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रविवार, 14 फ़रवरी 2016

अपना अपना नज़रिया

        अपना अपना नज़रिया

सूरज अपने पूर्ण यौवन पर था,
रोशनी बरसा रहा था
तभी एक मुंहजोर बादल ने ,
उसे ढक  लिया
धूप ,घबरा कर ,ऐसे छुप गयी ,
जैसे अपने प्रेमी संग ,
खुलेआम ,रंगरेलियां मनाते हुए ,
पुलिस ने पकड़ लिया
एक मनचला बोला ,
ऐसा लगता है जैसे ,
किसी रूपसी प्रेयसी को ,
उसके प्रेमी ने  बाहों में कस लिया है
मुझे लगा कि किसी ,
परोपकार करते हुए ,सज्जन पुरुष को,
अराजक तत्वों के,
 तक्षक ने  डस लिया है
दार्शनिक ने कहा ,
जैसे जीवन में सुख दुःख ,
हमेशा आते ही रहते है
उसी तरह ,हर चमकते सूर्य पर ,
बादल छाते ही रहते है
झगड़ालू बोला,
इस बादल ने मेरे घर में आते,
प्रकाश को अवरुद्ध किया है
यह कार्य ,मेरे मौलिक अधिकारों के ,
विरुद्ध किया है
पसीने में तरबतर राही को,
थोड़ी सी छाँव मिली ,
तो आनंद की प्रतीति हुई
किसी बावरे कवि को,
बादल की कगारों  से निकलती ,
रश्मियों को देख कर ,
कंचुकी में से झांकते ,
यौवन की अनुभूती हुई
ये भी हो सकता है  कि संध्या ने ,
अपने प्रिय को जल्दी बुलाने के लिए ,
प्रेम की पाती लिख कर,
भेजा संदेशा है
या सूर्यलोक के सफाई कर्मियों ने ,
समय पर तनख्वाह न मिलने पर,
ढेर सा कचरा ,सूरज पर फेंक दिया ,
मुझे ऐसा अंदेशा है
ये भी हो सकता है कि ,
सूर्य के तेज से घबरा कर,विरोधी दल,
उसे काले झंडे दिखा रहे हो
और अपने अस्तित्व का ,
आभास करवा रहे हो
तभी केजरीवाल ने ,
प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवा कर बयान  दिया,
ये केंद्र सरकार ,
बार बार बादलों को भेज कर ,
मेरे चमकीले कार्यों को ,
ढांकना चाहती है ,
इसलिए मैं राष्ट्रपति जी को ज्ञापन दूंगा
कि आसमान का प्रशासन भी ,
मुझे सौंप दिया जाय ,
मै इसे दो दिन में ,ठीक कर दूंगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 


प्यार अगर हो तो जैसे दिल-जिस्म का...


प्यार,
अगर हो तो
हो चौबीसों घंटे का
हो पूरे महीने का
हो पूरे साल का
हो जीवनभर का,
जैसे होता है
दिल और जिस्म का...
जिस्म रहता है 
हमेशा संभाले हुए दिल को
फूल की तरह,
और दिल
चलता रहता है
धड़कता रहता है
हमेशा-हमेशा
जिस्म के लिये...
रिश्ता खत्म
प्यार खत्म
तो समझो
खेल खत्म...

हैप्पी वैलेंटाइंस डे

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

पिचत्तरवें जन्मदिवस पर

   पिचत्तरवें जन्मदिवस पर

वर्ष  चौहत्तर  ऐसे  काटे
मैंने सबके सुखदुख बांटे
कुछ मित्र मिले थे अनजाने
कुछ अपने, निकले बेगाने
कोई से मन के मिले तार
कोई अपनो की पडी मार
जब थका  किसी ने दुलराया
कोई ने ढाढ़स  बंधवाया
कोई ने कर तारिफ़ जब तब
साधे अपने अपने  मतलब
कोई ने खोटी खरी  कही
मैंने हंस कर हर बात सही
कुछ रिश्तेदारी,कुछ रस्मे
कुछ झूंठे वादे ,कुछ कसमे
कुछ आलोचक तो कुछ तटस्थ
बस,यूं ही सबने रखा व्यस्त
माँ ने ममता का निर्झर बन
बरसाई आशीषें ,हर क्षण
थे प्यार लुटाते ,भाई बहन
तो दिया पिता ने अनुशासन
सहचरी ,सौम्या मिली प्रिया
जिसने हर पल पल साथ दिया
अपने में खुश सन्तान पक्ष
इच्छित सबको मिल गया लक्ष
है  आशीर्वाद साथ  माँ का
और मित्रों की शुभ आकांक्षा
ये ही मेरी संचित पूँजी
इससे बढ़ दौलत ना दूजी
जीवन गाडी, कट रहा सफ़र
चूं चरर मरर ,चूं चरर मरर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


खो दिए फिर हमने वीर

देश की शान के लिए खड़े जो,
हर मुश्किल में रहे अड़े जो,
मौत से हारे वो आखीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

मातृभूमि की लाज के लिए,
लड़ते रहे जो जीवन भर,
अमन-चैन के लिए जिये वो,
कभी नहीं उन्हे लगा था डर ।

प्रकृति से हार गए वो,
जीवन अपना वार गए वो,
चले तोड़ जीवन जंजीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

कभी हैं छल से मारे जाते,
कभी अपनो से धोखा खाते,
आतंक को धूल सदैव चटाया,
कर्तव्य को पर नहीं भुलाते ।

अश्रुपूरित हर नेत्र है आज,
देश की पूरी एक आवाज,
श्रद्धा सुमन अर्पित बलबीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

-प्रदीप कुमार साहनी

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

प्रिये क्यों

तनिक विलंब जो हुई है हमसे,
मुख मंडल यूँ क्षीण प्रिये क्यों,
अति लघु सी एक बात पे तेरे,
नैन यूँ तेज विहीन प्रिये क्यों ?

प्रेम प्रतीक्षा का सुख हमने,
भोग लिया है आज परस्पर,
जैसे तुम अधीर यहाँ थी,
मैं भी न धरा धीर निरंतर ।

मधुर मिलन की इस बेला में,
मन ऐसे मलीन प्रिये क्यों,
सुखदायक क्षण में ऐसे यूँ,
हृदय ये ऐसा दीन प्रिये क्यों ?

आलिंगन आतुर भुज दोनो,
मौन मनोरथ में हैं लागे,
अभिलाषा तेरी भी ऐसी,
क्यों न फिर आडंबर भागे ?

अधर हैं उत्सुक, करें समर्पण,
पद तेरे गतिहीन प्रिये क्यों ?
हृदय दोऊ हैं एक से आकुल,
अब भी लाज अधीन प्रिये क्यों ?

नयन भाव विनिमय को बेकल,
अधर सुस्थिर क्या है माया,
तू मुझमे निहित प्रिये है,
और मुझमे तेरी ही छाया ।

श्वास मध्य न भिन्न पवन हो,
प्रेम में न हो लीन प्रिये क्यों,
अंतर्मन भी एक हो चले,
खो न हो तल्लीन प्रिये क्यों ?

-प्रदीप कुमार साहनी

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