लब-प्यार से लबालब
चाँद जैसे सुहाने मुख पर सजे,
ये गुलाबी झिलमिलाते होंठ है
खिला करते हैं कमल के फूल से,
जब कभी ये खिलखिलाते होंठ है
ये मुलायम,मदभरे हैं,रस भरे,
लरजते हैं प्यार बरसाते कभी
दौड़ने लगती है साँसें तेजी से,
होंठ जब नजदीक आते है कभी
प्यार का पहला प्रदर्शन होंठ है,
रसीला मद भरा चुम्बन होंठ है
जब भी मिलते है किसी के होंठ से,
तोड़ देते सारे बंधन होंठ है
अधर पर धर कर अधर तो देखिये,
ये अधर तो प्यार का आधार है,
नहीं धीरज धर सकेंगे आप फिर,
बड़ी तीखी,मधुर इनकी धार है
मिलन की बेताबियाँ बढ़ जायेगी,
तन बदन में आग सी लग जायेगी
सांस की सरगम निकल कर जिगर से,
सब से पहले लबों से टकरायगी
उमरभर पियो मगर खाली न हो,
जाम हैं ये वो छलकते,मद भरे
लब नहीं ये युगल फल है प्यार से,
लबालब, और लहलहाते,रस भरे
मुस्कराते तो गिराते बिजलियाँ,
गोल हो सीटी बजाते होंठ है
और खुश हो दूर तक जब फैलते,
तो ठहाके भी लगाते होंठ है
सख्त से बत्तीस दांतों के लिए,
ये मुलायम दोनों ,पहरेदार हैं
हैं रसीले शहद जैसे ये कभी,
लब नहीं,ये प्यार का भण्डार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक ख़त बीते लम्हों के नाम... संध्या शर्मा
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एक ख़त लिखना चाहती हूँ मैं,
उन गुजरे पलों के नाम,
जो छू गए थे मन को कभी
और खो थे वक़्त के अंधेरों में।
काग़ज़ पे उतर आएँगे,
कुछ धुंधले से चेहरे,
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6 घंटे पहले