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शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

    कंधे से कन्धा मिला कर काम करो

 नेता बार बार यह कहते है ,
कि यदि देश के नर और नारी
अगर कंधे से कन्धा मिलाकर काम करे,
तो निश्चित ही होगी प्रगति हमारी
मैंने  उनसे प्रेरित होकर ,
राह  में जाती एक युवती से कन्धा मिलाया
तो प्रगति तो नहीं,मेरी दुर्गती हो गयी,
जब उसने मुझ पर अपना सेंडिल उठाया
मैं भागा और अबकी बार ,
एक लड़के के जाकर मिलाया कन्धा
वो बोला ,अबे क्या तू है अँधा
मैं बोला चलो ,
कंधे से कन्धा मिला कर काम करते है
वो बोला किसी और को ढूंढो ,
हम छोटी लाइन पर नहीं चलते है
फिर मैंने सोचा ,छोडो ये चक्कर
काम करने के लिए पहुँच गया दफ्तर
वहां ,अपने एक सहकर्मी के साथ,
बैठ  गया , कन्धा मिला कर
और बोला की अब हम ऐसे ही ,
कंधे से कन्धा मिला कर ,काम करेंगे
वो बोला  सीधे सीधे क्यों ना कहते ,
न खुद काम करेंगे  ,न तुमको करने देंगे
बॉस  ने  देखा तो बोला ये चिढ
क्यों लगा रखी है ,यहाँ पर ये भीड़
गुस्से में आकर ,बोला झल्ला कर
काम करो अपनी अपनी सीटों पर जाकर
कहीं पर भी जब हम ,कर कुछ न पाये
तो सोचा कि घर पर ही ये नुस्खा आजमाये
हमने पत्नीजी से बोला कि अगर ,
प्रगति की ओर हमें होना है अग्रसर
तो  काम करना होगा,कंधे से कन्धा मिलाकर
 इसलिए मुझे अपने कंधे से कन्धा मिलाने दो
पत्नी बोली ,बड़े रोमांटिक मूड में लग रहे हो,
थोड़ी देर रुको,बच्चों को सो जाने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


नारी जीवन

            नारी जीवन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन
उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन
                                       कितना मुश्किल नारी जीवन
जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया  बचपन
उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन 
माता,पिता,भाई बहनो की , यादें  आकर  बहुत  सताए
एक पराया , बनता  अपना , अपने बनते ,सभी  पराये
नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन
                                       कितना मुश्किल नारी जीवन
कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट  जाती
नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत   आती
कभी पतिजी  बात  न माने , कभी  सास देती है ताने
कुछ न  सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने
कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन 
                                     कितना मुश्किल नारी जीवन
इसी तरह की  उहापोह में ,थोड़े  दिन पड़ता  है  तपना
फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ  लगने लगता अपना
बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन
कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन
 किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन    
                                        कितना मुश्किल नारी जीवन
बेटा ब्याह, बहू जब आती  ,पड़े सास का फर्ज निभाना
तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना
बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती
पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती
यूं ही बुढ़ापा काट जाता है  ,पढ़ते गीता और  रामायण
                                 कितना मुश्किल नारी जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 15 जुलाई 2015

