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बुधवार, 7 नवंबर 2012

हस्त शक्ति-दे भक्ति

    हस्त शक्ति-दे  भक्ति

श्री विष्णु ,जग के पालनहार

एकानन है,मगर भुजाएं चार
   याने सर और हाथ का अनुपात
           एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि  रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
     याने सर और हाथ का अनुपात
               एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
     एकानन है और भुजाये है  दो
     याने सर और हाथ का अनुपात
             एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
      उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
      याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
 शक्ति का साक्षात्  रूप
     एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
 औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


सोमवार, 5 नवंबर 2012

लेखा जोखा


           लेखा जोखा

पिछले कितने ही वर्षों का,

इस जीवन के संघर्षों का ,
                  आओ करें हम लेखा जोखा
किसने साथ दिया बढ़ने में,
मंजिल तक ऊपर चढ़ने में,
                    और रास्ता  किसने  रोका
किसने प्यार दिखा  कर झूंठा,
दिखला कर अपनापन ,लूटा,
                   और किन किन से खाया धोका
बातें करके  प्यारी प्यारी,
काम निकाल,दिखाई यारी,
                    और पीठ में खंजर  भोंका 
देती गाय ,दूध थी  जब तक,
उसका ख्याल रखा बस तब तक,
                     और बाद में खुल्ला  छोड़ा
उनका किया भरोसा जिन पर,
अपना  सब कुछ ,कर न्योछावर,
                       उनने ही है दिल को तोड़ा
खींची टांग,बढे जब आगे
साथ छोड़,मुश्किल में भागे,
                    बदल गए जब आया मौका
टूट गए जो उन सपनो का ,
बिछड़े जो उन सभी जनों का
                    सभी परायों और अपनों का
नहीं आज का,कल परसों का
विपदाओं का, ऊत्कर्षों  का,
                       आओ करें हम लेखा जोखा
 पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का,
                         आओ करें  हम लेखा जोखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

    
                   
 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

छोटी-सी गुड़िया


छोटी-सी वो गुड़िया थी गुड़ियों संग खेला करती थी,
खेल-कूद में, विद्यालय में सदा ही अव्वल रहती थी ।

भोली थी, नादान थी वो पर दिल सबका वो लुभाती थी,
मासूमियत की मूरत थी, बिन पंख ही वो उड़ जाती थी ।

बचपन के उस दौर में थी जब हर पल उसका अपना था,
दुनिया से सरोकार नहीं था, उसका अपना सपना था ।

यूँ तो सबकी प्यारी थी पर पिता तो 'बोझ' समझता था,
एक बेटी है जंजाल है ये, वो ऐसा ही रोज समझता था ।

शादी-ब्याह करना होगा, हर खर्च वहन करना होगा,
लड़के वालों की हर शर्तें, हर बात सहन करना होगा ।

कन्यादान के साथ में कितने 'अन्य' दान करने होंगे,
घर के साथ इस महंगाई में, ये देह गिरवी धरने होंगे ।

छोटी-सी एक नौकरी है, ये कैसे मैं कर पाउँगा,
रोज ये रोना रोता था, मैं जीते जी मर जाऊंगा ।

जितनी जल्दी उतने कम दहेज़ में काम बन जायेगा,
किसी तरह शादी कर दूँ, हर बोझ तो फिर टल जायेगा ।

इस सोच से ग्रसित बाप ने एक दिन कर दी फिर मनमानी,
बारह बरस की आयु में गुडिया की ब्याह उसने ठानी ।

सोलह बरस का देख के लड़का करवा ही दी फिर शादी,
शादी क्या थी ये तो थी एक जीवन की बस बर्बादी ।

छोटी-सी गुड़िया के तो समझ से था सबकुछ परे,
सब नादान थे, खुश थे सब, पर पीर पराई कौन हरे ।

ब्याह रचा के अब गुड़िया को ससुराल में जाना था,
खेल-कूद छोड़ गृहस्थी अब उस भोली को चलाना था ।

उस नादान-सी 'बोझ' के ऊपर अब कितने थे बोझ पड़े,
घर-गृहस्थ के काम थे करने, वो अपने से रोज लड़े ।

इसी तरह कुछ समय था बीता फिर एक दिन खुशखबरी आई,
घर-बाहर सब खुश थे बड़े, बस गुड़िया ही थी भय खाई ।

माँ बनने का मतलब क्या, उसके समक्ष था प्रश्न खड़ा,
तथाकथित उस 'बोझ' के ऊपर आज एक दायित्व बढ़ा ।

कष्टों में कुछ मास थे गुजरे, फिर एक दिन तबियत बिगड़ा,
घर के कुछ उपचार के बाद फिर अस्पताल जाना पड़ा ।

देह-दशा देख डॉक्टर ने तब घरवालों को धमकाया,
छोटी-सी इस बच्ची का क्यों बाल-विवाह है करवाया ?

