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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

ऊंचे लोग-नीची हरकत


           ऊंचे लोग-नीची हरकत

यहाँ सब है केंकड़े ही केंकड़े ,
एक दूजे के है सब पीछे पड़े
कोई भी जब निकलने ऊपर चढ़ा ,
                दूसरों ने टांग उसकी खींच ली
किसी ने की अगर थोड़ी गलतियाँ
दूसरों ने बवंडर जम  कर किया
दूसरों की गलती सब आई नज़र ,
                   अपनों की गलती पे आँखे मींच ली
मिला मौका लेने का,जम कर लिया
भरी दोनों हाथ अपनी झोलियाँ
और अवसर देने का जब आया तो,
                     उनने कस कर,अपनी मुट्ठी भींच ली
साम्यता का गीत गाते थे बड़ा
मगर जब भी पानी का टोटा पड़ा
लोग प्यासे तरस कर मरते रहे ,
                     मगर उनने अपनी बगिया सींच ली
हुआ जब उपहास तो आ क्रोध में
इस तरह से वो जले प्रतिशोध में
द्रोपदी की तरह साडी खींच कर,
                      उसकी इज्जत इनने सबके बीच ली
उनके आशीर्वाद से होकर खड़े ,
मुश्किलों से ही थे हम ऊपर चढ़े
ये तरक्की उनको यूं चुभने लगी ,
                       उनने झट नीचे से सीढ़ी खींच ली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

शिकायत पत्नी की -जबाब पति का

   शिकायत पत्नी की -जबाब पति का

पत्नी की शिकायत 
 
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
                      क्या थी मै और आपने क्या कर दिया
प्यार कुछ अपना दिखाया इस तरह ,
                       देखो मुझको कितना मोटा कर दिया
       रोज अपने प्यार का टोनिक पिला
        बदन मेरा कर दिया है थुलथुला
        मांस देखो कितना तन पर चढ़ गया 
       वजन मेरा देखो कितना बढ़  गया
       अंग सारे इस कदर है बढ़ गए
        सभी कपडे मेरे छोटे पड़ गये
        कभी रबडी और जलेबी खिलाई
        तली चीजें और मख्खन मलाई
       प्यार का एसा चलाया सिलसिला
       फूल मेरा तन गया ,अच्छा भला
और मैंने शिकायत जब भी करी ,
                      प्यार से बस एक चुम्बन जड़ दिया
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
                       क्या थी मै और आपने क्या कर दिया

जबाब पति का -

कौन कहता है की तुम मोटी  हुई हो ,
                        सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का भरम है

  आई थी,सकुचाई सी दुल्हन बने जब ,
                          उस समय तुम एक थी कच्ची कली  सी
मुख म्रदुल था ,बड़ा भोलापन समेटे ,
                             और चितवन भी बड़ी चंचल भली थी
किन्तु मेरे प्यार का आहार पाकर ,
                               अब विकस पाया तुम्हारा तन सलोना
गाल भी फूले हुए लगते भले है ,
                                गात का गदरा गया है हरेक कोना
तो कली से फूल बन कर अब खिली हो ,
                                 अब निखर  पाया तुम्हारा रूप प्यारा
अब कली वाली चुभन चुभती नहीं है ,
                                  अब हुआ कोमल बदन ,कंचन तुम्हारा
बढ़ गया यदि भार थोडा नितंबों का,
                                    रूप निखरा है भली सेहत हुइ है  
पड़  गए छोटे अगर कपडे पुराने ,
                                    है खुशी मेरी सफल चाहत हुई है 
और मोटापा समझती हो इसे तुम ,
                                    देख कर के आइना आती शरम है
कौन कहता  है कि तुम मोटी हुई हो,
                                   सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का बहम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     


हे माँ दुर्गा !


