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रविवार, 12 जनवरी 2014

डिक्टेटर


                 डिक्टेटर

एक  साहब थे नामी
रोबीले व्यक्तित्व के स्वामी
शहर में साख थी
दफ्तर में धाक  थी
उनकी थी एक स्टेनोग्राफर
फुर्तीली,काम में तत्पर
सुन्दर,स्मार्ट और यंग थी
शरीर से उदार ,कपड़ों से तंग थी
हमेशा हंसती ,मुस्कराती थी
यस सर यस सर कह कर शर्माती थी
घंटो का काम ,मिनटों में कर लाती थी
साहब के मन भाती  थी
साहब डिक्टेशन देते थे ,रुक रुक कर
स्टेनो ,डिक्टेशन लेती थी ,झुक झुक कर
साहब की थी 'हाई प्रोफाइल'
स्टेनो के कपड़ों की थो 'लो प्रोफाइल ' 
और इसी स्टाइल में
धीरे धीरे वो फ़ाइल  हो गयी,
साहब के दिल की फ़ाइल में
उसकी नरमता और नम्रता ने
धीरे धीरे बुने कुछ ऐसे ताने बाने
असर कर गयी उसके नयनो की मार
साहब के मन में आया उससे शादी का विचार
और इतनी आज्ञाकारी बीबी की सोच
साहब ने एक दिन कर दिया प्रपोज
और स्टेनो ने भी 'नो'नहीं किया
कल तक थी पी ऐ ,अब हो गयी प्रिया
वक़्त की धूप छाँव 
कभी नाव पर गाड़ी थी,अब गाडी पर नाव
हमेशा यस सर यस सर कहनेवाली स्टेनो
सर के सर पर चढ़ कर ,कहती है नो नो
बढ़ गया है उसका इतना रुबाब
कि वो हो गयी है साहब की भी साहब
राम ही जाने ,साहब पर क्या गुजरती है
जिसे कभी वो डिक्टेट करते थे,
वो आज उन्हें डिक्टेट करती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नर्स के प्रेमी

           नर्स के प्रेमी

मिस्टर हर्ष थे इक्कीस वर्ष के
प्यार में फंस गए एक नर्स के
उसकी चुस्ती,फुर्ती और कसी कसी ड्रेस
कर गयी उनको इतना इम्प्रेस
कि एक दिन बोले उससे'प्लीज
मैं हो गया हूँ तुम्हारे इश्क़ का मरीज
खोया ही रहता हूँ तुम्हारी याद में
दिल चाहता है रहना तुम्हारे ही साथ में
इसलिए ऐसा कुछ करो ,
कि मैं भर्ती हो जाऊं ,तुम्हारे वार्ड में
नर्स हंसी और बोली डियर
मुझे भी आपसे है लव
मैं कुछ्ह भी करलूं ,पर आप ,
मेरे वार्ड में नहीं हो  सकते भरती
क्योंकि मैं 'मेटरनिटी वार्ड'में काम हूँ करती

घोटू

थिरकन

           थिरकन
सर्दियाँ होती है तो बदन कंपकंपाता है
आदमी ,गुस्से में होता है,काँप जाता है
बड़ा करीब का रिश्ता है तन का थिरकन से,
प्यार में ,लब थिरकते,जिस्म थरथराता है

घोटू

शनिवार, 11 जनवरी 2014

भगवान के नाम पर

           भगवान के नाम पर

लोग ,ले ले कर भगवान का  नाम
देखो कर रहे है ,कैसे   कैसे   काम
कोई भगवान के नाम पर भीख माँगता है
कोई भगवान के नाम पर  वोट माँगता है
कोई भगवान के नाम पर मांग रहा है चन्दा 
हर कोई कर रहा है ,भगवान के नाम को गंदा
कोई देवी के आगे ,करता है  पशु का बलिदान
और मांस भक्षण कर रहा है ,प्रसाद का लेकर नाम
कोई बाबा भैरवनाथ को दारु की बोतल चढाता है
और प्रसाद  है के नाम पर मदिरा गटकाता है
कोई शिवजी की  बूटी कह कर भांग पिया करता है
कोई कृष्ण बनने  का स्वांग किया करता है 
भक्तिनो के संग ,जल क्रीड़ा और रास रचाता है
वासना का कीड़ा है पर संत कहा जाता है
लोग भगवान को ,राजभोग और छप्पन भोग चढ़ाते है
और सारा माल ,खुद ही चट कर जाते है
अगर कभी कहीं भगवान प्रकट होकर ,
खाने लगे चढ़ाया गया सब प्रसाद
तो सारे पण्डे पुजारी भूखे मर जायेंगे ,
और हो जायेंगे बरबाद
अगर भगवान प्रसाद खाने लगे ,
तो प्रसाद चढ़ाना भी कम हो जाएगा
और भगवान के नाम पर धंधा चलाने वाले ,
इन धंधेबाजों का धंधा बंद हो जाएगा
हे भगवान! तेरे नाम पर कितना कुछ हो रहा है
और तू सो रहा है
अब तो तेरे नाम पर चलने वाले ,
धंधों की हो गयी है पराकाष्ठा
और घटने लगी है लोगों की आस्था
हे प्रभू !अब तो कुछ कर
शीध्र ही कोई नया अवतार धर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

पत्नी देवी -पति परमेश्वर

            पत्नी देवी -पति परमेश्वर

फरमाइश कोई तुम्हारी ,कर पाता  जब मैं पूर्ण नहीं,
तुम हो जाती हो बहुत क्षुब्ध ,कहती हो मैं हूँ पत्थर दिल
और हाथ जोड़ पूजा करती ,वरदान मांगती हो उससे ,
जो खुद पत्थर की मूरत है ,ये बात समझना है मुश्किल
हम लोग मान प्रभू का प्रतीक,पूजा करते है मूरत को,
मंदिर में उन्हें बिठाते है ,श्रद्धा से  शीश  नमाते  है
हम उनका आराधन करते ,ले धप,अगरबत्ती ,दीपक ,
करते है आरती सुबह शाम,उन पर परशाद  चढ़ाते है
हो जाता पूर्ण मनोरथ तो ,सब श्रेय प्रभू को दे देते ,
 यदि नहीं हुआतो'प्रभु इच्छा', करते किस्मत को कोसा हम 
प्रभु इच्छा से ही देवीजी ,ये बंधन बंधा  हमारा है ,
मैं सच्चे दिल से प्यार करूं ,पर करती नहीं भरोसा तुम
तुम कहती मुझको पत्थर दिल,मूरत तो पूरा  पत्थर है ,
फिर भी तुम्हारी नज़रों में ,वो मुझ से ज्यादा बेहतर है
हम संस्कार वश,मूर्ती की,पूजा करते ,पर सत्य यही ,
पत्नी होती देवी स्वरुप ,और पति होते परमेश्वर है
पत्थर की मूरत गति विहीन,है शांत,मौन और अचल खड़ी ,
लेकिन श्रद्धा से भक्तों की, पाती है रूप  देवता का
लेकिन जीवंत रूप प्रभू का ,होते है हम नर और नारी ,
है मिलन हमारा सृजनशील, हम सृजक,हमी सृष्टीकर्ता
तो आओ मैं पूजूं तुमको ,तुम पूजो मुझे,मिलें हम तुम,
विश्वास,प्यार ,एक दूजे से,करने से ही बंधता बंधन
पति पत्नी दोनों ही होते , दो पहिये जीवन गाड़ी के,
संग चलें,रखें,विश्वास अटल ,तब ही आगे बढ़ता जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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