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गुरुवार, 26 सितंबर 2013

aajo hmar yad ba by akhand gahmari

डुबुकिया बगिया में खेली कबडीया
आज ले हमरा याद बा
मठीया केण्‍ण्‍ण्‍ उ दौराई
आज ले हमरा याद बा
तीरे जा के उपरा से कूदी
बाबा के पौरावल याद बा
जाई सिवना गईया दूहल
आज ले हमारा याद बा
गउवा के कौनो मुरना होखे
नाइया खेवल याद बा
हाका बाजी पर झिझरी खेलल
आज ले हमारा याद बा
कौनेा बतइयिा पर हमरा के
बाबू के मरईया याद बा
जाके लुकाई आजी के पिछवा
आज ले हमारा याद बा
मेलवा देखे के खातिर बाबा के
दिहल 10 पैइसवा याद बा
हाफ पजामा पहीन के हाई स्‍कूलीया
में गइल आज ले याद बा
गउवा के जरीह स्‍कूलीय में
5 ले पढका याद बा
कैसे मारस बंशीधर उ
आज ले हमारा याद वा
साझ रोज गमछी में लेके
दनवा खाइल याद बा
दुअरा पर बैठ के बाबा के पीयल
हुक्‍का आज ले याद बा
बैठ के माई के उ चुलिहा तर
रोटीया सेकल याद बा
रसता निहोर प्रेम से मातल
अखिया हमारा याद बा
केतना बताइ ये अखंड बचवा
का का हमरा याद
अब कहवा मिली अब कैसे मिली
जौन जौन हमरा याद बा
गइल जमाना कबो ना लौटी
याद में बस रहजाइ उ
रहे हमर गॅाव सलामत
अखंड के सबके प्रणाम बा

बुधवार, 25 सितंबर 2013

धन्यवाद- टी .वी .का

            धन्यवाद- टी .वी .का 

पचास साल पहले ,जो बहुएँ थी ,आज वो सास है
कल भी उदास थी ,आज भी उदास है
क्योंकि तब वो सास से डरती थी ,
और अब बहू से डरती है
तब भी घर का सब काम करती थी ,
अब भी घर का सब काम करती है
पहले पति के प्यार में,
और अब बच्चों के दुलार में ,
तब भी पिसा करती थी ,अब भी पिसा करती है
और फिर भी मुंह से ,चूं तक नहीं करती है
पर एक बात है ,पहले सास बहू ,
दोनों के बन जाते थे ,अलग अलग खेमे
और रोज हुआ करती थी,तू तू,मै मै
पर आजकल ,भले ही ,वो दोनों रहती संग है
तो भी ,उन दोनों की,तू तू,मै ,मै ,बंद है
मेरे विचार से ,इस परिवर्तन का सारा श्रेय ,
टी .वी .के सीरियलों को जाता है
जिनमे ये इतनी उलझी रहती है ,
कि एक दूसरे की टांग खींचने का ,
समय ही कहाँ मिल पाता है
हे टी .वी .महाराज ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया है
आपने ,अधिकतर घरों में ,
सास बहू के झगड़ों को ,बहुत कम  कर दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन- चार दिनों का या महीने भर का

  जीवन- चार दिनों का या महीने भर का

बड़े भाग्य से प्राप्त हुआ है ,यह वरदान हमें इश्वर का
चार दिनों का नहीं दोस्तों,ये जीवन है महीने भर का
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को,जैसे होता है चंद्रोदय
वैसे ही तो इस जगती में ,होता है जीवन का उद्बव
बढ़ता जाता चाँद दिनोदिन ,पूर्ण विकसता ,आती पूनम
वैसे ही विकसित होता है जीवन, पूनम मतलब यौवन
फिर होता है क्षीण दिनोदिन,चालू होता घटने का क्रम
जैसे आता हमें बुढापा ,और जर्जर होता जाता तन
हो जाता है लुप्त एक दिन ,आती है जिस तरह अमावस
कभी उसे ढक  लेते  बादल,लेते कभी राहु केतु  डस
सारा जीवन रहो चमकते ,तम हर लो धरती ,अम्बर का
चार दिनों का नहीं दोस्तों ,ये जीवन है महीने भर का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

तू सृजन की शक्ति

तू सृजन की शक्ति 
मै जगत का आधार 
ये संसार आधा तेरा 
ये संसार आधा मेरा 

मै दिन का दीवानापन 
तू रात की सुख चैन 
ये सुख दुःख आधे तेरे 
ये सुख दुःख आधे मेरे 

मै दुखो में बहता अमृत 
तू ख़ुशी से बहती आंसू
ये आंसू आधे तेरे 
ये आंसू आधे मेरे 

तू बागो की मोहक खुशबु 
मै खुशबु का फुल 
ये गुलशन आधा तेरा 
ये गुलशन आधा मेरा 

...............अमित

बेतुकी रचना

सूरज की तपिश,चाद की शीतलता
चॉद की चादनी में निखरता चेहरा
दिन के उजाले में उभरी प्रतिभा की बाते
की बात करता एक कव‍ि है

शब्‍दो केा मालो में पिरोता कवि
फिॅर भी गुमनामी की जिन्‍दगी जीता कवि है
गुमसुम उदास आखेा में हसीन सपने दिखाता कवि है
भागभाग की जिन्‍दगी में सकून के पल देता कवि है

फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता कवि है...
रोते हुए चेहरे को हसाता एक कवि है
जिन्‍दगी से हारे हुए को हौसला देता कवि है
फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कवि है

प्रेम की परिभाषा बताता कवि है
दिल का दर्द दिल की बाते बताता एक कव‍ि है
हर शख्‍स को आइना दिखता है एक कव‍ि है
फिर गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कव‍ि है

चंद सिक्‍को का भूखा नहीं है कवि अखंड
सम्‍मान का मोहताज नहीं है कवि
कवि तो बस भूखा है दशाहीन ,दिशाहीन समाज को
दशा और दिशा देने का,भटकते समाज केा सुधारने का 

अखंड को हसाने का दुख और भागमभाग के दौर में
दो पल आपको सूकून के देना का
यह सब केवल सोचता एक कवि है मगर आज भी
गुमनामी की जिन्‍दगी जीता एक ''''''''''''''''

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