एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 6 जनवरी 2016

सर्दी -गर्मी

         सर्दी -गर्मी

सर्दी क्या आई ,गर्मजोशी आपकी गयी ,
होता है मुश्किलों से ही दीदार मयस्सर
ऐसा छुपा के रखते हो तुम अपने आप को,
स्वेटर है,स्वेट शर्ट है ,और अंदर है इनर
बिस्तर पे भी पड़ता  है हमें ,तुमको ढूंढना ,
ऐसी  रजाई छाई रहती जिस्मो जिगर पर
छूना तुम्हारा जिस्म भी मुश्किल अब हो गया,
अब तो बर्फ की सिल्ली से तुम हो गए डियर
आती है याद गर्मीयो की  रातें वो प्यारी ,
खुल्ला खुल्ला सा रूप था वो ख़ास तुम्हारा
पंखे की तरह घूमता था बावरा सा  मैं ,
होता था सांस सांस में  अहसास  तुम्हारा
खुशबू से भरे तन पे रहता नाम मात्र को ,
वो हल्का,प्यारा ,मलमली  ,लिबास तुम्हारा
ऐ.सी. की ठंडक में भी बड़ी लगती  हॉट थी ,
आता है याद रह रह वो रोमांस तुम्हारा 

घोटू

समर्पित कार्यकर्ता

    समर्पित कार्यकर्ता 

समर्पित कार्यकर्ता ,जनसेवक महान
सीधा सादा व्यक्तित्व,यही उनकी पहचान
यदि मोहल्लेवाले किसी ने भी,
कोई आयोजन किया है
तो उनका प्राकट्य ,
एक सहज प्रक्रिया है
यहाँ उनकी जनसेवा की भावना ,
प्रशंसनीय होती है
कुर्सी ,जाजम बिछाने से लेकर ,
जलपान की व्यवस्था के समापन तक ,
उनकी व्यस्तता ,दर्शनीय होती है
कैसे भी आगे की कुर्सी हथियाना,
कोई भी फोटो के अपनी गर्दन घुसाना ,
जलपान में दिए जानेवाले ,
खाद्यपदार्थों के स्वाद की उत्कृष्टता का,
पूर्व परीक्षण कर ,ये देते सर्टिफिकेट है
और समापन के बाद ,
बची हुई खाद्यसामग्री को सलटाने की ,
समुचित व्यवस्था ,
उनके सामाजिक कर्तव्यों में एक है
वो हर समारोह में ,मंडराते पाये जाते है
हर फोटो में नज़र आते है
और अपनी सेवामयी ,कार्यकुशलताके कारण,
मोहल्ले में अच्छी तरह पहचाने जाते है
वो एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्त्ता है
उनके बिना हर कार्यक्रम ,अधूरा  लगता है
वो स्वयं सेवक बन ,स्वयं की सेवा का भी ,
रखते बड़ा ध्यान है
ऐसे समर्पित कार्यकर्ता पर ,
हमारे पूरे मोहल्ले को अभिमान है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

दास्ताने मख्खी

         दास्ताने मख्खी

एक मख्खी ,
जो नंगे पैरों ,
गाँव की गलियों में खेली थी
जिसकी बीसियों सहेली थी
एक दिन खेलती खेलती ,
एक  खड़ी हुई कार में गई चली  
खुशबूमय स्वच्छ वातावरण देख ,
 हो गई बावली
नरम नरम सीटों पर ,
बैठ कर इतराई
उछली,कूदी,सहेलियों ने बुलाया ,
बाहर ना आयी
अचानक कार चली
मच गयी खलबली
संकुचित सी जगह में ,
इधर उधर भागी
पर रही अभागी
परेशान कार के मालिक ने ,
थोड़ा सा शीशा उठा भर दिया
और बीच सड़क पर ,
उसे कार से बाहर कर दिया
अब वह बीच जंगल में ,
अकेली भटक रही है
कोई साथी संगी नहीं है
बेचारी ,जो दीवानी थी ठाठ की
ना घर की रही ,न घाट  की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

घोटू जी पार्टियों में ,पीते नहीं है पानी

  घोटू जी पार्टियों में ,पीते नहीं है पानी

कुछ मॉकटेल पीते, कुछ कॉकटेल पीते ,
कुछ फ्रेश ज्यूस हो तो फिर बात है सुहानी
हो दूध की  कढ़ाही ,तो तीन चार कुल्हड़ ,
सात आठ गोलगप्पे  भर खट्टामीठा पानी
कुछ सूप पिया करते या गर्म गर्म कॉफी,
कुछ रायता दही का या दाल फिर मखानी
कुछ रसमलाई का रस,कुछ जमी हुई कुल्फी ,
घोटू जी पार्टियों में ,पीते नहीं है पानी

घोटू

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-