एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

जल कण

          जल कण

स्नानोपरांत ,
तुम्हारे कुन्तलों से टपकती हुई ,
जल की बूँदें ,
तुम्हारे कपोलों को सहलाती हुई ,
जब तुम्हारे वक्षस्थल में समाती है
बड़ी सुहाती है
ऊष्मा से उपजी ,
स्वेद की धारायें ,
जब तुम्हारे गालों पर बहती है
तुम्हारा श्रृंगार बिगाड़ देती है
भावना से अभिभूत हो,
तुम्हारी आँखें,
जब मोती से आंसू टपकाती है
तुम्हारे गालों पर,
अपनी छाप छोड़ जाती है
सुख में या अवसाद में ,
या किसी की याद में ,
बारिश या धूप में
किसी भी रूप में ,
जल के कण ,
जब भी मौका पाते है
तेरे गालों को सहलाते है
बड़े इतराते है
काश मैं भी ……

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंहगाई की महिमा

           मंहगाई की महिमा

औरत को घर की मुर्गी ,कहते थे लोग अक्सर
और उसकी हैसियत थी  बस दाल के बराबर
दालों का दाम जब से  ,आसमान  चढ़  गया है
वैसे ही औरतों का  ,रुदबा  अब  बढ़  गया है
मुर्गी और दाल सबको ,मंहगा  बना दिया  है
मंहगाई  तूने   अच्छा , ये  काम तो किया है

घोटू

स्विमिंगपूल और डेंगू

            स्विमिंगपूल और डेंगू
                         १
अदना सा देख कर के ,'इग्नोर'नहीं करना,
                हर शख्सियत की होती ,अपनी ही अहमियत है
जो काम होता जिसका , करता है अच्छा  वो ही ,
                 तलवार  क्या  करे जब ,सुई   की   जरूरत   है
कहते है हाथी तक भी, घबराता चींटी से है,
                   वो सूंड में जा उसकी ,  कर  देता  मुसीबत है
कल तक जो था लबालब ,हम तैरते थे जिसमे,
                  डेंगू के  डर  से खाली ,स्वमिंगपूल   अब  है
                       २
मच्छर जिसे हम यूं ही ,देते मसल मसल थे ,
                 अब तोप से भयानक  ,उसकी नसल हुई है
डेंगू के इस कहर से ,सब कांपने लगे है,
                  कितनी  दवाइयाँ  भी ,अब बेअसर  हुई  है
डेंगू के  डर से  देखो, अब हो  गया है खाली,
                 था कल तलक लबालब ,जो तरणताल प्यारा
जबसे गयी जवानी, हम हो गए है खाली ,
                 इस तरणताल  सा ही ,अब हाल   है  हमारा
                            ३      
तुच्छ को तुच्छ कभी ,मत समझो भूले से ,
               बड़े बड़े उच्चों को ,ध्वंस कर सकता है
छोटी सी लड़की ने ,संत को पस्त   किया ,
               आज भी आसाराम ,जेल में  सड़ता है
तुच्छ सी तीली से ,जंगल जल जाता है,
                तुच्छ सी गोली से ,प्राण निकल सकता है
छोटा सा मच्छर भी ,अगर काट लेता है,
               मलेरिया ,डेंगू से ,बड़ा  विकल  करता  है
                     
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 13 सितंबर 2015

घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

        घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

जो  बड़े रौब से कहते है ,हम घर के करता धरता  है
पर सभी जानते है उनपर ,बीबी का शासन चलता है
सब पति जोरू के है गुलाम ,बाहर गर्वित हो फूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिट्टी के चूल्हे  है
हर युवा देखता ही रहता ,शादी का सपन  सुहाना है
शादी कर जब कि गृहस्थी के,चक्कर में बस फंस जाना है
फिर भी जाने क्यों ख़ुशी ख़ुशी ,घोड़ी पर चढ़ते दूल्हे है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिटटी के चूल्हे है
सब लोग चाहते है  बेटा ,जो कुल का नाम चलाएगा
शादी करके वो पत्नी का ,लेकिन गुलाम हो जायेगा
माँ बाप ध्यान रखती बिटिया ,और बेटे उनको भूले है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिट्टी के चूल्हे है
होता चुनाव तो हर पार्टी ,आश्वासन,भाषण देती है 
जब जाती जीत, किया करती ,वादों की ऐसी तैसी है
कुर्सी पर बैठ सभी नेता  ,अपने सब वादे  भूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिटटी के चूल्हे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बिगड़ी बातें


            बिगड़ी बातें

बीबी की ख्वाइश पूर्ण न हो,बीबी का मूड बिगड़ता है
बीबी की ख्वाइश  पूर्ण करो ,तो घर का बजट बिगड़ता है
बच्चों की जिद पूरी न करो ,तो हम पर वे बिगड़ा करते
और उनकी हर जिद पूर्ण करो तो बच्चे है बिगड़ा करते
जब दूध बिगड़ता,फट जाता,उसमे खटास आ जाता है
जब रिश्ते बिगड़ा करते है ,मन में खटास आ  जाता है
फसलें बिगडे ,हो बर्बादी  ,बेबस किसान बस रोता है
 नस्लें बिगड़े बन तालिबान ,सारा जहान तब रोता है
जब उन्हें देखते सजा धजा ,अपना ईमान बिगड़ता है
जो छेड़छाड़ थोड़ी करते ,उनका श्रृंगार  बिगड़ता  है
उनका मिजाज बिगड़ जाए ,घर भर सर पर उठ जाता है
कोई की तबियत जब बिगड़े ,तो वो बीमार कहलाता है
दफ्तर पहुँचो यदि देरी से ,गुस्सा  हो बॉस बिगड़ जाता
जब पोल किसी की खुलती है तो सारा खेल बिगड़ जाता
सब कहते बंद हो गयी है ,यदि घड़ी बिगड़ जो जाती है
लड़की जब बिगड़ा करती है ,तो वो 'चालू' हो जाती है
सत्ता विपक्ष में ना पटती ,आपस में बात बिगड़ती है
परिणाम भुगतती है जनता ,उनकी लड़ाई जब बढ़ती है
मौसम जो अगर बिगड़ जाता ,तो बड़ा कहर वो ढाता है
बस एक वो ऊपरवाला है ,सब बिगड़ी  बात बनाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-