एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?

 न कोई शिकवा है ,न कोई शिकायत है 
हमेशा मुस्करा कर ,रहने की आदत  है  
न मुझमे कुछ कमी या खामियां ढूंढती हो 
पति को परमेश्वर ,समझ कर  पूजती हो 
न कोई जिद है ,न कोई फरमाइशें  है 
और न ऊंची ऊंची ,कोई भी ख्वाइशे है 
न कभी खीजती हो ,नहीं होती रुष्ट  हो 
हर एक  हाल में तुम,रहती सन्तुष्ट  हो 
न कभी गुस्सा होती हो ,न  झल्लाती हो 
रूप पर अपने तुम ,कभी ना इतराती हो  
काम में घर भर के,व्यस्त सदा रहती हो 
परेशानियों से तुम,त्रस्त  सदा रहती हो 
मांग पूरी करने में,सबकी तुम हो तत्पर 
दो दिन में अस्तव्यस्त ,होता है तुम बिन घर 
पीछे पड़ बात अपनी ,मुझसे नहीं मनवाती क्यों हो 
मेरी जान, तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
लोगबाग अक्सर अपनी बीबी से रहते है परेशान 
छोटी छोटी बातों पर , मचाती  है जो तूफ़ान  
कभी ननद से नहीं पटती ,कभी सास से शिकायत है 
सदा कुछ न कुछ रोना,रोने की आदत  है 
किसी को कपडे चाहिए,किसी को गहना चाहिए 
किसी को फाइव स्टार होटल में रहना चाहिए 
कोई बाहर खाने और घूमने फिरने की शौक़ीन होती है 
कोई आलसी है,काम नहीं करती.दिन भर सोती है 
कोई किटी पार्टी और   दोस्तों में रहती व्यस्त है 
कोई फेसबुक और व्हाट्स अप में मस्त है 
कोई बिमारी का  बहाना बना,पति से काम करवाती है 
कोई अपने घरवाले को ,अपनी  उँगलियों पर नचाती है 
तुम बिना कोई प्रश्न किये ,मेरी हर बात मानती हो 
मेरी आँखों के इशारों को ,अच्छी तरह पहचानती हो 
तुम भी अपनी बात मनवाने ,होती नहीं उन्मादी क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?    
तुम  सुशील ,समझदार और  जहीन हो 
तुम छरहरे बदन वाली हो, हसीन हो    
फिर भी तुममे न कोई नाज़ है ,न नखरा है 
तुम्हारा रूप कितना सादगी से भरा है 
न   तो ब्युटीपालर्र जाकर,सजना सजाना  
न ही चेहरे पर तरह तरह के लोशन लगाना 
तुम शर्मीली लाजवंती हो ,तुम्हारी नजरों में हया है 
भगवान में आस्था है और व्यवहार में  दया है     
 कभी ना कहना ,तुमने नहीं सीखा है 
पति के दिल लूटने का तुम्हारा अपना ही तरीका है 
पति के  दिल की राह, आदमी के पेट से होकर है जाती 
इसलिए तुम मुझे नित नए ,पकवान बनाकर हो खिलाती 
तुम अन्नपूर्णा हो और तुम ही गृह लक्ष्मी हो 
मैं खुशनसीब हूँ कि तुम मेरे लिए ही बनी हो 
अपनी इन्ही अदाओं से तुम मुझको लुभाती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
हमारी जिंदगी में ,मियां बीबी वाली नोकझोंक क्यों नहीं होती 
मेरे लिए तुम्हारी कोई रोक टोक क्यों नहीं होती 
इस दुनिया में लोग तरसते है पत्नी के प्यार के लिए 
लेकिन मैं तरस जाता हूँ ,झगड़े और तकरार के लिए 
जी करता है की तुम रूठो और मैं तुम्हे मनाऊं
 तुम नखरे दिखा इठलाओ और मैं तुम्हे मख्खन  लगाऊं 
तुम जिद करो और मैं तुम्हे मन चाही वस्तु दिलवाऊं 
कभी जी करता है तुम ब्यूटी पालर्र में सजवाऊं 
पर तुम तो जैसी हो ,उस हाल में ही खुश हो 
जितना भी मिलता है ,उस प्यार में ही खुश हो 
पर सिर्फ मीठा खाने से भोजन में मज़ा नहीं आता 
वैसे ही सिर्फ प्यार से  जीवन का मज़ा नहीं आता 
जिंदगी में प्यार के साथ ,झगडे का तड़का आवश्य्क है 
कभी कभी प्यार बढाती ,रोज की झक झक है 
पर तुम शांति प्रेमी ,झगड़ने से घबराती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधीसादी  क्यों हो ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

