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गुरुवार, 1 सितंबर 2016

'लिव इन रिलेशनशिप '

'लिव इन रिलेशनशिप '

ना तुम लैला ,ना मै मजनू ,
ना तुम शीरी,मै  फरहाद
मंहगाई में जीना मुश्किल,
इसीलिये हम रहते साथ
'लिव इन रिलेशनशिप'याने कि ,
रिश्ता संग संग रहने का
एक दूजे संग ,हाथ बटा कर,
सुख दुःख  सारे सहने का
यूं भी लड़की ,रहे अकेली,
तो जीना अति मुश्किल है
बहुत भेड़िये ,घूमा करते ,
जिनकी नीयत कातिल है
इनसे बचने का ये भी ,
आसान तरीका लगता है
एकाकीपन से बच जाते ,
और खर्चा भी बंटता  है
लड़का वर्किंग,लड़की वर्किंग,
थके हुए जब घर आते
एक दूसरे का थोड़ा सा ,
साथ,सहारा पा जाते
कई बार यूं संग संग रहना,
शौक नहीं,मजबूरी है 
यूं भी परख ,एक दूजे की,
करना बहुत जरूरी है
यह तो एक रिहर्सल सी है,
आने वाले जीवन की
आपस की 'अंडरस्टेंडिग '
और मिल जाने की,मन की 
ऐसे साथी ,समझ सके जो ,
एक दूसरे के जज्बात
आपस में यदि,दिल मिल जाते,
तो फिर बन जाती है बात
घरवाले,कोई के पल्ले,
बांधे,इससे ये अच्छा
ऐसा जीवन साथी ढूंढो ,
प्यार करे तुमसे सच्चा
कई बार कुछ बातें होती,
जो करवाते है  हालात
मंहगाई में जीना मुश्किल ,
इसीलिये हम रहते साथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 24 अगस्त 2016

वह सुबह कभी तो आएगी

      वह सुबह कभी तो आएगी

कोई भी आदमी ,सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता ,
गलतियां हर एक से हुआ करती है
पर जो काम किया करते है ,
उन्ही से तो होती गलती है
कमी, किसमे नहीं होती,
कौन शतप्रतिशत नम्बर पाता है
पर साठ प्रतिशत से अधिक नंबर पानेवाला ,
भी 'फर्स्ट क्लास'कहलाता है
अल्लाह मियां भी कभी कभी गलती कर देता है
किसी किसी को पांच की जगह ,
छह उँगलियाँ दे देता है
 गलतियां निकालना बड़ा सरल होता है,
ये बात जग जाहिर है
और अकर्मण्य ,जो खुद कुछ नहीं करते,
दूसरे  गलती निकालने में ,होते माहिर है
आपको ,अपनी की हुई गलतियां,नज़र नहीं आती,
जब तक कि कोई आलोचक न हो
पर वो आलोचनाएं ,सुधारक नहीं होती है ,
 जो स्वस्थ न हो 
और पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो
ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान ही मत दो,
वरना पछतायेंगे
कीचड़ में पत्थर फेंकोगे तो
छींटे आप पर ही आएंगे
अगर कोई रिएक्ट नहीं करेगा ,
तो वो अपने आप ही चुप हो जाएंगे
केंकड़ों की तरह ,एक दुसरे की टांग खींच,
किसी को भी ,गड्ढे से निकलने से रोकना ,
गलत है
कोई आगे बढ़ना चाहता है ,
तो उसकी राह में रोड़े अटका कर ,
आगे न बढ़ने देना  गलत है
प्रगति  को गति  तब  मिलती है,
जब सब मिल कर ,देश को आगे धकेले
कोई भी चना ,भाड़ नहीं फोड़ सकता,अकेले
आओ ,हम सब एक जुट होकर ,
देश को प्रगतिपथ पर बढ़ा दे
वैमनस्यता की कुछ लकीरे ,
जो जाने अनजाने खिंच गयी है ,
 प्यार के 'इरेजर'से उन्हें मिटा दे
भाईचारे की फसल को ,
अगर सब मिल कर ,प्यार से सींचेंगे ,
तभी तो समृद्धि की फसल लहलहायेगी
वह सुबह कभी तो आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

