एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 16 जनवरी 2013

चर्चित दाना - चर्चित दाना....


















चर्चित दाना - चर्चित दाना
छोड़ दो अब तुम खाना खाना...

महंगाई है चरम पे अपने 
शुरू करो अब चुगना दाना
बहुत खा चुके थाली भर भर
बहुत गा चुके गाना वाना....

आने वाला दिन ऐसा है 
खाना कम बस गोली खाना
ऐश की सारी चीज़ें होंगी
सेहत लेकिन ना ना ना ना....

आज नहीं एक दिन सोचोगे
अच्छा है पंछी बन जाना,
मानव जीवन बडा कठिन है
नींद में भी बस पाना - पाना....

चर्चित दाना - चर्चित दाना
छोड़ दो अब तुम खाना खाना....

- VISHAAL CHARCHCHIT

वक्त की लय पर चलो एक राग सुन लें....

















वक्त की लय पर चलो
एक राग सुन लें

है बसंती रुत सुहानी
है बडी चंचल पवन
है हृदय में भाव जागा
ख्वाब से भीगे नयन

आओ मन के मीत सा
एक साज चुन लें

तुम कहां खोये हुए हो
कौन धुन में हो मगन,
कौन सा ऐसा विषय है
कर रहे चिंतन-मनन

आओ हम तुम साथ मिल
एक आज बुन लें....

- VISHAAL CHARCHCHIT

बिन तुम्हारे

      बिन तुम्हारे

क्या बतलाऊँ ,बिना तुम्हारे ,    कैसे कटती          मेरी रातें
मिनिट मिनिट में नींद टूटती ,मिनिट मिनिट में सपने आते 
बांह पसारूं,तो सूनापन,
                 तेरी बड़ी कमी लगती है
बिन ओढ़े सर्दी लगती है,                    
                   ओढूं तो गरमी  लगती है
तेरी साँसों की सरगम बिन,
                        सन्नाटा छाया रहता है
करवट करवट ,बदल बदल कर,
                      ये तन अलसाया रहता है
ना तो तेरी भीनी खुशबू ,और ना मीठी ,प्यारी बातें
क्या बतलाऊँ ,बिना तुम्हारे ,कैसे कटती ,मेरी रातें     
कितनी बार,जगा करता हूँ,
                     घडी  देखता,फिर सो जाता
तकिये को बाहों में भरता ,
                      दीवाना सा ,मै  हो जाता
थोड़ी सी भी आहट होती ,
                    तो एसा लगता  तुम आई
संग तुम्हारे जो बीते थे,
                    याद आते वो पल सुखदायी
सूना सूना लगता बिस्तर ,ख्वाब मिलन के है तडफाते
क्या बतलाऊँ,बिना तुम्हारे,  कैसे कटती ,    मेरी रातें
  तुम जब जब, करवट लेती थी,
                       होती थी पायल की रुन झुन
बढ़ जाती थी ,दिल की धड़कन ,
                       खनक चूड़ियों की ,प्यारी सुन
अपने आप ,अचानक कैसे,
                       बाहुपाश में हम  बंध  जाते
बहुत सताती ,जब याद आती ,
                         वो प्यारी  ,मदमाती  राते
फिर से वो घडियां  आयेंगी ,दिल को ढाढस ,यही बंधाते
क्या बतलाऊँ,बिना तुम्हारे,     कैसे कटती  ,मेरी रातें 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

असर -मौसम का

     असर -मौसम का

आजकल का मौसम ,
ही इतना जालिम है ,
अच्छे भले लोगों की ,कमर तक टूट गयी
तुलसी जी को देखो ,
दो महीने पहले ही,
था इनका ब्याह हुआ,और बिलकुल सूख गयी

घोटू

रविवार, 13 जनवरी 2013

वक़्त वक़्त की बात

  वक़्त वक़्त की बात

एक जवां मच्छर ने,कहा एक बूढ़े से,
                              आपके जमाने में ,बड़ी सेफ लाइफ थी 
ना 'हिट 'ना' डी .डी .टी .'न ही 'आल आउट 'था,
                              और ना धुवां देती ,कछुवे की कोइल थी
एक आह ठंडी भर,बोला बूढा मच्छर,
                               वो तो सब ठीक मगर ,मौज तुम उड़ाते हो
आज के जमाने में ,है इतना खुल्लापन ,
                               जहाँ चाहो मस्ती से ,चुम्बन ले पाते हो
हमारे जमाने में,एक बड़ी मुश्किल थी,
                               औरतों का सारा तन,रहता था ,ढका ,ढका
तरस तरस जाते थे ,मुश्किल से कभी,कहीं,
                                 चूमने का मौका हम,पाते थे यदा कदा
समुन्दर के तट पर या फिर स्विमिंग पूलों पर ,             
                                  खतरा भी कम है और रौनक भी ज्यादा है
तुम तो हो खुश किस्मत ,इस युग में जन्मे हो ,
                                   तुम्हे मौज मस्ती के,मौके भी ज्यादा  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-