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सोमवार, 7 जनवरी 2013

Akbaruddin Owaisi's hate speech at Nirmal, Adilabad Dist - Full Length V...

देखो हिन्दूओ तुम्महारे कतल की तैयारी किस तरह हो रही है

जिव्हा और दांत -मिया और बीबी वाली बात

     जिव्हा और दांत -मिया और बीबी वाली बात

जिव्हा और दांत
दोनों रहते है साथ साथ
एक सख्त है ,एक मुलायम है
मगर दोनों सच्चे हमदम है
इनका रिश्ता है ऐसे
मियां और बीबी हो जैसे
जिव्हा ,पत्नी सी ,कोमल और नाजुक
 दांत,पति से ,स्ट्रोंग और मजबूत
दांत चबाते है ,जिव्हा स्वाद पाती है
पति कमाता है,बीबी मज़ा उठाती  है
जिव्हा,चंचल चपल और चुलबुली है
बातें बनाती रहती,जब तक खुली है     
दांत, स्थिर ,थमे हुए और सख्तजान है
चुपचाप ,बिना शिकायत के ,करते काम है
बस जब थक जाते है तो किटकिटाते है
और जीभ जब ज्यादा किट किट करती है,
उसे काट खाते है
जैसे कभी कभी अपनी पत्नी पर ,
पति अंकुश लगाता है
मगर फिर भी ,दांतीं की तरह,
उसे अपने आगोश में छुपाता  है
दांतों के बीच में जब भी कुछ है फंस  जाता
 जिव्हा को झट से ही इसका पता चल जाता
और वह इस फंसे हुए कचरे को निकालने ,
सबसे पहले पहुँच जाती है
और जब तक कचरा निकल नहीं जाता ,
कोशिश किये जाती है
जैसे पति की हर पीड़ा ,पत्नी समझती है
और उसकी हर मुश्किल में ,
आगे बढ़ कर मदद करती है
पति पत्नी जैसे ही इनके हालत होते है
दिन भर अपना अपना काम करते है ,
पर रात को चुपचाप ,साथ साथ  सोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

सभी को है आता-बुढ़ापा ,बुढ़ापा

    सभी को है आता-बुढ़ापा ,बुढ़ापा

सभी को है आता ,सितम सब पे ढाता
देता है तकलीफ ,सबको  सताता
हंसाता तो कम है,अधिकतर  रुलाता 
बड़े ही बुरे दिन ,सभी को दिखाता 
परेशानियों में है होता  इजाफा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
कभी दांत हिलते है खाने में दिक्कत
चबा कुछ न पाओ ,रहो टूंगते बस 
अगर खा भी लो जो कुछ ,तो पचता नहीं है
 मज़ा जिंदगानी का बचता नहीं है 
ये दुःख इतने देता है,क्यों ये विधाता
बुढ़ापा,बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा
चलने में,फिरने में आती है दिक्कत
जरा सा भी चल लो ,तो आती थकावट
हरेक दूसरे दिन ,बिगडती तबियत
उम्र जैसे बढती है,बढती मुसीबत
नहीं चैन मिलता है हमको जरा सा 
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा 
न चेहरे पे रौनक ,न ताकत बदन में
तमन्नाएँ  दब जाती,सब मन की मन में
बुढ़ापे ने ऐसा जुलम कर दिया है
 गयी सब लुनाई ,पड़ी झुर्रियां है 
मुरझा गया फूल ,जो था खिला सा
बुढ़ापा,बुढ़ापा बुढ़ापा बुढ़ापा
हुई धुंधली आँखें ,नज़र कम है आता
है हाथों में कम्पन,लिखा भी न जाता
करो बंद आँखें तो यादें ,सताती
नहीं ढंग से नींद भी तो  है आती
सपनो में यादों का खुलता लिफाफा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा 
न तो पूछे बच्चे,न पोती न पोते
उमर कट रही है यूं ही रोते रोते
नहीं वक़्त कटता  है,काटें तो कैसे
दुःख दर्द अपना ,हम बांटें  तो कैसे
अपनों का बेगानापन है रुलाता
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
उपेक्षित,अवांछित,अकेले अकेले
बुढ़ापे की तकलीफ,हर कोई झेले
कोई प्यार से बोले,दिल है तरसता
धुंधलाती आँखों से ,सावन बरसता
नहीं देता कोई है आकर दिलासा
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
उमर जब भी बढती ,ये होता अधिकतर
होती है हालत ,बुरी और बदतर
नहीं बाल बचते है ,उड़ जाते अक्सर
या फिर सफेदी सी छा  जाती सर पर 
हसीनाएं कहती है ,दादा या बाबा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा

मदनं मोहन बाहेती'घोटू'


गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मेरी डायरी का हर पन्ना .....

मेरी डायरी का हर पन्ना .....

मैंने जो भी लिखा प्यार में,यादगार हर पेज हो गया
मेरी डायरी का हर पन्ना ,अब तो दस्तावेज  हो गया
सर्दी ,गर्मी और बसंत ने,ऐसा ऋतू का चक्र चलाया
आज बन गया कल और कल बनने फिर से अगला कल आया
आये ,गये ,बहुत से सुख दुःख ,कभी हंसाया ,कभी रुलाया 
दिया किसी अपने ने धक्का,और किसी ने गले लगाया  
पल पल बदली ,जीवन की गति ,धीमा ,मध्यम,तेज हो गया
मेरी डायरी का हर पन्ना,अब तो दस्तावेज  हो गया
जब तक कायम रही जवानी,खूब मौज और मस्ती मारी
खूब मज़ा जीवन का लूटा,खूब निभाई दुनियादारी
जब तक दिन था,रहा चमकता ,अब आई ढलने की बारी
बादल ढक ,निस्तेज कर गए  ,पाबंदिया लग गयी सारी
खाया पिया जवानी में जो ,उमर बढ़ी,परहेज हो गया
मेरी डायरी का हर पन्ना ,अब तो दस्तावेज हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

सर्दी का सन्डे

    सर्दी का सन्डे 

सन्डे की छुट्टी और सर्दी का मौसम
बड़ा ही सुहाना ये होता है आलम
जल्दी से उठने में आता है आलस
दुबके ,रजाई में,लेटे  रहो बस 
गुड मोर्निंग का ये तरीका है प्यारा
बिस्तर में मिल जाए,चाय का प्याला
सवेरे सवेरे ,बड़ा मन को मोहे
मिले नाश्ते में ,जलेबी और पोहे
या आलू परांठों को,मख्खन से खाना
और गाजर का हलवा ,लगे है सुहाना
मिले लंच में खाने को ताज़ी ताज़ी
मक्का की रोटी और सरसों की भाजी
दुपहरी में छत पर ,गरम धूप  खाना 
बीबी और बच्चों से गप्पें  लगाना
कभी रेवडी तो कभी मूंगफली हो
गरमा गरम कुछ पकोड़ी तली हो
कभी जामफल तो कभी तिल  की चिक्की 
कभी पाव  भाजी,कभी आलू टिक्की
डिनर में कढी संग,बिरयानी प्यारी
या छोले भठूरे की जोड़ी निराली
और स्वीट डिश  में हो ,गुलाब जामुन
यूं ही खाते पीते ,गुजर जाता है दिन
टी .वी में पिक्चर का लेते मज़ा हम
सन्डे की छुट्टी और सर्दी का मौसम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


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