एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

कच्चा -पक्का

      कच्चा -पक्का
कच्ची उमर का प्यार
रहता है दिन चार
कचनार की कच्ची कली
लगती है मन को भली
कच्चे धागों का बंधन
बांधे रखता है आजीवन
कच्ची नींव पर बनी इमारत 
खड़ी रहेगी कब तक?
जो  कान का कच्चा होता है
कई बार खाता धोखा है
कच्ची केरी जब पकती है
मिठास से भरती  है
आम जब ज्यादा पक जाता है
डाल से टपक जाता है 
पका हुआ पान
न खांसी  न जुकाम
कोई अपनी बातों से पका देता है
सबको थका देता है
पका हुआ खाना जल्दी पचता है
पक्का रंग मुश्किल से निकलता है
संगीत के सुरों से सजता है गाना पक्का
आजकल तो पैसा भी होता है कच्चा पक्का 

घोटू

दो क्षणिकाएँ

      दो क्षणिकाएँ
             १
वो बेटा ,
जो होता है माँ बाप की आँखों का तारा,
जिसमे उनके प्राण अटकते है
बूढ़े होने पर वो ही माँ बाप ,
उस बेटे की आँखों में खटकते है
               २
वृक्ष की डाल ,
जब फलों से लद  जाती है ,
थोड़ी झुक जाती है
आदमी ,बुढ़ापे में ,
जब अनुभव से लद जाता है,
उसकी कमर झुक जाती है
समझदार ,वो कहलाते है
जो लदे  हुए फलों का
और बुढ़ापे के अनुभवो का ,
फायदा उठाते है

घोटू 

बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति

      बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति

महाकवि बिहारी जी का एक दोहा है -
"कहलाते एकत बसत ,अही,मयूर,मृग,बाघ
  जगत तपोवन सो कियो,दीरघ,दाघ ,निदाघ "
(भावार्थ-भीषण गर्मी के कारण,एक दू सरे के दुश्मन
सर्प और मयूर या मृग और बाघ ,एक वृक्ष की छाँव
में ,साथ साथ बैठ ,गर्मी से बचने की कोशिश कर रहे है
गर्मी ने जगत को तपोवन की तरह बना दिया है )
आज बिहार की राजनैतिक स्तिथि भी ठीक वैसी ही है
और इसी से प्रेरित हो चार नए दोहे प्रस्तुत है    
                                १
  इक दूजे को गालियां ,देते थे जो रोज
इस चुनाव ने बदल दी ,उनकी सारी सोच
                            २
मोदी  तेरे  तेज से ,सभी  हुए  भयभीत
आपस में मिलते गले ,दिखा रहे है प्रीत
                           ३
लोकसभा की हार की ,अब तक मन में टीस
साथ आगये  सोनिया ,लालू  और  नितीश
                        ४
बाहर दिखता  मेल है, पर  है मन में मैल
देखो क्या क्या कराता ,राजनीति का खेल      
   
और अंत में फिर बिहारी जी का एक दोहा -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु,नहीं विकास इहि काल
अली  कली  से ही  बंध्यो,  आगे  कौन   हवाल "
इस दोहे को समयानुसार थोड़ा परिवर्तित कर दिया है -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु ,नहीं विकास इहि काल
 लालू   बंध्यो   नितीश  से , आगे  कौन   हवाल "

शुभम भवतु
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                        
 

      
                 
                   

सोमवार, 31 अगस्त 2015

जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ

        जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ
मैं चापलूस हूँ
मेरा जिससे मतलब होता है ,
या जिससे मैं डरता हूँ
मैं उनकी चापलूसी करता हूँ
उसे खूब मख्खन लगाता हूँ
चने के झाड़ पर चढ़ाता हूँ
हर इंसान में ,तारीफ़ करवाने की ,
एक भूख होती है ,मैं उसे शांत करता हूँ
अपना मतलब निकालता हूँ,
और तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता हूँ
आप क्या सोचते है ,
ये जो होते  पोस्टिंग और प्रमोशन है 
क्या सब काबलियत के कारण है
इसमें कुछ का आधार तो आरक्षण है
और बाकी की वजह ,
चापलूसी और मख्खन है
भगवान ने आदमी को जो दी ये जुबान है
ये सोने की खदान है
जब ये सही दिशा में चलती  है
सोना उगलती है
चापलूसी ,इस जुबान का सही जगह,
सही तरीके से इस्तेमाल है
 ये दिखलाती कमाल है
आपके दोनों हाथों में लड्डू दे  ,
 पॉकेट में भर देती माल है
चापलूसी करने में आपका क्या जाता है
किसी की तारीफ़ में कुछ बोल दो,
जो उसे सुहाता है
न हींग लगती न फिटकड़ी ,
फिर भी रंग चोखा आता है
इसलिये जम कर मख्खन लगाता हूँ
और इसमें बिलकुल नहीं कंजूस हूँ
जी हाँ,मैं चापलूस हूँ
ये चापलूसी बड़े कामकी चीज होती है
जीवन में खुशियों के मोती पिरोती है
किसी लड़की को पटाना है
रूठी  बीबी को मनाना है
तो चापलूसी ही काम आएगी
अपनी बीबी की तारीफ़ कर दीजिये ,
वो आप पर निछावर हो जाएगी
जब अपनी मनोकामना की पूर्ती के लिए,
किसी की तारीफ़ का पुल बांधा जाता है
तो उसका दिल जीतने का प्रयास ,
चापलूसी कहलाता है
हम मंदिर जा ,भगवान की स्तुति करते है ,
शीश नमाते है ,करते यशोगान है
ये अपने मनोरथ की पूर्ती के लिए ,
भगवान की चापलूसी करने के समान है
हर इंसान ,प्रभु को प्रसन्न करने के लिए ,
भगवान की प्रशस्ती करता है
हर पति,वक़्त बेवक़्त,अपने मतलब के लिए ,
अपनी बीबी की चापलूसी करता है
जिंदगी की हक़ीक़त यही है,
जो मन ही मन हम करते महसूस है
कि हम सब के सब ही चापलूस है
कोई हमें चमचा कहे तो कहे ,
ठीक है,हम चमचे है
पर इसी की बदौलत कर रहे मजे है
कोई हमें मख्खनबाज कहे तो कहे ,
हाँ,हम मख्खनबाज है
हमारा यही तो अंदाज है 
 जिसकी बदौलत ,आज कर रहे राज है 
अपना काम बनाने के लिए सिर्फ ,
अपनी जुबान का इस्तेमाल करता हूँ,
औरों की तरह ,नहीं देता घूस हूँ
जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 30 अगस्त 2015

रंग-ए-जिंदगानी: राख़ी याद आती हैं

रंग-ए-जिंदगानी: राख़ी याद आती हैं: सावन आया सजनें लगें मेले, तो राख़ी याद आती हैं। बहना हैं ससुराल में, सुने हुए झुले, तो राख़ी याद आती हैं। कल तक थी माँ-बाप की छा...

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-