एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

निंदक नियरे राखिये

             निंदक नियरे राखिये

           चमचों से बचो 

      निंदक पास रखो

      क्योंकि आपकी अपनी बुराई

      जो आपको नज़र न आयी

       आपको बतलायेंगे 

       खामियाँ  गिनवाएंगे 

       क्योंकि आप जिससे रहते है बेखबर

       ढूंढ लेती है निंदकों की नज़र

       आपकी कमी और दोष

       बताएँगे  खोज खोज

       जिससे थे आप अनजाने

       और बिना कोई बुरा माने

       गलतियां सुधारते रहिये

       व्यक्तित्व निखारते रहिये

        वरना चमचे

        खुद करेंगे मज़े

        अच्छाई बुराई से बेखबर

         आपकी तारीफें कर

         हमेशा वाही वाही करेंगे

         आपकी तबाही करेंगे

         बढा  अहंकार देंगे

          आपको बिगाड़ देंगे

         इसलिए ये है आवश्यक

         आसपास रखो निंदक

          क्योंकि वो ही आपको निखारेंगे

          आपका  व्यक्तित्व  संवारेंगे

 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'          

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

खुशियों के क्षण


             खुशियों के क्षण

'नौ महीने तक रखा संग में,पिया खाया
जिसकी लातें खा खा करके मन मुस्काया
माँ जीवन में खुशियों का पल,सबसे अच्छा
रोता पहली बार ,जनम लेकर जब बच्चा
एक बार ही आता है  , ये पल जीवन में  
जब बच्चा रोता और माँ ,खुश होती मन में '

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


सोमवार, 20 जनवरी 2014

तमाम तन्हा लोगों के नाम एक क्षणिका....



सर्द मौसम है,
गर्मागर्म पकौड़ों
अदरक वाली चाय
का ये वक्त है,
पर नदारद हैं
खनकती चूडियों
वाले वे हाथ,
शाम नहीं ये
जहर की पुड़िया है,
मौत यूं आहिस्ता-आहिस्ता
क्या कहें,
बहुत बढ़िया है...

- विशाल चर्चित

देखो हम क्या क्या करते है


       देखो हम क्या क्या करते है

     हम जो करते है पाप,पुण्य,सन्दर्भ बदलते रहते है
      अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते रहते है
हम पूजा करते नारी को ,बचपन में होती माँ स्वरुप
फिर शादी कर पूजा करते है नारी को ,पत्नी स्वरूप
उगते सूरज को अर्घ्य चढ़ा,तपते सूरज से है डरते
फिर कब हो अस्त ,आये रजनी ,बस यही प्रतीक्षा है करते
सर्दी में गर्मी की इच्छा ,गर्मी में वर्षा  की चाहत
बारिश में,कब बरसात थमे,बस यही प्रतीक्षा करते सब
        गर्मी में पंखे और कूलर के बिन कुछ काम नहीं चलता ,
         सर्दी आते ही हम उनको ,चुपचाप तिरस्कृत करते है
        अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते  रहते है
करते प्रणाम उस सत्ता को ,जिससे सधता है कुछ मतलब
जिससे कोई भी काम न हो,ठोकर मारा करते है सब
दुःख और पीड़ा में जा मंदिर,पूजन और अर्चन करते है
पर सुख आते है तो केवल ,परसाद चढ़ाया करते है
ये मन पागल है ,चंचल है ,टिकता ना एक जगह पर है
चाहत उसकी पूरी करने ,हम भटका करते दर दर है
            तुम अपना आत्म विवेचन तो,सच्चे मन से कर के देखो,
             अपने मतलब की सिद्धी हित,हम जाने क्या क्या करते है
             अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श  बदलते रहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

ममता की दौलत

        ममता की दौलत

सिवा मेरे और कोई से महोब्बत नहीं थी
आधी आधी बंट गयी जो,ऐसी चाहत नहीं थी
हमको अपनी आशिक़ी के,याद आते है वो दिन,
प्यार करने के अलावा ,हमको फुर्सत नहीं थी
तेरे जीवन में मै ही था,तेरा तनमन था मेरा ,
कम ही मौके आते ,तू करती शरारत  नहीं थी
जब से तुझको जिंदगी में ,खुदा की रहमत मिली,
इससे पहले तुझ में ये ,ममता की दौलत नहीं  थी
नूर तुझपे छा गया है,चेहरे पे आया निखार ,
जवानी में भी ,तेरे मुख पे ये रंगत नहीं थी
थी कनक की छड़ी जैसी ,छरहरी काया  तेरी ,
तेरे गदराये बदन पे,ऐसी रौनक नहीं थी
यूं तो अपनी हर अदा से ,सताती थी तू मुझे ,
इस  अदा से सताने की ,तेरी आदत नहीं थी

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-