दान पुण्य  

भूखे को भोजन और प्यासे को जल  पिलाओ ,
               यह सच्ची सेवा और दान बड़ा  होता है 
भंडारे का खाना ,गुरूद्वारे का लंगर ,
              परशादी भोजन अति स्वाद भरा होता है 
गरमी में सुबह सुबह ,लोगों को छाछ पिला ,
                   शीतलता देने से ,पुण्य खरा होता है 
सरदी में कंबल और वस्त्रहीन को कपडे ,
             अंत समय ,पुण्य करम ,साथ खड़ा होता है 

ऑरेंज काउंटी निवासियों द्वारा 
'मुफ्त छाछ वितरण अभियान '
नित्य प्रातः ८-३० से 
गेट नम्बर ४ पर 
संपर्क सूत्र  
१ मदन मोहन बाहेती 701 टावर 1 - मोबाईल 9350805355 
२ शिव कुमार मित्तल 1502  टावर 1 - मोबाईल 9910344688 

रविवार, 22 अप्रैल 2018

सत्योत्तरवी वर्षगांठ पर 

जी रहा हूँ  जिंदगी  संघर्ष करता 
जो भी मिल जाता उसीमें हर्ष करता 
हरेक मौसम के थपेड़े सह चुका हूँ 
बाढ़ और तूफ़ान में भी बह चुका हूँ 
कंपकपाँती शीत  की ठिठुरन सही है 
जेठ की तपती जलन ,भूली नहीं है 
किया कितनी आपदा का सामना है 
तब कही ये जिस्म फौलादी बना  है 
पथ कठिन पर मंजिलों पर चढ़ रहा हूँ 
लक्ष्य पर अपने  निरन्तर ,बढ़ रहा हूँ 
और ना रफ़्तार कुछ मेरी थमी है 
सत्योत्तर  का हो गया ये आदमी है 
कभी दुःख में ,कभी सुख में,वक़्त काटा 
मिला जो भी,उसे जी भर,प्यार बांटा 
राह में बिखरे हुए,कांटे, बुहारे 
मिले पत्थर और रोड़े ,ना डिगा रे 
सीढ़ियां उन पत्थरों को चुन,बनाली 
और मैंने सफलता की राह पा ली 
चला एकाकी ,जुड़े साथी सभी थे 
बन गए अब दोस्त जो दुश्मन कभी थे 
प्रेम सेवाभाव में तल्लीन होकर 
प्रभु की आराधना में ,लीन  होकर 
जुड़ा है,भूली नहीं अपनी जमीं है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 
किया अपने कर्म में विश्वास मैंने 
किया सेवा धर्म में  विश्वास मैंने 
बुजुर्गों के प्रति सेवा भाव रख कर 
दोस्ती जिससे भी की ,पहले परख कर 
प्रेम,ममता ,स्नेह ,छोटों  पर लुटाया 
लगा कर जी जान सबके काम आया
सभी के प्रति हृदय में सदभावना है  
सभी की आशीष है ,शुभकामना है 
चाहता हूँ जब तलक दम में मेरे दम 
मेरी जिंदादिली मुझमे रहे कायम 
काम में और राम में काया  रमी है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 
मेरे पास वक़्त ही वक़्त है 

