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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

मिली हो जबसे तुम हमसे

       मिली हो जबसे तुम हमसे

मिली हो जबसे,तुम हमसे ,हुए है बावरे से हम
न सर्दी है ,न गर्मी है,बसंती   लगता हर मौसम
झिड़कती प्यार से जब तुम,बरसने फूल लगते है
कभी जब मुस्करा देती ,हमे कर देती हो बेदम
तुम्हारे खर्राटे  तक भी ,मधुर लोरी से लगते है ,
तुम्हारी रोज की झक झक ,लगा करती हमे सरगम
तुम्हारे हाथों को छूकर ,कोई भी चीज जो बनती,
बड़ी ही स्वाद लगती है ,न होती पकवानो से कम
बनाती हो जो तुम फुलके ,वो लगते मालपुवे से,
तुम्हारी सब्जियां खाकर ,उँगलियाँ चाटते है हम
 इसी डर से,कहीं तुम पर ,नज़र कोई न लग पाये  ,
लटकते नीबू  मिरची से ,तेरे दर पे है हाज़िर हम
तुम्हे खुश रखने में जानम ,निकल जाता हमारा दम
खुदा का शुक्रिया फिर भी,मिली तुम जैसी है हमदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलता बचपन और आज

           बदलता बचपन और आज

रह रह मुझे याद आता है,अपना सुन्दर,प्यारा  बचपन
चहल  पहल रहती थी घर में,पांच सात थे भी बहन हम
एक दूसरे  का ,आपस में  ,हरदम ध्यान रखा जाता था
धीरे धीरे ,स्वावलम्बी , बनना सबको  आ  जाता  था
देख देख कर ,एक दूजे को ,खुद ही बहुत सीख जाते थे  
लाइन लगा ,बैठ चौके में  ,गरम गरम खाना खाते थे
बड़े भाई के ,छोटे कपड़े ,माँ छोटों को पहनाती थी 
और बड़ों की सभी किताबें ,छोटों के भी काम आतीं थी
वर्किग है माँ बाप आजकल,इतना बदला रहन सहन है
अब बच्चे 'क्रैचों 'में पलते ,एकाकी,ना भाई बहन  है
भाई बहन की भीड़ भाड़ में ,तब बच्चे खुद पल जाते थे
कर आपस मे ,सलाह,मशवरा ,आगे बहुत निकल जाते थे
शिशु आजकल 'क्रैचों 'में,फिर बोर्डिंग में  डाले  जाते है
प्यार नहीं ,वैभव दिखला कर,अब बच्चे पाले जाते है
दौड़ कॅरियर की फिर उनको,कामो मे इतना उलझाती
जीवन की इस उहापोह में,आत्मीयता, पनप न पाती
हमने उनका बचपन छीना ,उसका हमे मिल रहा बदला
आज हमारी संतानो का ,है रुख काफी बदला  बदला
व्यस्त बहुत माँ बाप हो गए ,बच्चो के हित समय नहीं है
बड़े हुए तो मात पिता हित ,बच्चों को भी समय नहीं है 
जैसा किया ,भुगतते वैसा,अंतर अधिक न उनमे,हममे
हमने भेजा 'क्रैच 'बोर्डिंग ,भेज रहे वो  वृद्धाश्रम  में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

बारात में

       बारात  में 

 शादी में उनकी क्या बताएं ,कैसे ठाठ थे
थे ढेर सारे स्नेक्स और स्टाल   चाट  के 
क्या खायें और क्या चखें,मुश्किल में पड़े थे ,
वेटर बुलाते एक, तो आ जाते   आठ थे

व्यंजन हजारों खाने की टेबल की शान थे
एक एक से बढ़ ,एक हसीं ,मेहमान थे  
खाने पे जोर दे कि खानेवालों को देखें,
  दुविधा फंसे ,हम तो यूं ही परेशान थे 

 फंक्शन में उनके रौनकें कुछ ऐसी रही थी
खाना था लाजबाब और शराब बही थी 
चटखारे लेके बोला एक बूढा सा बराती ,
दुल्हन तो दुल्हन ,उसकी माँ भी ,कम तो नहीं थी    

घोटू             

कोई लड़की नहीं पटती

               कोई लड़की नहीं पटती

समा जाती है आआ कर,न जाने कितनी ही नदियां ,
              है हम गहरे समंदर वो,कोई तो बात है  हम में
भले ही पानी खारा है ,बुझा ना प्यास भी पाते,
              मगर विस्तृत बड़े है हम ,कशिश कुछ ख़ास है हम में
नहीं,छिछले,छिछोरे है ,बड़े गंभीर ,गहरे है,
                      भरे है मोती,रत्नो से ,रईसी खानदानी है
तरंगे मन में उठती है ,जो सबको खींच लेती है ,
                       उमंगें जोश तूफानी,भरी हम में जवानी है
किस समय रखना 'लो टाइड'किस समय ज्वार ले आना,
                          पुराने ये तजुर्बे है,जो हरदम काम आते है
न कोई जाल फेंकें है ,न डाले कोई भी काँटा ,
                     करोड़ों मछलियाँ प्यारी ,मगर फिर भी फंसाते है
मगर कुछ कुवे ,सरवर है ,भरा जिनमे मधुर जल है ,
                          नदी कोई भी भूले से,उधर का रुख नहीं करती
अगर अपने ही अपने में ,सिमट कर कोई रहता है ,
                       कोशिशे लाख करले पर ,कोई लड़की नहीं पटती 
 'घोटू '
                      
  '            
             
               

मज़ा

              मज़ा

न आता गर्म बालू से,गरम पानी की थैली से ,
        है तपती धूप में आता ,मज़ा असली सिकाई का
न सूखी बर्फियों में है ,न लड्डू ,बालूशाही में,
       जलेबी की टपकती चाशनी , सुख है  मिठाई  का
लूटते चोर डाकू और बड़े शोरूम मालों में ,
        मज़ा लेकिन निराला है ,हसीनो की लुटाई का 
मज़ा ना मार में माँ की,पिता की या कि टीचर की,
         मज़ा कुछ और ही होता है बीबी से  पिटाई का

घोटू

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