वह सुबह तो आएगी

      वह सुबह तो आएगी

कोई भी आदमी ,सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता ,
गलतियां हर एक से हुआ करती है
पर जो काम किया करते है ,
उन्ही से तो होती गलती है
कमी, किसमे नहीं होती,
कौन शतप्रतिशत नम्बर पाता है
पर साठ प्रतिशत से अधिक नंबर पानेवाला ,
भी 'फर्स्ट क्लास'कहलाता है
अल्लाह मियां भी कभी कभी गलती कर देता है
किसी किसी को पांच की जगह ,
छह उँगलियाँ दे देता है
 गलतियां निकालना बड़ा सरल होता है,
ये बात जग जाहिर है
और अकर्मण्य ,जो खुद कुछ नहीं करते,
दूसरे  गलती निकालने में ,होते माहिर है
आपको ,अपनी की हुई गलतियां,नज़र नहीं आती,
जब तक कि कोई आलोचक न हो
पर वो आलोचनाएं ,सुधारक नहीं होती है ,
 जो स्वस्थ न हो 
और पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो
ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान ही मत दो,
वरना पछतायेंगे
कीचड़ में पत्थर फेंकोगे तो
छींटे आप पर ही आएंगे
अगर कोई रिएक्ट नहीं करेगा ,
तो वो अपने आप ही चुप हो जाएंगे
केंकड़ों की तरह ,एक दुसरे की टांग खींच,
किसी को भी ,गड्ढे से निकलने से रोकना ,
गलत है
कोई आगे बढ़ना चाहता है ,
तो उसकी राह में रोड़े अटका कर ,
आगे न बढ़ने देना  गलत है
प्रगति  को गति  तब  मिलती है,
जब सब मिल कर ,देश को आगे धकेले
कोई भी चना ,भाड़ नहीं फोड़ सकता,अकेले
आओ ,हम सब एक जुट होकर ,
देश को प्रगतिपथ पर बढ़ा दे
वैमनस्यता की कुछ लकीरे ,
जो जाने अनजाने खिंच गयी है ,
 प्यार के 'इरेजर'से उन्हें मिटा दे
भाईचारे की फसल को ,
अगर सब मिल कर ,प्यार से सींचेंगे ,
तभी तो समृद्धि की फसल लहलहायेगी
वह सुबह कभी तो आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

मगर मस्ती नहीं करता

       मगर मस्ती नहीं करता

मै हरदम मस्त रहता हूँ,मगर मस्ती नहीं करता
मटर तो खूब खाता पर , मटरगश्ती  नहीं करता
हुआ अभ्यस्त जीने का ,मैं रह कर व्यस्त अपने में,
जबर तो लोग कहते पर  ,जबरजस्ती नहीं करता
न तो चमचागिरी आती,न मै मख्खन लगा पाता ,
स्वार्थ के वास्ते ,मैं आस्था ,सस्ती नहीं करता
अगर जो तनदुरस्ती है ,हजारों ही नियामत है ,
इसलिए चुस्त मै रहता ,तनिक सुस्ती नहीं करता
खुदा ही एक हस्ती है,जो मेरे मन में बसती है,
किसी भी और की लेकिन ,परस्ती मैं नहीं करता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लेकिन वक़्त गुजर जाता है

          लेकिन वक़्त गुजर जाता है

रोज सवेरे सूरज उगता ,और शाम को ढल जाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता,लेकिन वक़्त गुजर जाता है 
मुझको कोई काम नहीं है, फिर भी रहता बड़ा व्यस्त हूँ
कई बार बैठे  ठाले  भी ,मै हो जाता  बड़ा पस्त  हूँ
दिनचर्या वैसी बन जाती, जैसी आप बना लेते है
छोटी  छोटी बातों में भी,ढेरों खुशियां पा लेते  है
अगर किसी से मिलो मुस्करा,तो अगला भी मुस्काएगा
अगर किसी को गाली दोगे ,गाली में उत्तर आएगा
बुरा मान कर ,किसी बात का,खुद का चैन चला जाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता लेकिन वक़्त गुजर जाता है
कभी किसी से ,कोई अपेक्षा ,अगर रखोगे,पछताओगे
हुई न पूरी ,अगर अपेक्षा,अपने मन को तड़फाओगे
जिन्हें बदलना ना आता हो,उन्हें बदलना ,बड़ा कठिन है
बेहतर है तुम खुद को बदलो,यह आसान और मुमकिन है
जीवन मंथन से जो निकले ,गरल ,उसे शिव बन कर पी लो
जितनी भी अब उमर बची है ,नीलकण्ठ बन कर ही जी लो
सुख का अमृत पीने वाला ,तो हर कोई मिल जाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता ,लेकिन वक़्त गुजर जाता है
बार बार जब हृदय टूटता ,असहनीय पीड़ा होती है
लोगों का व्यवहार बदलता ,देख आत्मा भी रोती है
कभी पहाड़ सा दिन लगता है,लम्बी लम्बी लगती रातें
यादों के जब बादल छाते ,होती आंसू की बरसातें
धीरे धीरे भूल गया हूँ  ,मेरे संग अब तक जो बीता
छोड़ पुरानी बातें कल की ,मैं हूँ सिर्फ आज में जीता
पर दुनियादारी बन्धन से ,छुटकारा कब मिल पाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता ,लेकिन वक़्त गुजर जाता है
चेहरे पर आ रही नज़र अब ,बढ़ती हुई उमर की आहट
छोटी छोटी बातों में भी, अक्सर  होती है  घबराहट
होती कभी सवार सनक कुछ,कभी कभी जिद पर आता मन
लोग बात ये बतलाते है ,ये है सठियाने के लक्षण
तन की उमर अधिक जब बढ़ती,तो मन बच्चा हो जाता है
कभी कभी गुमसुम चुप रहता ,तो फिर कभी मचल जाता है
उगते और ढलते सूरज में,कभी नहीं बनता नाता है
मैं  कुछ भी ना करता धरता ,फिर भी वक़्त गुजर जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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