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रविवार, 19 मई 2013

श्री और संत का खेल

    

फंसा बुकी जाल में हूँ,खिलाड़ी कमाल मै हूँ,
        पिच पे की घिचपिच ,घोटाला  विराट है 
हरे हरे फील्ड पर ,कमाने को हरे नोट ,
       हारने को किये फिक्स ,थोड़े स्पॉट   है 
फेंक कर के नो बाल ,रन दो तो मिले माल,
       एक ही पारी में ऐसे , रन दिए  आठ है 
धन का अनंत खेल ,श्री और संत मेल,
          अंत में मिले है जेल, खोये ठाठबाट  है 

घोटू 

मिर्च मसाले

      

मसाला ,
ये शब्द होता है बड़ा प्यारा 
क्योंकि इसमें आता है साला 
हर एक की अलग अलग खुशबू ,
अलग अलग स्वाद 
जीवन और खाने को बनाते है लाजबाब 
सबका अपना अपना रूप रंग होता है 
जैसे हल्दी पीली और धनिया गोल होता है 
जीरा ,जीर्ण शीर्ण ,राइ गोल नन्ही सी ,
और लोंग  माथे पर ,मुकुट सा पहने सी 
सिर्फ एक मिर्ची है जो कई रंगों वाली है 
हरी,लाल,पीली है और कभी काली है 
मोटी  है ,पतली है, लम्बी है, छोटी है
और गोलमोल कालीमिर्च होती है 
तुंदियल सी शिमलामिर्च  
लाल,हरी और पीली होती है 
और छोटी सी लोंगा मिर्च ,
ज़रा सी खा लो तो मुंह में आग लगा दे,
इतनी चरपरी होती है 
भोजन में चटकारे,सारे के सारे,
मिर्ची से ही आते है 
लोग सी सी कर ,सिसकारियां  भरते है  ,
पर चाव से खाते है 
बिना मिर्ची के,चाट का ठाठ,
एकदम फीका पड़ जाता है 
जितनी झन्नाट  होती है,उतना मज़ा आता है 
आज खालो,तो दुसरे दिन सुबह तक,
अपना असर दिखाती है 
पर खाने की रंगत ,मिर्ची से ही आती  है 
इस जीवन में रंगत और स्वाद ,
साले और बीबी से ही आता है 
लोग भले ही सी सी करते है,पर सुहाता है 
इसीलिये साले ,मसाले की तरह होते है ,
और औरत को मिर्ची भी कहा जाता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 18 मई 2013

जन्मदिवस की बधाई

   

आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 
आपकी इस जिन्दगी में ,रहे सब खुशियाँ समाई 
           कोई चिंता ना सताये   
            खूब मीठी नींद आये 
           आप हरदम मुस्कराये     
          गम नहीं नजदीक आये  
          स्वास्थ्य सुन्दर,भली सेहत 
              आये ना कोई मुसीबत 
               स्वजनों का प्यार पायें
              हमेशा खुशियाँ मनाये 
आपके इस मृदुल मुख पर ,रहे रौनक सदा छाई 
आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे संभालो

    

दुःख पीड़ा में ,इक दूजे का हाथ बटा लो
मै तुम्हे सम्भालूँ ,तुम मुझे संभालो 
जब भी आती याद जवानी की वो बातें
 दिन मस्ती के होते थे और मादक रातें  
बीत गया वो दौर खुशी का ,हँसते ,गाते 
अब तो बस यादें है जिनसे मन बहलाते 
आपा  धापी में जीवन की ,बस मशीन बन 
चलते ,रुकते ,यूं ही बीत गया सब जीवन 
भूली बिसरी उन यादों को  आओ खंगालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे  संभालो ,,
तुम संग बंधन बाँध ,बंधे दुनियादारी में 
फंसे गृहस्थी के चक्कर,जिम्मेदारी में 
बच्चों का पालन पोषण और बीमारी में 
जीवन बीत गया यूं ही मारामारी में 
उमर काट दी ,यूं ही घुट घुट ,रह कर चिंतित 
पर हम दोनों,इक दूजे पर ,अब अवलंबित 
एक दूसरे को सुख दुःख में,देखो भालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ, तुम मुझे संभालो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

और अभी तक ,मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ



मुझको जीवनसाथी के लिए ,
तलाश थी एक एसी लड़की की 
जो दिखने में सुन्दर हो,
और हो पढीलिखी 
मेरी माँ चाहती थी सजातीय हो ,
घर के कामकाज में निपुण हो 
संस्कारी और सर्वगुण संपन्न हो 
और पिताजी चाहते थे ,उसके माँ बाप ,
ढेर सा दहेज़ दे सकें,इतने संपन्न हो 
दादी जी चाहती थी ,जन्मपत्री का सही  मिलान
बत्तीस गुण मिल जाये 
बहू हो ऐसी जो काम करे दिन भर और,
रात को उनके पैर भी दबाये 
कभी कोई मुझे पसंद आती ,
तो वो मुझे कर देती रिजेक्ट 
कभी कोई मुझे पसंद करती ,
तो मै कर देता उसे रिजेक्ट 
कभी कोई लड़की मुझे और मै उसे  ,
कर लेता पसंद 
तो या तो मेरे मम्मी पापा को 
 पसंद नहीं आता ये सम्बन्ध 
या उसके मम्मी पापा ,नहीं होते रजामंद 
लगता है ऐसी सर्वगुण संपन्न लडकियां 
भगवान् ने बनाना करदी बंद 
फिर भी ,अगली दूकान पर शायद ,
सबकी पसंद का सामान मिल जाए 
यही आस मन में समेटा हुआ हूँ 
और अभी तक मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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