हे मेरी प्यारी पत्नी डीयर 
जवानी के दिनों का ,हर पति परमेश्वर
बुढ़ापे में पूजने लगता है ,
पत्नी को परमेश्वरी  बना कर ,
और बन जाता उसका परम भक्त है 
मैं भी तुम्हारी भक्ति में लीन होना चाहता हूँ ,
क्योंकि मैं रिटायर हो गया हूँ और मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
तब जब मैंने तुम्हारे साथ ,
बसाया था अपना घरसंसार 
तुम मुझसे और मैं तुमसे ,करता था बहुत प्यार 
पर उस उमर में मेरी महत्वकांक्षाएं ढेर सारी थी 
जिंदगी में  कुछ कर पाने की तैयारी थी 
मुझे बहुत कुछ करना था 
और बहुत आगे बढ़ना था 
और इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु ,
मैं पागलों सा जूझता रहा 
मैंने दिन देखे न रात ,
बस भागता रहा ,यहाँ और वहां 
तुम्हारे लिए समय ही कब बचता था मेरे पास 
तुम कभी नाराज होती थी ,कभी उदास 
मैं देर रात थका हुआ घर आता था 
तुम उनींदी सी ,सोइ हुई मिलती थी ,
और मैं खर्राटे भरता हुआ सो जाता था 
मैं चाहते हुए भी तुम्हारे लिए ,
समय नहीं निकाल पाता था 
क्योकि स्ट्रगल के वो दिन ,होते बड़े सख्त है 
पर अब मैं रिटायर हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए,वक़्त ही वक़्त है 
पर अब ये प्रॉब्लम बढ़  गयी है 
कि तुम्हे भी तन्हा रहने की आदत पड़ गयी है  
मुझमे भी ज्यादा दमखम नहीं बचा है ,
क्योंकि उमर चढ़ गयी है 
न वो जोश ही बचा है ,न वो जज्बा ही रहा है 
और अब तुम भी तो ढल गयी हो ,
तुम में वो पुरानी वाली कशिश ही कहाँ है 
बच्चों ने बसा लिया अपना अपना संसार है 
बेटी ससुराल है 
और बेटा  सात समंदर पार है 
अब इस घोसले में ,मैं हूँ ,तुम हो ,
बस हम दोनों ही प्राणी  फ़क़्त है 
पर अब मैं रिटायर  हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
अब मैं तुम्हारे मनमुताबिक ,
तुम्हारी उँगलियों पर नाच सकता हूँ 
अगर जरूरत पड़े तो तुम्हारे आदेश पर ,
घर के बर्तन भी मांज सकता हूँ 
बाज़ार से फल और सब्जी लाना ,
अब मेरी ड्यूटी में शामिल होगा 
अब मैं हर वो काम करूंगा ,
जो चाहता तुम्हारा दिल होगा 
अब हम दोनों ,फुर्सत  बैठेंगे ,
ढेर सारी बातें होगी 
तुम्हारी हर आज्ञा ,मेरे सर माथे होगी 
शुरू शुरू में कुछ गलतियां हो सकती है ,
जो तुम्हे झल्लाए 
और शायद मेरी कुछ बातें तुम्हे पसंद न आये 
पर मैं कोशिश कर ,खुद को ,
तुम्हारे सांचे में ढाल लूँगा 
बिगड़े हुए रिश्तों को फिर से संभाल लूँगा 
मन मसोस कर ,सब कुछ सह लूँगा,चुपचाप 
ये मेरी जवानी के दिनों में ,तुम्हारी ,
की हुई उपेक्षा का होगा पश्चाताप 
तुम कितने ही ताने मारो या नाराज हो,
तुम्हे बस प्यार ही प्यार मिलेगा ,
क्योंकि अब ये बंदा ,
पत्थर के बदले ,फल देने वाला दरख़्त है 
अब मै रिटायर हो गया हूँ ,मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-