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शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

दशहरे के दिन

        दशहरे के दिन

दशहरे के दिन,
वो हमारे घर आये
और बोले ,बच्चे तो रावण देखने गए है ,
हमने सोचा,चलो हम आपको ही देख आएं
हम ने कहा,सच,होता अजीब तमाशा है
रावण को देखने सब  जाते है,
राम को देखने कोई नहीं जाता है
आप तो हमेशा से रूढ़ियाँ तोड़ते आये है
अच्छा किया,रावण देखने नहीं गए,
हमें देखने आएं है  
मगर वहां बच्चों को क्या मज़ा आएगा
आप तो यहाँ है ,
बच्चों को रावण कैसे नज़र आएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कह रहे पापी अधम रावण जलाया जायेगा....


गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

सचमुच तुम कितने पागल हो ?

       सचमुच तुम कितने पागल हो ?

बेटा हो या बेटी ,उनमे ,काहे को रखते  अंतर हो 
                       सचमुच तुम कितने  पागल  हो
यही सोच कर बेटा होगा ,वंश बढ़ाएगा तुम्हारा
और बुढ़ापे में तुम्हारे ,देगा तुमको ,बड़ा सहारा
अंधे मातपिता को कांवड़ में ले जाए तीर्थ कराने
ब्रह्माजी ने बंद कर दिए ,है अब ऐसे पुत्र  बनाने
पैदा राम नहीं होते अब ,जो कि निभाने वचन पिता के
राज त्याग,चौदह वर्षों तक,खाक   जंगलों की जो फांके
इस कलयुग में तो सबने ही ,भुला दिए संस्कार पुराने
उनसे मत उम्मीद करो कुछ,हुई 'प्रेक्टिकल 'है संताने
तुम जितना भी,जो कुछ उन हित ,करते ये कर्तव्य तुम्हारा
प्रतिकार में वृद्धाश्रम ही ,देगा शायद ,तुम्हे सहारा
संस्कृति और संस्कारों में ,बहुत बढ़ गया पॉल्यूशन है
केवल अपने ही बारे में ,सोचा करता अब हर जन है
बेटी भले परायी होती,पर उसमे होता अपनापन
ख्याल बुढ़ापे में रखती है ,प्यार लुटाती सारा जीवन
फिर भी तुम बेटी के बदले ,बेटा हो,  देते यह  बल हो
इस पॉल्यूशन के युग मे भी,शुद्ध ढूढ़ते  गंगाजल हो
                               सचमुच तुम कितने  पागल हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आँखें

           आँखें

आँखें ,सबसे बड़ा दिया उपहार प्रभु का,
       चमका करती ,सूरज चंदा सी ,चेहरे पर
भेद बताती ,सुन्दर और असुंदर का ये,
        ज्योतिपुंज सी राह दिखाती है जीवन भर
दो आँखे ,मानव तन की शोभा होती है ,
         हमको जो ये सारी दुनिया दिखलाती है
पर इनकी तासीर बड़ी उल्टी होती है,
        खोई खोई जग कहता , जब मिल जाती है
हो जाता है प्यार,लड़ा करती जब आँखें,
         जब ये झुकती ,मतलब हामी भर देती है
थोड़ी तिरछी हो जाती,बिजलियाँ गिराती ,
         और दुखी होती , आंसूं  ढलका देती है
काला मुख होने पर है बदनामी होती,
        इन पर कालिख लगती ,ये होती कजरारी
कोई मृगनयनी है कोई मीनाक्षी है,
       चंचल,चपल और सुन्दर ये लगती  प्यारी
होती जिसकी एक आँख समदर्शी होता ,
       लोगबाग उसको काणा भी कह देते है
अगर किसी के साथ छेड़खानी करनी है ,
      एक आँख बंद करते ,आँख मार देते है
कोई बारीक काम सुई में धागा पोना ,
       या कि लक्ष्य भेदन करने को तीर चलाना
इनमे एक आँख बंद करके ही देखा जाता ,
      हो पाता  संभव तब ही  ये सब  हो पाना
दो आँखें तो सब की ही मन भावन होती,
       खुले तीसरी आँख ,कोप बरसाती भारी
शिवशंकर त्रिनेत्र ,खोलते नयन तीसरा ,
       होते है जब कुपित,कहाते प्रलयंकारी
और ये ही आँखें जब होती चार किसी से ,
        इसको कहते प्यार हुआ,जब टकराती है
चार आँखें हो जाने का चक्कर है प्यारा ,
          पर इससे ,आँखों की निंदिया उड़ जाती है
ये होती है बंद मगर देखा करती है ,
             सोयी आँखों से सपने देखा करते हम      
तन का यह अंग ,सबसे ज्यादा मूल्यवान है,
              पलकें है तैनात,सुरक्षा करती   हरदम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ना इधर के रहे -ना उधर के रहे

          ना इधर के रहे -ना उधर के रहे

ना तो उस दौर के और न इस दौर के ,
             बन गए दरमियानी कोई चीज हम
ना फलक पर चढ़े,ना जमीं पर रहे ,
            रह गए बस लटकते ही अधबीच हम
ना तो भूखे ही है,ना भरा पेट है ,
            बीच खाने के थाली  को क्यों छोड़ दें,
ना इधर के रहे ,ना उधर के रहे ,
           उम्र की ऐसी आ पहुंचे ,दहलीज हम 
जिस्म कहता है अब हम जवां ना रहे,
            कोई बूढा कहे ,दिल ये ना मानता ,
जब जवां लड़कियां हमको अंकल कहे ,
            दिल में होती चुभन,जाते है खीझ हम
ना तो काले ही है ,ना सफ़ेद ही हुए ,
            बाल सर पर हमारे बने खिचड़ी ,
उम्र का फर्क ये , हमको मिलने न दे ,
           रह गए एक दूजे पे ,बस रीझ हम
ना तो दिन ही ढला,ना हुई रात है ,
          शाम की है ये बेला ,बड़ी खुशनुमा ,
है बड़ा ही रूमानी ,सुहाना समां ,
          प्रेम के रस में जाते है अब भीज हम
ना तो नौसिखिया ही है ,ना रिटायर हुए,
          है तजुर्बा भरा ,तन  मे ताक़त भी है,
कोई कितना भी आजमा ,हमें देख ले,
          पायेगा ये बड़े काम की चीज  हम
दिल में जज्बा जवानी का कायम अभी,
           बात दीगर है अब जल्दी थक जाते हम ,
है बुलंदी पे अब भी मगर हौसला ,
            अब करें क्या ,बताओ ना तुम,'प्लीज 'हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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