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गुरुवार, 4 जुलाई 2013

हाले-जुदाई

         
          हाले-जुदाई  
जुदाई मे जर्द चेहरा हो गया है,
             हिज्र की हर सांस भारी हो गयी है 
याद मे तेरी ये हालत बन गयी,
             लोग कहते है बीमारी हो गयी  है 
बदलते रहते है करवट रात भर हम ,
              इतनी ज्यादा बेकरारी  हो गयी है 
नींद हमको रात भर आती नहीं है ,
               इस कदर आदत तुम्हारी हो गयी है 
आजकल हम खुद से ही रहते खफा है,
               एसी  कुछ हालत हमारी   हो गयी है 
'घोटू'अब आ जाओ दिल लगता नहीं है,
                बड़ी लम्बी इंतजारी   हो गयी है 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'       

जीभ और दाँत

  
       जीभ और दाँत 
जीभ हो या दाँत हो ,सब एक ही परिवार है 
बहुत भाईचारा इनमे,अपनापन और प्यार है 
जीभ है माँ सी मुलायम,दाँत बेटे  सख्त है 
चबा कर देते है खाना ,मातृ के वो भक्त  है 
काटता है जो कोई तो,कोई फिर है चबाता 
बड़ा हो छोटा हो पर कंधे से कंधा मिलाता 
काम करने का सभी का ,अपना अपना ढंग है 
एक घर मे ,ऊपर नीचे,सभी रहते संग है 
अगर दाँतो बीच मे जो ,कचरा कुछ भी जा फसे 
माँ सी हो बेचैन,बेकल ,ढूंढती  जिव्हा  उसे 
करती रहती कोशिशें,जब तक न वो जाये निकल
अच्छे अच्छों की उतारे ,कैंची सी जो जाये चल 
प्यार मे रसभरी है तो गुस्से मे  अंगार है 
जीभ हो या दाँत हो सब एक ही परिवार है 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

सत्ता

           
             सत्ता 
सत्ता ,
वो खिला पुष्प है,
जो जब महकता है,
तो आसपास भँवरे गुंजन करते है 
 और तितलियाँ,मंडराया करती है 
पर सत्ताधारी मधुमख्खी,
उसका मधुपान कर,
सारा शहद ,अपने ही छत्ते मे भरती है
सत्ता,
वो दूध है जिसको पीने से,
आदमी मे बहुत ताक़त आ जाती है 
और जिसके पकने पर,
खोये की मिठाई बन जाती है 
और तो और,अगर दूध फट भी जाता है,
तो छेना बन,रसगुल्ले का स्वाद देता है 
जो जिंदगी भर याद रहता है 
सत्ता,
वो दावत है,
जहां जब कोई जीमने जाता है 
तो इतना खाता है 
कि उसका हाजमा बिगड़ जाता है 
और इलाज के लिए ,
वो स्वीजरलेंड या  खाड़ी देश जाता है 
सत्ता ,
वो पकवान है ,जो सबको ललचाते है 
और जिसको पकाने और खाने के लिए,
चमचे जुट जाते है 
सत्ता,
वो व्यसन है,
जिसका जब चस्का लग जाता है 
तो खाने से ही नहीं,
पाने से ही आदमी बौराता है 
सत्ता ,
वो तिलस्मी दरवाजा है,जिसमे से,
एक बार जो कोई गुजर जाता है,
सोने का हो जाता है 
सत्ता,
वो जादुई जाम है,
जिसमे भर कर सादा पानी भी पी लो,
तो एसा नशा चढ़ता है,
जो पाँच साल बाद ही उतरता है 
सत्ता ,
कब तक ,किसकी,
और कितने दिन रहेगी,
किसी को नहीं होता पता 
इसलिए सत्ता मे आते ही ,
जुट जाते है सब बनाने मे मालमत्ता 
पता नहीं,कब कट जाये पत्ता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
     


इस सदी की त्रासदी

      
          इस सदी की त्रासदी 
किससे हम शिकवा करें,और करें अब किससे गिला
हमारी गुश्ताखियों का ,हमको  एसा  फल मिला 
खुदा ने नदियां बनाई ,हमने रोका बांध कर,
बारूदों से ब्लास्ट कर के ,दिये सब पर्वत हिला 
इस तरह पर्यावरण के संग मे की छेड़ छाड़ ,
हो गयी नाराज़ कुदरत ,और उसने तिलमिला 
नदी उफनी,फटे बादल,ढहे पर्वत इस कदर,
कहर टूटा खुदा का ज्यों आ गया हो जलजला 
हजारों घर बह गए और कितनी ही जाने गयी,
भक्ति,श्रद्धा ,आस्था को ,दिया सब की ही हिला 
देखते ही देखते बर्बाद सब कुछ हो गया ,
मिला हमको ,हमारी ही ,हरकतों का ये सिला 
होता व्यापारीकरण जब,आस्था विश्वास का,
शुरू हो जाता है फिर बरबादियों का सिलसिला 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

सोमवार, 1 जुलाई 2013

वादियाँ यूरोप की

    
           वादियाँ  यूरोप की 
आँख को ठंडक मिलीऔर आगया दिल को सुकूँ ,
मुग्ध हो देखा किया मै, वादियाँ  यूरोप की 
कहीं बर्फीली चमकती,कहीं हरियाली भरी,
सर उठा सबको बुलाती,वादियाँ यूरोप  की  
गौरवर्णी,स्वर्णकेशी,अल्पवस्त्रा ,सुहानी,
हुस्न का जैसे खजाना ,लड़कियां यूरोप की 
प्रेमिका से प्यार करने ,नहीं कोना ,ढूंढते ,
प्रीत खुल्ले मे दिखाये ,जोड़ियाँ,यूरोप  की 
हरित भूतल,श्वेत अंबर ,और सुहाना सा है सफर ,
बड़ी दिलकश,गयी मन बस,फिजायें यूरोप की 
शांत सा वातावरण है,कोई कोलाहल नहीं,
बड़ी शीतल,खुशनुमा है ,हवाएँ यूरोप की 
है  खुला  उन्मुक्त जीवन ,कोई आडंबर नहीं,
बड़ी है मन को सुहाती,  मस्तियाँ यूरोप  की 
देखता रहता है दिन भर,अस्त होता देर से,
सूर्य को इतना लुभाती, शोखियाँ  यूरोप की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 
  

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