एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 18 जून 2013

सागर तीरे

          

          सागर तीरे 
समुंदर के किनारे ,निर्वसन,लेटी धूप मे 
लालिमा पर कालिमा को ला रही निज रूप मे 
सूर्य की ऊर्जा तुम्हारे ,बदन मे छा  जाएगी 
रजत तन पर ताम्र आभा ,सुहानी आ जाएगी 
चोटियाँ उत्तंग शिखरों की सुहानी,मदभरी 
देख दीवाने हुये हम,मची दिल मे खलबली 
रजत रज पर ,देख बिखरी,रूप रस की बानगी 
हो गया पागल बहुत मन,छा  गई दीवानगी 
समुंदर से अधिक ऊंची ,उछालें ,मन भर रहा 
रूप का मधु रस पिये हम,हृदय  बरबस कर रहा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

कवि की पीड़ा

          
            कवि की पीड़ा 
एक जमाना था हम रहते बहुत बिज़ी थे 
आज यहाँ,कल वहाँ तीसरे रोज कहीं थे 
कविसम्मेलन मे निशदिन भागा करते थे 
दिन मे चलते,रात रात जागा करते थे 
थे शौकीन लोग,कविता के कदरदान थे
बड़े बड़े आयोजन मे हम मेहमान थे 
रोज रोज तर माल मिला करता था खाने 
और सुरा भी मिल जाती दो घूंट  लगाने 
उस पर वाह वाह का टॉनिक मिल जाता था 
श्रोताओं की भीड़ देख ,दिल खिल जाता था 
और बाद मे पत्र पुष्प से  जेब भरे  हम 
महीने मे अच्छी ख़ासी होती थी इन्कम 
और होली पर इतने कविसम्मेलन थे होते 
जैसे श्राद्धों मे ,पंडित को मिलते  न्योते 
हर वरिष्ठ कवि का अपना ही ग्रुप होता था 
और ठेका लेकर के कविसम्मेलन होता था 
टाइम कब था,नई नई कविता गढ़ने का 
एक कविता हिट ,तो सदा वो ही पढ़ने  का
जब से टी.वी.पर कामेडी सर्कस  आया 
लोगों ने ,कविसम्मेलन करवाना भुलवाया 
भूले भटके कभी कभी मिलता आमंत्रण 
वाह वाह और भीड़ देखने तरसे है मन 
और बड़ी मुश्किल से घर का चले गुजारा 
वो दिन गए,फाकता  ,मियां करते मारा  
बंद हुये अखबार ,कविताए कम छपती 
और छपास की भी भड़ास अब नहीं निकलती 
बहुत कुलबुलाता,कविसम्मेलन का कीड़ा है 
मेरी नहीं,हरेक  कवि की  ये पीड़ा  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 
  

बरसात

          
        
               
                 बरसात 
जब ना आती ,तो तरसाती,आती,रस बरसाती हो 
रसवन्ती निज बौछारों से ,जीवन को सरसाती हो 
मगर तुम्हारा अधिक प्यार भी,परेशानियाँ लाता है 
जब लगती है झड़ी प्यार की ,तो यह मन उकताता है 
संयम से जो रहे संतुलित ,वही सुहाता है मन को 
पत्नी कहूँ,प्रियतमा बोलूँ ,या बरसात  कहूँ  तुमको 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 17 जून 2013

कथनी और करनी

  
      कथनी और करनी 
बड़े जोश से,ये कर देंगे,वो कर देंगे ,कहते थे 
और हमेशा ,बड़े बड़े ,जो  वादे  करते रहते थे 
हमने उन्हे चमन सौंपा था,उसकी रखवाली करने 
लेकिन बेच,फूल और फल वो,अपनी जेब लगे भरने 
हो जाता बर्बाद,सूखता,नूर चमन  सब खोता  है 
खाने लगती बाड़ खेत को,तब एसा ही होता है 
और उस पर ये सितम ,गर्व से,चीख चीख ये बतलाते 
जो कुछ उनने किया उसे ,अपनी उपलब्धी बतलाते 
हमको फिर सत्ता मे लाओ,सस्ता  अन्न तुम्हें देंगे 
पिछली बार खा लिया हमने,अब तुमको खाने देंगे 
बहुत दुखी कर,भरमाया है,इनके गोरखधंधों ने 
लूटा बहुत देश है मेरा,इन  मतलब  के अंधों ने 
अब हम को जो भी करना है,हम कर के दिखला देंगे 
जनता को धोखा देने का,फल तुमको सिखला देंगे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

डालर का इकोनोमिक्स

    
       डालर  का इकोनॉमिक्स 
जब चुनाव नजदीक आता है ,
डालर का भाव  बढ़ जाता है 
क्योंकि भ्रष्ट राज नेताओं का ,
डालरों मे जमा किया काला धन 
जब विदेशी बेंकों से निकाल कर ,
हवाले से जब हमारे देश मे आता है 
तो चुनाव मे खर्च करने को ,
ज्यादा रुपैया मिल जाता है 
घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-