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बुधवार, 12 जून 2013

घडी

            
ये घडी,
एक स्थान पर पड़ी 
सबसे टिक टिक  कहती रहती 
और खुद रहती,
 एक जगह पर टिक कर ,
लेकिन हरदम  चलती रहती 
जब तक इसमे बेटरी या सेल है 
तभी तक इसका खेल है 
आदमी की जिंदगी से ,
देखो कितना मेल है 
इसकी टिक  टिक ,आदमी की सांस जैसी ,
बेटरी सी आदमी की जान है 
जब तक बेटरी मे पावर है 
साँसो का आना जाना उसी पर निर्भर है 
बेटरी खतम,
घडी भी बंद,साँसे भी बंद 
घडी मे होते है तीन कांटे ,
सेकंड का काँटा ,बड़ी तेजी से चलता रहता है 
बचपन की तरह ,उछलता रहता है 
मिनिट का काँटा,
जवानी की तरह ,थोड़ा तेज तो है,
पर संभल  संभल कर चलता है 
और घंटे का कांटा ,
जैसे हो बुढ़ापा 
बाकी दोनों कांटो के चलने पर निर्भर 
बड़े आराम से ,धीरे धीरे ,
बढ़ाता है अपने कदम 
क्या पता ,कब घड़ी ,जाय थम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उतार चढाव

           उतार चढाव
     
उठता  है जो कोई तो फिर गिरता  भी कोई है,
                             डालर चढ़ा तो रुपैया   धडाम हो गया
मोदीजी की  पतंग जो ऊपर को उड़ गयी ,
                               अडवानी जी का थोड़ा  नीचा नाम हो गया
गुस्से में बौखला के उनने स्तीफा दिया ,
                                सपना पी  एम बनने का ,तमाम हो गया
मोहन ने ऐसी भागवत   है कान में पढी,
                               फिर  से  पुराना वो ही ताम  और झाम हो गया 
    मदन मोहन बाहेती'घोटू '    

मंगलवार, 11 जून 2013

बिल्लियों की लड़ाई में मज़े बन्दर लूटता --

 
              बिल्लियों की लड़ाई में मज़े बन्दर  लूटता

कह  रहा हूँ  बात ये सच ,नहीं बिलकुल  झूंठ है
बुजुर्गों को  दो तबज्जो ,वरना जाते     रूठ  है
उनकी इज्जत और उनका मान रखना चाहिये ,
वरना उनका दिल दुखी होता है,जाता टूट   है
लाभ उनके अनुभव का हमको लेना चाहिये ,
वर्ना घर के सदस्यों में ,जाती है पड़  फूट  है
दो अलग खेमो में बंट  जाता सकल परिवार है,
एक दूजे के विरोधी ,बन जाते दो  गुट  है
बिल्लियों की लडाई में मज़े बन्दर उठाता ,
और सारी रोटियां ,जाता मज़े से लूट है
मन की चाही  बहू ,बेटा लाया है ,स्वागत करो,
नयी पीड़ी को ज़रा तो देनी  पड़ती  छूट है
दौर तुम्हारा है गुजरा , हाथ से छूटी पकड़,
नहीं अच्छा ,छोड़ना घर ,और जाना रूठ है
रूठने और मनाने का ,खेल सारा छोड़ दो ,
सफलता तब मिलेगी जब ,सब के सब एकजुट है
कमान्डर बन करके उनका पथ प्रदर्शन कीजिये ,
मोरचे पर जोश से लड़ता  नया रंगरूट है
हो अगर मकसद बड़ा तो अहम् पड़ता त्यागना ,
बताओ ये बात मेरी ,सत्य है या  झूंठ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


सोमवार, 10 जून 2013

         जब पसीना गुलाब था 
          
वो दिन भी क्या थे ,जब कि पसीना गुलाब था 
हम भी जवान थे और तुममे भी शबाब था 
तुम्हारा प्यार   मदभरा  जामे-शराब था 
उस उम्र का हर एक लम्हा ,लाजबाब  था 
             बेसब्रे थे और बावले ,मगरूर बहुत थे
            और जवानी के नशे में हम चूर  बहुत थे 
            पर जोशे-जिन्दगी से हम भरपूर बहुत थे 
            लोगों की नज़र में हम नामाकूल  बहुत थे
  जब इन तिलों में तेल था ,वो दिन नहीं रहे 
  अरमान दिल के हमारे आंसू में  सब   बहे 
  अपने ही गये  छोड़ कर ,अब किससे क्या कहे 
  टूटा है दिल, उम्मीद के ,सारे  किले  ढहे 
            हमने था जिन्दगी  को बड़े चाव से जिया 
             आबे-हयात उनके लबों से था जब पिया 
               बढ़ती हुई उम्र ने है ऐसा सितम किया 
             वो दिन गए जब मारते थे ,फ़ाक़्ता मियां 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिन्दगी बस ऐसे ही चलती है

 जिन्दगी  बस ऐसे ही चलती है 

शुरू शुरू में बड़ा चाव होता है 
मन में एक नया उत्साह होता है 
जीवन में छा जाते है नए रंग 
नए नए सपने,नई नई  उमंग 
और फिर धीरे धीरे ,रोज का चक्कर 
कभी कभी सुहाता,कभी बड़ा दुःख कर 
ढलती है जवानी और उमर है बढ़  जाती 
 इसी तरह जीने की ,आदत  पड़  जाती 
कभी कच्ची रहती,कभी दाल गलती 
जिन्दगी सारी ,बस ऐसे  ही चलती 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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