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गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

सर्दी -मौसम खानपान का

   सर्दी -मौसम खानपान का

हम सर्दी का मज़ा उठायें ,मौसम बड़ा सुहाना
बैठ धूप में अच्छा लगता,हमें मूंगफली खाना
गरम चाय की चुस्की लेना ,सबके मन को भाता
अगर साथ हो  गरम पकोड़े ,मज़ा चौगुना  आता
 कभी कभी मक्का की रोटी ,और सरसों का साग
तिल की पट्टी ,गज़क रेवड़ी ,इनका नहीं जबाब
गरम गरम रस भरी जलेबी और गुलाबजामुन
देख टपकती लार और मन होता अफ़लातून
खानपान का मौसम होता है मौसम सर्दी का
सोहन या बादाम का हलवा ,खाओ देशी घी का
कितना भी गरिष्ठ हो खाना ,सर्दी में सब पचता
आलू टिक्की की खुशबू से कोई नहीं बच सकता 
गरम पराठे मेथी के या मूली या कि मटर के
सर्दी में ही मिल पातें है ,क्यों न खाएं जी भर के
जिन्हे  फ़िकर अपने फ़ीगर की खाया करे सलाद
हम तो खाए गोंद  के लड्डू ,ले ले कर के स्वाद
प्रचुर विटामिन 'डी 'पाओगे और  निखरेगा  रूप    
मैं खाऊ गाजर का हलवा और तुम खाओ धूप

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त काटना -बुढ़ापे में

    वक़्त काटना -बुढ़ापे में

किसी ने हमसे पूछा ऐसे
घोटूजी,आप भी तो अब हो गए हो,रिटायर  जैसे
अपना समय काटते  हो कैसे ?
हमने कहा,हम सुबह जल्दी उठ जाते है
घूमने जाते है
कुछ व्यायाम करते है और अपनी जर्जर होती हुई ,
शरीर की इमारत को, जल्दी टूटने से बचाते है
लौट कर फिर घर आना
बीबीजी के लिए चाय बनाना
फिर उन्हें उठाना ,
रोज यही दिनचर्या  चलती है
चाय हम इसलिए बनाते है क्योंकि,
हमारे हाथ की बनाई हुई चाय ,
हमारी बीबीजी को बहुत अच्छी लगती है
और सुबह सुबह ,इस प्यार भरे अंदाज से ,
होती है दिन की शुरुवात
जब चाय की चुस्कियां ,हम लेते है साथ साथ
फिर थोड़ा अखबार खंगालते है
रोज रोज चीर होती हुई मर्यादाओं का 
पतनशील होते हुए नेताओं का
धर्म के नाम पर लुटती हुई आस्थाओं का
भ्रष्ट आचरण करते हुए महात्माओं का
कच्चा चिट्ठा बांचते है
कभी दोपहरी में धूप में बैठ कर ,
पत्नी को मटर छिलाते रहते है
और बीच बीच में जब मटर के छोटे  छोटे ,
मीठे मीठे दाने निकलते है ,
खुद भी खाते है,उन्हें भी खिलाते रहते  है
कभी पास के ठेले पर जा गोलगप्पे खाते है
कभी फोन करके पीज़ा मंगाते है
बीच बीच में 'फेसबुक 'या 'व्हाट्सऐप'पर
कोई अच्छा जोक आता है तो पत्नी को सुनाते है
आपस में खुशियां बांटते है,
हँसते हँसाते है
कभी वो हमारे चेहरे की बढ़ती झुर्रियों को देख कर,
होती है परेशान
कभी हम ढूंढते है ,उसकी जादू भरी आँखों का,
खोया हुआ तिलिस्म और पुरानी शान
ये सच है आजकल हममे नहीं रही वो पुरानी कशिश
फिर भी बासी रोटियों पर,
कभी प्यार का अचार लगा कर
कभी दुलार का मुरब्बा फैला कर
नया स्वाद लाने की करते है कोशिश
न ऊधो का लेना है,न माधो का देना है
और भगवान की दया से पास में ,
काफी चना चबेना है
हम उसका और वो हमारा रखती है ख्याल
और भूल जाते है  जिंदगी के सब  बवाल
और जैसे जैसे उमर बढ़ रही है
चूँ चररमरर,चूँ चररमरर ,करती हुई ,
जिंदगी की भैंसागाड़ी ,मजे से चल रही है

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
   

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

पेशावर आतंकी हमले पर....


पाकिस्तानी आकाओं से

     पाकिस्तानी आकाओं से

दहशतगर्दी को शह देते ,पाल रहे हो नागों को,
        डस तुमको कब  लेंगे ,जिनको ,दूध पिलाया ,पता नहीं
चले हमें थे सबक सिखाने,ऐसा सबक मिला तुमको ,
         कितने मासूमो को तुमने ,बलि चढ़ाया ,  पता नहीं
अक्सर आग लगानेवाले ,खुद जलजल जाते,लपटों से ,
         कितनी माताओं का तुमने ,मन झुलसाया ,पता नहीं
अब छोडो ,नापाक इरादे ,नफरत त्यागो और बदलो ,
         दहशत गर्दो ने तुमको क्या,सबक सिखाया ,पता नहीं  
एटम बम पर मत इतराओ ,खतरे भरे खिलोने है ,
        तुम ही एटम ना बन जाओ,इन्हे चलाया ,पता नहीं
आतंकी गतिविधियाँ छोडो ,वरना  तुम पछताओगे ,
        कितनी बार तुम्हे समझाया,समझ न आया ,पता नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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