माँ बनने योग्य नहीं अभी तक देह इसका है बन पाया,
खुशियाँ तुम तो मना रहे पर झेल रही इसकी काया ।

शुरू हुआ ईलाज उसका पर होनी ही थी अनहोनी,
मातम पसर गया वहां पर सबकी सूरत थी रोनी ।

बच्चा दुनिया देख न पाया, माँ ने भी नैन ढाँप लिए,
चली गई छोटी-सी गुड़िया, बचपन अपना साथ लिए ।

साथ नहीं दे पाया, उसके देह ने ही संग छोड़ दिया,
आत्मा भी विलीन हुई, हर बंधन को बस तोड़ दिया ।

एक छोटी-सी गुड़िया थी वो चली गई बस याद है,
ये उस गुड़िया की कथा नहीं, जाने कितनों की बात है ।

ऐसे ही कितनी ही गुड़िया समय पूर्व बेजान हुई,
कलुषित सोच और कुरीत के, चक्कर में बलिदान हुई ।

संकट तो है सब पर आते

 
      संकट तो है सब पर आते
लेकिन जो धीरज धरते है,
      मुश्किल में भी है मुस्काते
      संकट तो है सब पर आते
हिल जाते है,पात,टहनियां,
लेकिन तना,तना रहता है
होती गहरी जड़ें ,उसीका,
बस अस्तित्व बना रहता है
      झंझावत और तूफानों में,
      सुदृढ़ वृक्ष ना हिल पाते है
     संकट तो सब पर आते है
शिवशंकर,भगवान हमारे,
भी तो आये थे संकट में
भस्मासुर को वर दे डाला,
दौड़ा भस्म उन्ही को करने
       रख कर रूप मोहिनी वाला,
        श्री विष्णु है उन्हें बचाते
        संकट तो  है सब पर आते
राम रूप में प्रगटे भगवन ,
कितने संकट आये उन पर
भटके वन वन,उस पर रावण,
उड़ा ले गया,सीता को हर
       संकटमोचन बन कर हनुमन,
       सीता का है पता  लगाते
        संकट तो है सब पर आते     
इसीलिये यदि आये संकट,
नहीं चाहिए हमको डरना
बल्कि धीर धर ,निर्भयता से,
रह कर अडिग,सामना करना
        सच्चे साथी,साथ निभाते,
       रहो अटल,संकट टल जाते
       संकट तो है सब पर आते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

करने पड़ते है समझौते

 
          करने पड़ते है समझौते

जीवन के हर एक मोड़ पर

अपने सब सिद्धांत  छोड़ कर
  चाहे हँसते,   चाहे रोते
करने पड़ते है समझौते
 बेटी  का करना विवाह है
अच्छे वर की अगर चाह है 
पढ़ा लिखा और अच्छे पद पर
है कमाऊ,सुन्दर लड़का  पर
उसके माता पिता तेज है
मांग रहे मोटा  दहेज़ है
नेता आप,समाज सुधारक
आदर्शों को आले में रख
बेटी सुख का ख्याल करेंगे
मुंहमांगा दहेज़ दे देंगे
अच्छा रिश्ता,यूं ना खोते
करना पड़ते है समझौते 
अफसर आप इमानदार है
चलते नियम अनुसार है
मोटा टेंडर कोई खुलेगा
ऊपर से आदेश मिलेगा
ये बोला मंत्री  जी ने है
टेंडर भरा भतीजे ने है
नियमो को करके अनदेखा
देना होगा उसको ठेका
उनका काम पड़ेगा करना
परेशान होवोगे  वरना
नहीं किया तो ट्रांसफर होते
करने पड़ते है समझौते  
लड़का,लड़की हुए सयाने
एक दूसरे को ना जाने
जब उनका विवाह होता है
शादी भी एक समझौता है
तज कर घर को मात पिता के
नए ,पराये घर में आके
रंगना पड़ता नए रंग में
जीना पड़ता नए ढंग में
समझौते करने है सबसे
सास,ससुर से और ननद से
परिवार ,सुखमय तब होते
करने पड़ते है समझौते
इस समझौते के ही मारे
भीष्मपिता  रह गए कुंवारे
मत्स्य भेद कर,जीत स्वयंबर
अर्जुन लाये ,द्रौपदी को घर
समझौते ने करी ये गती
पांच पति में बंटी द्रौपदी
राम और रावण युद्ध हुआ जब
साथ आई वानर  सेना सब
समझौता,सुग्रीव ,राम का
रावण वध में ,बना काम का
युगों युगों से देखा  होते
करना पड़ते है समझौते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


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