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मंगलवार, 15 अगस्त 2017

क्या इसीलिये हम है स्वतंत्र 

आओ हाथों में पत्थर ले ,हम एक दूसरे पर  फेंकें 
 मन की भड़ास कोदूर करें  ,हम औरों को गाली देके 
एक दूजे की टांग खींच हम ,कोई को भी ना बढ़ने दे  
कोई ना दोस्त किसीका हो,सबको आपस में लड़ने दे 
अपनी निर्माण शक्तियों को हम चलो बनादे  विध्वंशक 
अपने प्रगतिशील विचारों को ,ले जाएँ हम बर्बादी तक 
आजादी की अभिव्यक्ति का हर व्यक्ति लाभ पूरा ले ले 
एक दूजे पर कालिख पोते ,और कीचड़ से होली खेलें 
हम एक दूजे की निंदा कर ,फैलाये गंदगी यत्र तत्र 
क्या ये मतलब आजादी का ,क्या इसीलिये हम है स्वतंत्र 

घोटू 
भाग्य ना बदल सकोगे 

दिन भर लगे काम में रहते,करते मेहनत 
किसके लिए सहेज रहे हो तुम ये दौलत 
क्योंकि तुमको कोई न बुढ़ापे में  पूछेगा 
जो भी तुमने किया ,फर्ज था ,यह कह देगा 
फिर भी ये तुम्हारी ममता या पागलपन 
सोच रहे उसके भविष्य की हो तुम हर क्षण
लाख करो कोशिश ,भाग्य न बदल  पाओगे 
उसके खतिर ,कितना ही धन छोड़ जाओगे 
निकला नालायक ,फूंकेगा,सारी  दौलत 
कर देगा  बरबाद ,तुम्हारी सारी मेहनत 
उसमे कूवत होगी ,ढेर कमा वो लेगा 
ढंग से अपना ,घर संसार ,जमा वो लेगा 
इसीलिये तुम चाहे जी भर उसे प्यार दो 
देना है ,तो उसको अच्छे संस्कार  दो 
अगर बनाना है तो लायक उसे बनाओ 
बुद्धिमान और सबका नायक उसे बनाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू;' 
मोह माया को कब त्यागोगे 

इस सांसारिक सुख के पीछे ,तुम कब तक,कितना भागोगे 
दुनियादारी में उलझे हो , मोह  माया  को  कब  त्यागोगे 

झूंठे है सब रिश्ते नाते ,ये है तेरा  ,ये है मेरा 
तुम तो हो बस एक मुसाफिर ,दुनिया चार दिनों का डेरा 
पता नहीं कब आये बुलावा ,सोये हो तुम,कब जागोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक ,कितना भागोगे
 
धरी यहीं पर रह जायेगी ,ये तुम्हारी दौलत सारी 
साथ न जाती कुछ भी चीजें,जो तुमको लगती है प्यारी 
कुछ घंटे भी नहीं रखेंगे,जिस दिन तुम काया त्यागोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक,कितना भागोगे
 
सबके सब है सुख के साथी,नहीं किसी में सच्ची निष्ठां 
खाये सब पकवान रसीले,अगले दिन बन जाते विष्ठा 
जरूरत पर सब मुंह फेरेंगे,अगर किसी से कुछ मांगोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम  कब तक ,कितना भागोगे 

मदन मोहन बहती'घोटू'

सोमवार, 14 अगस्त 2017

जल से 

ए जल ,
चाहे तू पहाड़ों पर 
उछल उछल कर चल 
या झरने सा झर 
या नदिया बन  कर
कर तू  कल कल 
या कुवे में रह दुबक कर 
या फिर तू सरोवर 
की चार दीवारी में रह बंध कर 
या बर्फ बन जा जम कर 
या उड़ जा वाष्प बन  कर 
या फिर बन कर  बादल 
तू कितने ही रूप बदल 
तेरी अंतिम नियति है पर  
खारा समंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
ये बूढ़े बड़े काँइयाँ होते है 

अरे ये तो सबके आनेवाले जीवन की परछाइयां होते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ  होते है 

जवानी की  कटती हुई पतंग को ,उछल उछल  कर 
ये कोशिश करते  है ,और रखते है पकड़ पकड़ कर 
और उसे फिर से उड़ाने का ,करते रहते है प्रयास 
अपनी ढलती हुई उम्र में भी,मन में लेकर के ये आस 
ऊपरवाले की कृपा से ,शायद किस्मत मेहरबान हो जाए 
या उनकी डोर किसी नई नवेली पतंग से उलझ जाए 
क्योकि पुराने पतंगबाज है ,पेंच लड़ाने  में  माहिर है 
लाख कंट्रोल  करें,पर मचलता ही रहता उनका दिल है 
इसलिए कोशिश कर के ,बहती गंगा में हाथ धोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े  काँइयाँ होते है 

भले ही धुंधलाई सी नज़रों से ,साफ़ नज़र नहीं आता है 
सांस फूल जाती है ,ठीक से चला  भी नहीं जाता  है 
भले ही निचुड़े हुए कपड़ों की तरह शरीर पर सल हो 
चेहरे पर बुढ़ापा ,स्पष्ट नज़र आता हो ,लगते दुर्बल हो 
मगर सजधज कर ,आती जाती महिलाओं को ताड़ते है
कभी तिरछी नज़र से देखते ,या कभी  आँखे फाड़ते है 
बस कुछ ही समझदार है जो कि अपनी उमर विचारते है 
और अपने जैसी ही किसी बुढ़िया पर ,लाइन  मारते है 
वरना बाकी सब तो बस जवान हुस्न के सपने संजोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

हर  बुजुर्ग का अलग अलग ही ,अपना  हाल होता है 
कोई मालामाल होता है तो कोई खस्ताहाल  होता है 
कोई थका तो नहीं है पर फिर भी  रिटायर हो गया है
कोई झुकी हुई  डाल का ,पका हुआ फल हो गया है 
किसी के बच्चे उसे छोड़ कर ,हो गए विदेश वासी है 
इसलिए उसके जीवन में तन्हाई और छाई उदासी है 
फिर भी परिस्तिथियों से समझौता कर के ये जीते है 
बाहर से मुस्कान ओढे रहते  है पर अंदर से  रीते है 
ये अकेलेपन के सताये हुए है,और तन्हाईयाँ ढोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

ऐसे में जो मन बहलाने को जो इधर उधर ताक लेते है 
आते जाते सौंदर्य की तरफ, जो चुपके से  झांक लेते है 
तो ये कोई इनकी शरारत नहीं ,थोड़ा सा टाइमपास है 
जी को लगाने के लिए ये  बस ये ही तो हास परिहास  है 
इनकी हरकतों पर नहीं ,इनकी मनोस्तिथि पर गौर करो 
इनको संवेदना दिखलाओ,इनकी परिस्तिथि पर गौर करो 
इन  हालातों में भी ,उनके जीने के जज्बे को सलाम करो 
इन्हे इज्जत बख्शो ,इनके चरण छुवो और  प्रणाम  करो 
क्योकि आशीर्वाद देने  को ,इनके हाथ हमेशा उठे होते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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