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मंगलवार, 17 जून 2014

आम की गुठली

             आम की गुठली

मैं  बूढ़ा हूँ
चूसी हुई मैं कोई आम की,गुठली सा,कचरा कूड़ा हूँ
मैं बूढा हूँ
ये सच है मैं बीज आम का,उगा आम का वृक्ष मुझी से 
विकसित होकर फूला,फैला  और हुआ फलदार मुझी से
कच्चे फल तोड़े लोगों ने, काटा और   आचार बनाया
चटनी कभी मुरब्बा बन कर ,मैं सबके ही मन को भाया
और पका जब हुआ सुनहरी ,मीठा और रसीला,प्यारा
सबने तारीफ़ करी प्यार से ,चूंस लिया मेरा रस सारा
देख उन्हें खुश,सुखी हुआ मैं ,मुर्ख न समझा नादानी में
हो रसहीन ,दिया जाऊंगा,फेंक किसी कचरे दानी  में
आज तिरस्कृत पड़ा हुआ मैं ,सचमुच  बेवकूफ पूरा हूँ
मैं बूढ़ा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 16 जून 2014

फादर'स डे पर-पिताजी से

   फादर'स डे पर-पिताजी से

आपने ऊँगली थामी ,
           मैंने जीवनपथ पर चलना सीखा
आपने आँख दिखाई ,
          मैंने अच्छा बुरा देखना सीखा
आपने कान मरोड़े ,
          मैंने हर तरफ से चौकन्ना होना  सीखा 
आपने डाट लगाईं,
           मैंने डट कर मुश्किलों का सामना करना सीखा     
आपके हाथों ने कभी मेरे गालों को सहलाया था
                                 तो कभी चपत भी लगाई है
आपकी ये छोटी छोटी शिक्षाये ही,
                                मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
यूं भी  मेरी रगों में,आपका ही खून ,
                                  दौड़ता रहता दिन रात है  
पर ये मैं ही जानता हूँ,कि मेरी सफलता में,
                                    आपका कितना हाथ है
आपका प्यार और आशीर्वाद ,
                                    मेरी सब से बड़ी दौलत है
मैं आज अपनी जिंदगी जो कुछ  भी हूँ
                                     सब आपकी बदौलत   है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू;

रविवार, 15 जून 2014

जुदाई में

              जुदाई में

तुम्हारे बिन ,जुदाई का ,हमारा ऐसा है आलम ,
              परेशां मैं भी रहता हूँ,परेशां तुम भी रहती हो
तुम्हारी याद में डूबा  ,और मेरी याद में ग़ाफ़िल ,
             हमेशा मैं भी रहता हूँ,हमेशा तुम भी रहती हो
प्यार करते है फिर भी क्यों ,झगड़ते हम है आपस में ,
             पशेमां मैं भी रहता हूँ,पशेमां  तुम भी रहती हो
महोब्बत भी अजब शै है ,बड़े बेचैन पागल से ,
              खामख्वाह मैं भी रहता हूँ,खामख्वाह तुम भी रहती हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
     

पिताजी- एक चिंतन

        फादर'स डे पर
     पिताजी- एक चिंतन

बचपन में ,जब भी गलती होती थी,हर बार
मुझे सुननी  पड़ती थी ,पिताजी की फटकार
और  मैं गुस्से में,दुखी और  नाराज़   होकर      
निकल जाया करता था  ,छोड़ घर के बाहर 
और देर रात,गुस्साया सा ,जब लौटता  था
माँ प्रतीक्षा कर रही होगी,मुझे होता पता था
पिताजी की नाराजगी,निकालता था खाने पर
पर जब शांत होता था ,माँ के समझाने   पर
तब पता लगता था,पिताजी ने नहीं किया भोजन
तब बड़ा दुखी और  खिन्न होता था,मेरा मन 
सोचता था,माँ और पिताजी ,दोनों करते है प्यार
तो क्यों इतना अलग होता है ,दोनों का व्यवहार
 दोनों के आचरण में क्यों ,इतनी  विषमता  है
एक पुचकारता है और  दूसरा फटकारता  है
प्यार के तरीके में उनके क्यों है  ये अन्तर
किन्तु समझ में मेरे ,अब आया है जाकर
माँ तो हमेशा ही ,दुलारने के लिए होती है
पर पिताजी की डाट,सुधारने के लिए होती है 
जीवन पथ पर ,नहीं मिलता ,हमेशा,हर बार
माँ  के जैसी ममता या प्यार भरा व्यवहार
कितने ही संघर्षों से ,हमें गुजरना  पड़ता है
अलग अलग लोगों से ,दो चार करना पड़ता है
रोज रोज नयी मुसीबत ,हर बार  मिलती  है
कभी गाली,कभी डाट ,कभी फटकार मिलती ह
आदमी ,बचपन से यदि प्यार का आदी हो जाएगा  
तो इन सारी मुसीबतों को वो कैसे झेल पायेगा
पिताजी की डाट भी एक तरीका है,समझाने का
हमें दृढ़,मजबूत और अनुशासित  बनाने का
माँ की ज्यादा ममता भी बच्चे को बिगाड़ देती है
और पिताजी की डाट,जीवन को संवार देती है
इसीलिये पिताजी थोड़ा कठोर व्यवहार करते है
अगर डाटते हैं,समझ लो,बहुत प्यार करते है
नारियल से सख्त बाहर,अंदर  मुलायम होते
ये बात समझ तब आती ,जब पिता हम होते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 14 जून 2014

अच्छे बुरे दोस्त

         अच्छे  बुरे दोस्त

अगर अच्छा हुआ तो यश ,सभी ले लेते है खुद ही,
अगर होता बुरा कहते ,लिखा था ये ही किस्मत में
भिड़ाना एक दूजे को ,लगा कर के  नमक मिर्ची ,
दूर से फिर मज़े लेना ,है होता जिनकी आदत मे
बहुत सारे हितैषी आपको मिल जाएंगे  ऐसे ,
ख़ुशी में सबसे आगे है,छोड़ते संग मुसीबत में
बड़ी मुश्किल से मिलते दोस्त,सच्चे चाहने वाले ,
न होती खोट कोई भी ,कभी भी,जिनकी चाहत में

घोटू 

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