         मैं रहा छीलता घांस प्रिये 

मैं तो यूं ही सारा जीवन,बस रहा छीलता घांस प्रिये 
शायद तुमने खाई होगी ,तुम ही थी मेरे पास  प्रिये
                                       मैं हूँ तुम्हारा  दास   प्रिये 
वो घांस भैंस यदि खा लेती ,तो देती दूध ढेर सारा ,
तुम हुई भैस जैसी मोटी ,चढ़ गया बदन पर मांस प्रिये 
                                      मुझ पर करलो विश्वास प्रिये 
तुम्हारी काया कृष्ण वर्ण ,इस तरह फूल कर फैलेगी ,
मैं तुम्हे डाइटिंग करवाता ,यदि होता ये आभास प्रिये 
                                       तुम तो मेरी ख़ास प्रिये 
तुम स्विमिंग पूल मे मत जाना,मारेंगे लोग मुझे ताना ,
लो गयी भैंस पानी में कह,मेरा होगा  उपहास  प्रिये 
                                     आये  ना मुझको रास प्रिये 
 आधे से ज्यादा डबलबेड ,पर तुम कब्जा कर सोती हो,
उस पर तुम्हारे खर्राटे ,   देतें है मुझको   त्रास  प्रिये 
                                       मैं  आ ना पाता पास प्रिये 
 मैं क्षीणकाय ,दुबला पतला ,तुम राहु केतु सी छा जाती,
मैं होता लुप्त  ग्रहण मुझ पर ,लग जाता है खग्रास प्रिये 
                                          मैं ले ना पाता सांस  प्रिये 
तुम्हारा खाने पर ना बस ,तुम्हारे आगे मैं  बेबस ,
तुमने अपने संग मेरा भी ,कर डाला सत्यानाश प्रिये 
                                        फिर भी  जीने की आस प्रिये 
 
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कान्हा की मुश्किल

          कान्हा की मुश्किल

नहीं वृन्दावन तुम,हो  आते कन्हैया
न लीलायें अपनी  ,दिखाते कन्हैया
सुनी बात ये तो ,कहा ये किशन ने
बहुत कुछ गया अब ,बदल वृन्दावन में
कभी हम चराते थे गायें जहाँ पर
नयी बस्तियां ,बस गयी है वहां पर
नहीं गोपियाँ जा के ,जमुना नहाये 
भला उनके कैसे वसन हम चुराएं
सभी के घरों में ,बने स्नानघर  है
नहा कर वहीं से ,निकलती ,संवर है
सुना करती दिन भर है वो फ़िल्मी गाने
उन्हें क्या लुभाएगी ,मुरली की ताने
घरों में अब मख्खन ,बिलौते नहीं है
चुराऊं क्या, ना दूध है  ना  दही  है 
मैं  जमुना नहाऊँ ,बहुत आता जी में
मगर है प्रदूषण ,बड़ा जमुना जी में
कई कालियानाग,वमन विष का करते
 हुई जमुना मैली,इन्ही की वजह से 
पुलिस से शिकायत ,करेगा जो कोई
दफा,हर दफा वो लगा देंगे  ,कोई
चुराऊं जो माखन,अगर घर में घुस कर
दफा वो लगा देंगे ,तीन सौ अठहत्तर
फोडूं जो मटकी ,अगर मार  कंकर
दफा पांच सौ नो में ,कर देंगे अंदर
अगर गोपियों के ,चुराउंगा  कपडे
तीन सो चोपन में ,वो मुझको पकडे
मै बोला डरो मत,कन्हैया तुम इतने
पुलिस और दारोगा,सभी भाई अपने
तुम्हारे लिए माफ़ ,हर एक खता है
यदुवंशियों का ही  शासन  यहाँ  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

स्वच्छता अभियान

        स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान अच्छी बात है
गली,गाँव ,सबको  रखना  साफ़ है
पर सफाई ये सिरफ़ ,काफी नहीं
कहीं पर भी गंदगी  ,भाती  नहीं
राजनीति स्वच्छ होनी चाहिए
नीतियां ,स्पष्ट   होनी    चाहिए
पारदर्शक ,दफ्तरों में काम हो
काम करवाना जहाँ आसान हो
स्वच्छता हो ,आचरण ,व्यवहार में
काम सारे निपट जाएँ,प्यार  में
नहीं मन में मैल होना चाहिए
और सभी में मेल होना चाहिए
नहा धोकर ,साफ़ तुम करलो बदन
कितने ही उजले ,धुले पहनो वसन
पर न मन में पाप होना चाहिए
दिल तुम्हारा साफ़ होना चाहिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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