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रविवार, 30 अगस्त 2015

निभाती साथ बीबी है

              निभाती साथ बीबी है

समय का चक्र ऐसा है,बदलता रहता है अक्सर ,
                कभी जो बदनसीबी तो कभी फिर खुशनसीबी है
ये लक्ष्मी चंचला होती ,नहीं टिकती कहीं पर है,
                छोड़ती साथ वो जब है ,तो छा जाती  गरीबी  है
डूबती नाव को सब छोड़ कर के भाग जाते है,
                 निभाते साथ ना जिनको ,समझते हम करीबी है
हरेक हालात में और उम्र के हर मोड़ पर हरदम
                      तुम्हारे संग रहती है ,निभाती साथ बीबी है
                
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मशवरा

                  मशवरा 
सबके फोटो खींचों और खुद रहो  नदारद ,
           फोटोग्राफर बनने में नुक्सान   यही है 
फॅमिली निग्लेक्ट करो और समय खपाओ ,
         सोशल सर्विस करना कुछ आसान नहीं है
खुद कुछ भी ना करना,कोई और करे तो,
          मीनमेख उसमे निकालना बड़ा सरल है ,
हरेक बात में लोग मशवरा दे देते है ,
           रत्ती भर भी होता जिसका ज्ञान नहीं है
जब सत्ता में थे तो उड़ते राजहंस से ,
         पंख फड़फड़ाते हैं अब बने विपक्षी पक्षी,
कांव कांव कर काम नहीं होने देतें है,
          क्या विपक्ष का एकमात्र बस काम यही है
जब थे अच्छे दिन तो लूटी वाही वाही ,
              अब कोई ना पूछे ऐसी हुई तबाही  ,
अपने पैरों पर जो स्वयं कुल्हाड़ी मारे,
              ऐसे लोगों का होता  अंजाम  यही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बुधवार, 26 अगस्त 2015

नर,नारी और बारह राशि

       नर,नारी और बारह राशि

नारी,
स्वयं 'कन्या'राशि होती है ,
'मीन' की तरह सुन्दर और चंचल नयन
 तिरछी भौंहो के 'धनु'से ,
नज़रों के तीर छोड़ती हुई  हरदम 
द्वय 'कुम्भ'से,
शोभित किये हुए अपना गात
'वृश्चिक'की तरह ,जब डंक मारती है ,
तो मुश्किल हो जाते है हालात
नर,
'वृषभ' सा  मुश्तंड ,
'सिंह' सा दहाड़ता हुआ
और 'मेष'की तरह ,
अपने सींग मारता हुआ
कभी 'मकर'की तरह ,
अपने जबड़ों में जकड़ता है
तो कभी 'कर्क'की तरह ,
पकड़ता है
नर और नारी,
'तुला'की तरह जब,
दोनों पलड़ों का होता है संतुलन 
तब ही  दोनों का 'मिथुन'की तरह
होता है मिलन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

विरह पाती -तुम बिन

             विरह पाती -तुम बिन

डबलबेड की जिस साइड पर ,तुम अक्सर सोया करती थी ,
जब से मइके गयी ,पड़ा है, तब से ही वो कोना  सूना
गलती से करवट लेकर के ,उधर लुढ़क जो मैं जाता हूँ,
मेरी नींद उचट जाती है ,लगता जीवन बड़ा अलूना
उस बिस्तर में,उस तकिये में ,बसी हुई तुम्हारी खुशबू ,
अब भी मुझे बुलाती लगती ,यह कह कर के ,इधर न आना
तुम बिन  मन बिलकुल ना लगता ,कैसे अपना वक़्त गुजारूं,
ना चूड़ी की खनक और ना पायल का  संगीत  सुहाना
इतनी ज्यादा आदत मुझको ,पडी तुम्हारी संगत की थी
कि तुम्हारे खर्राटे भी ,लोरी जैसे स्वर लगते थे
मेरी नींद उचट जाती तो ,तुमको हिला जगाता था मैं ,
तुम मुझ पर बिगड़ा करती थी ,फिर दोनों संग संग जगते थे
तुम चाहे मम्मी पापा संग ,दिन भर मौज उड़ाती होगी ,
किन्तु रात को कभी कभी तो ,होगी मेरी याद सताती
उठते विरह वेदना के स्वर ,करते मेरा  जीना दूभर ,
बहुत दिन हुए ,अब आ जाओ, मुझे रात भर नींद न आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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