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बुधवार, 26 जून 2013

Re: नामाक्षर गण्यते



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madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:


             नामाक्षर  गण्यते
           
 दुशयंत  ने,शकुंतला से गंधर्व शादी रचाई 
उसे  भोगा ,और,
अपने नाम लिखी एक अंगूठी पहनाई 
और राजधानी चला गया,यह कह कर
'नामाक्षर गण्यते' याने,
मेरे नाम के तुम गिनना अक्षर 
इस बीच मै आऊँगा  
और तुम्हें महलों मे ले जाऊंगा 
गलती से शकुंतला की अंगूठी खो गई 
और कई दिनो तक,जब दुष्यंत आया नहीं 
तो शकुंतला गई राज दरबार 
पर दुष्यंत ने पहचानने से कर दिया इंकार 
 जब भी चुनाव नजदीक आता है 
मुझे ये किस्सा याद आ जाता है  
क्योंकि ,आज की सत्ता ,दुशयंत सी है,
जो चुनाव के समय,
शकुंतला सी भोली जनता पर,
प्रेम का प्रदर्शन कर ,
सत्ता का सुख भोग लेती  है 
और फिर उसे कभी अंगूठा ,
या आश्वासन की अंगूठी पहना देती  है 
साड़ेचार अक्षरों का नाम लिखा होता है जिस पर 
सत्ता सुख की मछली ,
उस अंगूठी को निगल जाती है ,पर 
और गुहार करती ,जनता,जब राजदरबार जाती है 
पहचानी भी नहीं जाती है 
हाँ,नामाक्षर गण्यते का वादा निभाया जाता  है 
उसके नाम का एक एक अक्षर,
एक एक वर्ष सा हो जाता है 
और तब कहीं साड़े चार साल बाद 
उसे आती है जनता की याद 
क्योंकि पांचवें साल मे,
 आने वाला होता है चुनाव  
और सत्ताधारियों को याद आने लगता है,
जनता के प्रति अपना  लगाव 
जब भी चुनाव नजदीक आता है 
मुझे ये किस्सा याद आता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 25 जून 2013

बैंड बज गया

    
     बैंड बज गया 
भारत की क्रिकेट टीम ने,
इंगलेंड को हरा कर ,
चेम्पियन ट्रॉफी को जीत लिया 
टी.वी.चेनल की हेड लाइन थी,
'भारत ने इंगलेंड का बैंड बजा दिया'
जब भी कोई होता है परास्त 
या उसे मिलती है मात 
तो उसका बैंड बज गया ,
एसा कहा जाता है 
क्या शादी के अवसर पर ,
इसीलिए बैंड बजाया जाता है? 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सवेरे की सैर

        
             सवेरे की सैर 
सवेरे सवेरे ,
प्राची के एक कोने से,
झाँकता हुआ सूरज ,
देखता है ये सारे नज़ारे 
अपने हालातों से परेशान,
फिर भी अट्ठ्हास लगाते हुये ,
लाफिंग क्लब के,सदस्य सारे 
सासों के शिकवे ,बहुओं के गिले
सुनाई देते  है,कभी  न खतम होने वाले,
अंत हीन सिलसिले
लकड़ी के सहारे ,धीरे धीरे टहलते ,
बुजुर्गों की व्यथाएं 
बढ़ती हुई उमर की,पीड़ा की कथाएँ 
प्राम मे बैठा कर ,अपने नन्हें पोते,पोतियाँ 
घुमाती हुई,घुटनो के दर्द से ,
पीड़ित उनकी दादियाँ
अपने नाजुक कंधों पर,
ढेर सारी किताबों का बोझ लादे ,
भविष्य के सपने सँजोये , 
स्कूल बस पकड़ने भागते बच्चेऔर बच्चियाँ   
और हाथ मे सेंडविच लिए,
बच्चों को खिलाती हुई ,
उनके संग संग भागती ,उनकी मम्मियाँ 
अपने लाडले को झूला झुलाते हुये पिता 
और हर पेंग पर ,उसकी मम्मी ,
उसे केले का एक बाइट खिलाती जाये  
फोन पर प्रवचन या पुराने गाने सुनते,
सेहत के प्रति जागरूक ,
पुरुष  और महिलायें 
अपनी बुझती हुई आँखों मे ,
भरे हुये लाचारी 
हरी हरी घाँस पर ,
नंगे पैर घूमते नर नारी 
मै भी सुबह सुबह की सैर के बाद,
ठंडी ठंडी हवाओं के झोंकों से,
ठंडी सी सांस भर , एक बार 
थका थका ,अपने घर की तरफ लौटता हूँ,
जहां पर चाय का प्याला बना,
मेरी बीबी ,कर रही होगी मेरा इंतजार 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 
   

रविवार, 23 जून 2013

नामाक्षर गण्यते

             नामाक्षर  गण्यते
           
 दुशयंत  ने,शकुंतला से गंधर्व शादी रचाई 
उसे  भोगा ,और,
अपने नाम लिखी एक अंगूठी पहनाई 
और राजधानी चला गया,यह कह कर
'नामाक्षर गण्यते' याने,
मेरे नाम के तुम गिनना अक्षर 
इस बीच मै आऊँगा  
और तुम्हें महलों मे ले जाऊंगा 
गलती से शकुंतला की अंगूठी खो गई 
और कई दिनो तक,जब दुष्यंत आया नहीं 
तो शकुंतला गई राज दरबार 
पर दुष्यंत ने पहचानने से कर दिया इंकार 
 जब भी चुनाव नजदीक आता है 
मुझे ये किस्सा याद आ जाता है  
क्योंकि ,आज की सत्ता ,दुशयंत सी है,
जो चुनाव के समय,
शकुंतला सी भोली जनता पर,
प्रेम का प्रदर्शन कर ,
सत्ता का सुख भोग लेती  है 
और फिर उसे कभी अंगूठा ,
या आश्वासन की अंगूठी पहना देती  है 
साड़ेचार अक्षरों का नाम लिखा होता है जिस पर 
सत्ता सुख की मछली ,
उस अंगूठी को निगल जाती है ,पर 
और गुहार करती ,जनता,जब राजदरबार जाती है 
पहचानी भी नहीं जाती है 
हाँ,नामाक्षर गण्यते का वादा निभाया जाता  है 
उसके नाम का एक एक अक्षर,
एक एक वर्ष सा हो जाता है 
और तब कहीं साड़े चार साल बाद 
उसे आती है जनता की याद 
क्योंकि पांचवें साल मे,
 आने वाला होता है चुनाव  
और सत्ताधारियों को याद आने लगता है,
जनता के प्रति अपना  लगाव 
जब भी चुनाव नजदीक आता है 
मुझे ये किस्सा याद आता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हे गंगाधर!


हे शिव शंकर!
श्रद्धानत भक्तों की भारी भीड़ देख कर,
आप इतने द्रवीभूत हो गए,
कि आपका दिल बादल सा फट पड़ा 
आपने तो अपनी जटाओं मे ,
स्वर्ग से अवतरित होती गंगा के वेग को,
वहन कर लिया था ,
पर हम मे इतना सामर्थ्य कहाँ,
जो आपकी भावनाओं के वेग को झेल सकें,
आपने बरसने के पहले ये तो सोचा होता 
भस्मासुर कि तरह वरदान देकर ,
कितनों को भस्म कर दिया 
मंद मंद बहनेवाली मंदाकिनी को,
वेगवती बना दिया
अपनी ही मूर्ती को ,गंगा मे बहा दिया 
हे गंगाधर !
आपने ये क्या किया ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू ' 

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