते है
हमने कहा पंडितजी ,आपका वचन सत्य है
अवसर का लाभ लेना ,आदमी का कृत्य है
ये तो आपका सेवाभाव ही है जो आप ,
श्राद्ध के पकवान खा लेते है
और हमारे पुरखों तक पहुंचा देते है
अगर आप ये उपकार नहीं करते
तो हमारे पुरखे तो भूखे ही मरते
ये आपकी विशालहृदयता है
जिसके बदले 'कोरियर चार्जेस 'के रूप में ,
आपका अच्छी दक्षिणा पाने का हक़ तो बनता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '