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बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

परिवर्तनशील जीवन

    परिवर्तनशील जीवन

एक जैसा ,रोज भोजन,नहीं है सबको सुहाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा आनंद आता 
व्रत किया करते कभी हम,फलाहारी मिले भोजन
होटलों में कभी जाते ,स्वाद में हो परिवर्तन
अधिक खाये  नहीं जाते ,अगर मीठे ,सभी व्यंजन
साथ हो नमकीन ,होता है तभी ,संतुष्ट ये मन
एक जगह,एक जैसा ,नहीं जीवन क्रम सुहाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा   आनन्द  आता
घर से अच्छा कुछ नहीं है ,बात सब ये मानते है
देश की और विदेशों की ,ख़ाक फिर भी छानते है
औरतें  जाती है मइके ,और हम ससुराल जाते
 खोजते है परिवर्तन ,सालियों से दिल लगाते हो,
चीज हरदम ,एक ही बस,रोज मिलती ,मन अघाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा आनंद आता
ज़रा सोचो,अगर दिन ही दिन हो और फिर रात ना हो
सिर्फ गरमी रहे पड़ती , और फिर बरसात ना हो
सर्दियों की नहीं  सिहरन ,और सावन की न रिमझिम
ना बसन्ती बहारें हो,एक जैसा रहे मौसम
बदती ऋतुएं रहे सब ,तभी है मौसम सुहाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा आनंद आता

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

छोड़ राधा गाँव वाली -आठ पटरानी बनाली

   छोड़ राधा गाँव वाली -आठ पटरानी बनाली

प्रीत बचपन की भुलाके ,छोड़ राधा गाँव वाली
कृष्ण तुमने शहर जाकर ,आठ पटरानी बनाली
गाँव में थे गोप,गायें,गोपियाँ थी,सखा भी थे
माँ यशोदा ,नन्द बाबा ,प्यार सब करते तुम्ही से
दूध का भण्डार था और,दही था,माखन  बहुत था
भोले गोकुल वासियों में,प्यार, अपनापन बहुत था
कभी तुम गैया चराते ,कभी तुम माखन चुराते
मुग्ध होती गोपियाँ सब,बांसुरी जब थे बजाते
और तुम नटखट बहुत थे ,कई हांडी फोड़ डाली
प्रीत बचपन की भुलाके ,छोड़  राधा गाँव वाली 
शहर की रंगीनियों ने ,इस कदर तुमको लुभाया
भूल कर भी गाँव अपना ,पुराना वो याद आया
इस तरह से रम गए तुम,वहां के वातावरण में
नन्द बाबा ,यशोदा का ,ख्याल भी आया न मन में
छोड़ मथुरा ,द्वारका जा ,राज्य था अपना बसाया
सुदामा को याद रख्खा ,किन्तु राधा को भुलाया
मिली जब भी, जहां मौका ,नयी शादी रचा डाली
प्रीत बचपन की भुला के ,छोड़ राधा गाँव वाली
कृष्ण तुमने शहर जाकर ,आठ पटरानी ,बनाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

दीवाली और बूढी अम्मा

         घोटू के छक्के
   दीवाली और बूढी  अम्मा

बूढी अम्मा दिवाली पर थी बहुत उदास
फीका सा त्योंहार है,बेटा ना है पास
बेटा ना है पास लगे सब सूना ,सूना
जब से शहर गया है,आता गाँव कभी ना
बूढ़े पति ने समझाया क्यों होती व्याकुल
कृष्ण गये थे मथुरा,क्या लौटे थे गोकुल

घोटू 

आज करवा चौथ सजनी ...

          आज करवा चौथ सजनी ...

आज करवा चौथ सजनी ,और तुमने व्रत रखा है
तुम भी भूखी,मै भी भूखा,प्रीत की ये रीत  क्या है
 सोलहों शृंगार करके ,सजाया है रूप अपना
 भूख से व्याकुल तुम्हारा ,कमल मुख कुम्हला गया है      
रसीले से होठ तुम्हारे बड़े सूखे पड़े है ,
सुबह से निर्जल रही हो ,नहीं पानी तक पिया   है
रूपसी ,व्रत पूर्ण अपना ,करोगी कर चन्द्र दर्शन ,
आज मै हूँ बाद में और मुझ से  पहले चंद्रमा है
चन्द्र दर्शन की प्रतीक्षा में बड़ी बेकल खड़ी हो,
देखलो निज चन्द्र आनन,सामने ही आइना है
मिले मुझको दीर्ध जीवन ,कामना मन में संजोये ,
क्षुधा से पीड़ित तुम्हारा ,तन शिथिल सा हो गया है
तुम भी भूखी,मै भी भूखा , प्रीत की ये रीत क्या है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कन्या के फेर में

     घोटू के छंद
   कन्या के फेर में

संतों का भेष धरे,छिप छिप व्यभिचार करे ,
                               अपनी तिजोरी भरे ,प्रवचन के खेल में
कान्हा का रूप सजा ,गोपिन संग रास रचा ,
                                बहुत उठाया मज़ा ,भक्तिन संग मेल में
खा कर के स्वर्ण भसम ,खूब खुल के खेले हम,
                                 मगर फंसे कुछ ऐसे ,कन्या के फेर में
आशा निराशा भयी ,ऐसी हताशा भयी ,
                                  बेटा है भाग रहा  ,और हम हैं जेल  में

घोटू

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