प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री, कष्ट मेरी हर लेना,
मानव जीवन को मेरे, साकार यूंही कर देना |

द्वितीय दिवस हे ब्रह्मचारिणी, विद्या का फल मांगू,
जीवन हो उज्ज्वल सबका, उज्ज्वलता तुझसे चाहूँ |

तृतीय दिवस माँ चंद्रघंटा, मुझको बलशाली करना,
हर मुश्किल से लड़ पाऊँ माँ, शक्तिशाली करना |

चतुर्थ दिवस हे कुष्मांडा, जगत की रक्षा करना,
भक्तों का अपने हे माता, तू सुरक्षा करना |

पंचम दिवस स्कन्द-माता, जगत की माता तू,
मातृत्व तू बरसाना माता, सब कुछ की ज्ञाता तू |

षष्ठी दिवस माँ कात्यायिनी, दुष्टों की तू नाशक,
तू ही तो सर्वत्र व्याप्त माँ, तू ही सबकी शासक |

सप्तम दिवस माँ कालरात्रि, पापी तुझसे भागे,
सेवक पे कृपा करना, जो ना पूजे वो अभागे |

अष्टम दिवस माँ महागौरी, श्वेतांबर धारिणी,
अंधकार को हरना माता, तू ही तो तारिणी |

नवम दिवस हे सिद्धिदात्री, कमलासन तू विराजे,
शंख, सुदर्शन, गदा, कमल, माँ तुझपे ही तो साजे |

नौ रूपों में हे माँ दुर्गा, कृपा सदैव बरसाना,
पूजूँ तुझको, ध्याऊँ तुझको, सत्य मार्ग दिखलाना |

रविवार, 6 अक्टूबर 2013

हुआ करता काँटों में भी दिल तो है

  हुआ करता काँटों में भी दिल तो है

भावनाएं सिर्फ फूलों में नहीं ,
                    हुआ करता काँटों में भी दिल तो है
जरूरी ना प्यार ही हरदम मिले ,
                     जिन्दगी में ,नफरतें ,मुश्किल तो है
देवता गण ,सिर्फ आशीर्वाद ना ,
                      श्राप भी दे देते  कितनी  बार  है
पवन शीतल ,जाती बन तूफ़ान है ,
                       वरुण लाता क़यामत ,बन बाढ है ,
 कोप से  करते सभी को राख है ,
                        भड़क यदि जाते है अग्नी देवता
छुपा हर इंसान में एक राक्षस ,
                         नहीं लग पाता मगर इसका पता
राक्षस भी भक्त बन भगवान के,
                          कठिन करते तपस्या और ध्यान है
बदल जाता उनका सब व्यवहार है ,
                           जैसे ही  मिलता उन्हें  वरदान  है
भस्मासुर की तरह जाते पीछे पड ,
                             दाता के,जिनने था उनको वर दिया
निकलता मतलब तो देतें है भुला ,
                               बड़े नाशुक्रे ,न कहते  शुक्रिया
कौन कैसा दिखता है ,दिल में है क्या ,
                                 बड़ा ही दुरूह है पहचानना
कौन कब व्यवहार कैसा करेगा ,
                                  बड़ा मुश्किल होता है  यह जानना
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

पत्थर के भी दिल होता है

             पत्थर के भी दिल होता  है

दिखती  काली  घनघोर घटा ,पर उसमे होता शीतल जल
बाहर से सख्त मगर अन्दर ,होता है स्वाद भरा नारियल
मिलती गुणकारी शिलाजीत ,पत्थर पसीजते है जब जब
कांटे तन  पर,पर  तना चीर ,देते   तरु  गोंद , शक्तिवर्धक
पत्थर दिल लोगों के मन में ,भी रहता छुप,दब ,दया ,रहम
दुर्दान्त दस्यु भी बाल्मीकि  बन कर लिख देते रामायण
कोई कितना भी सख्त ह्रदय ,दिखता हो पर उसके अन्दर
कोमलता होती छुपी हुई ,देखो टटोल कर उर अंतर
जो विषम परिस्तिथी के कारण ,पाषाण ह्रदय जा बनता है
पर  उसे प्रेम की गरमी से ही पिघलाया  जा  सकता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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