एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 7 जून 2014

गयी हो जब से तुम मइके

             गयी हो जब से तुम मइके

गयी हो जब से तुम मइके,है मेरा मन नहीं लगता
विरह की वेदना सह के ,है मेरा मन नहीं लगता
नहीं तो भूख लगती है,न आता स्वाद खाने में
बना रख्खी है क्या हालत ,तुम्हारे इस दीवाने ने
कोई भी आके ये देखे कि मेरा मन नहीं लगता
गयी हो जबसे तुम मइके ,है मेरा मन नहीं लगता
करवटें बदला करता हूँ ,न ढंग से नींद आती है
तुम्हारी याद आ आ के,मुझे हरदम सताती है
तड़फता हूँ मैं रह रह के,है मेरा मन नहीं लगता
गयी जब से तुम मइके है मेरा मन नहीं लगता
तुम्हारा रूठना और रूठ के मनना ,लिपट जाना
झुक लेना वो नज़रें का,और वो'हाँ'भरी ना ना
याद आते वो क्षण बहके ,है मेरा मन नहीं लगता
गयी हो जबसे तुम मइके ,है मेरा मन नहीं लगता
जो तुम थी ,जिंदगानी थी ,सभी सूना है बिन तेरे
आजकल मैं अकेला हूँ,मुझे  तन्हाई  है   घेरे
कभी दिन रात थे महके,है मेरा मन नहीं लगता
गयी हो जब से तुम मइके ,है मेरा मन नहीं लगता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कमी हम मे रही होगी

        कमी हम मे रही होगी

उन्होंने छोड़ हमको थामा दामन ,और कोई का,
                 कमी  हम में ही निश्चित ही,कुछ न कुछ तो रही होगी
हमारे ही मुकद्दर में ,नहीं थी दोस्ती उनकी ,
                  गलत हम ही रहे होंगे ,और वो ही सही होगी
नहीं किस्मत में ये होगा ,जुल्फ सहलाएं हम उनकी,
                    और उनके रस भरे प्यारे ,लबों  का ले सके चुम्बन
बांह में बाँध कर के फूल जैसे बदन को कोमल,
                     महकते जिस्म की उनके,चुरा लें सारी खुशबू हम
नहीं तक़दीर में लिख्खी थी इतने हुस्न की दौलत ,      
                     जिसे संभाल कर के रख सकें ,अपने खजाने में
करे थे यत्न कितने ही कि उनको कर सकें हासिल,
                      मिली नाकामयाबी हमको ,उनका साथ पाने में
या फिर उनके मुकद्दर में ,कोई बेहतर लिखा होगा ,
                      करी कोशिश हमने पर,कशिश हम में,नहीं होगी
उन्होंने छोड़ हम को ,थामा दामन और कोई का,
                     कमी हम में ही निश्चित ही,कुछ न कुछ तो रही होगी
वो उनका मुस्कराना ,वो अदाएं चाल वो उनकी ,
                     और वो संगेमरमर का,तराशा सा बदन उनका
गुलाबी गाल की रंगत ,दहकते होंठ प्यारे से ,
                       कमल से फूल सा नाजुक ,वो गदराया सा तन उनका
तमन्ना थी कि उनका हाथ लेकर हाथ में अपने ,
                          काट दें साथ उनके सफर सारा जिंदगानी का
मगर अरमान सारे रह गए बस दिलके दिल में ही ,
                          यही अंजाम होना था, हमारी  इस  कहानी   का 
खुदा ही जानता है ,बिछड़ कर अब कब मिलेंगे हम,
                           न जाने हम कहाँ होंगे,न जाने वो कहीं होगी
उन्होंने छोड़ हमको ,थामा  दामन और कोई का,
                          कमी हम में ही ,निश्चित ही,कुछ न कुछ तो रही होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

शुक्रवार, 6 जून 2014

एक नारी-दुखिया बेचारी

           एक नारी-दुखिया  बेचारी

एक पूरब की नारी और एक दक्षिण की नारी ने,
                एक इटली की नारी की ,बड़ी हालत बिगाड़ी है
एक चौथी भी है जो राज,राजस्थान में करती ,
                 हरा कर इटली वाली को,छीन सब सीट डाली है
वो जब सत्ता में थी पत्ता भी ना हिलता इजाजत बिन,
                  उसीके लोग देते ,उसके शहजादे को गाली  है
जो टस से मस न   होती थी,हिला डाला है लोटस ने,
                  डुबो दी नाव मोदी ने ,बड़ी दुखिया  बिचारी है

घोटू 

गुरुवार, 5 जून 2014

जिंदगी का सफर

        जिंदगी का सफर

टर्मिनस से टर्मिनस तक ,बिछी हुई,लोहे की रेलें
जिन पर चलती रेल गाड़ियां ,कोई पीछे, कोई पहले
कोई तेज और द्रुतगामी,कोई धीमे और रुक रुक कर
स्टेशन से स्टेशन तक ,बस काटा करती है चक्कर
कोई भीड़ भरी पैसेंजर ,तो कोई ऐ. सी. होती है
कोई मालगाड़ियों जैसी ,जो केवल बोझा  ढोती है  
यात्री चढ़ते और उतरते ,हर गाडी में बहुत भीड़ है
हर यात्री की अलग ख़ुशी है,हर यात्री की अलग पीड है
कोई लूटता ,मज़े सफर के,कोई रहता परेशान है
कोई हेंड बेग लटकाये ,कोई के संग ताम झाम  है
अपनी यात्रा कैसे काटें,यह सब तुम पर ही निर्भर है
प्लानिंग सही,रिज़र्वेशन हो ,तो होता आसान सफर है
इन्ही रेल की यात्रा जैसा,होता है अपना जीवन पथ
एक जन्म का टर्मिनस है ,एक मृत्यु का है टर्मिनस
कोई गाड़ी कैसी भी हो,लेकिन सबका पथ है निश्चित
दुर्घटना का ग्रास बनेगी ,अगर हुई जो पथ से विचलित
और हम बैठे हुए ट्रेन में,जीवन का कर रहे सफर है 
रेल गाड़ियां,आती ,जाती,हम तो केवल ,पैसेंजर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना अपना स्वभाव

     अपना अपना स्वभाव

ऊपर के दांत,भले ही ,
नीचे के दांतों के साथ रहते है
मगर  आपस में किटकिटाते ,
और झगड़ते ही रहते है
सबके सब बड़े  सख्त मिजाज है
पर रहते नाजुक सी जिव्हा के साथ है
बिचारी जिव्हा को ,बड़ा ही ,
संभल संभल कर रहना पड़ता है
कभी कभी ,दांतों का,कोप भी सहना पड़ता है
फिर भी जीभ ,अपनी सज्जनता ,नहीं छोड़ती है
दांत के बीच ,यदि कुछ फंस जाता है,
तो उसे टटोल टटोल कर ,निकाल कर ही  छोड़ती है
सुई,तीखी और तेज होती है,चुभती है
मगर चुभे हुए कांटे निकाल देती है
और फटे हुए कपड़ों को टांक देती है
खजूर  का वृक्ष,इतना ऊंचा होते हुए भी ,'
छाया विहीन होता है
और आम ,भले ही छोटा है
पर देता फल और छाँव है
सबका अपना अपना स्वभाव है

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-