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बुधवार, 12 सितंबर 2012

चीपट-घिसे हुए साबुन की

चीपट-घिसे हुए साबुन की

घिसे हुए साबुन की चीपट,

न पकड़ में आती है,न काम में आती है
या तो यूं ही गल जाती है,
या व्यर्थ फेंकी जाती है
मगर उस घिसी हुई चीपट को,
अगर नए साबुन के साथ चिपका दो,
तो आखरी दम तक काम आती है
बुजुर्ग लोग भी,
घिसे हुए साबुन की चीपट की तरह है,
उम्र भर काम आते है
और बुढ़ापे में,चीपट से क्षीण हो जाते है
नयी पीढियां यदि नए साबुन की तरह,
उन्हें अपने साथ प्यार से चिपका ले,
तो उम्र भर काम आते है
वर्ना चिंताओं से गल जाते हैं,
या फेंक दिए जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


एक काम कर दूँ

सोचता हूँ मैं एक काम कर दूँ,

ये रूत ये हवा तेरे नाम कर दूँ,

हाजिर कर दूँ चाँद-तारों के तेरे कदमों में,

जुगनुओं को भी तेरा कद्रदान कर दूँ |

लाखों फूलों से तेरा हर राह भर दूँ,
ले बहारों का शमा तेरे बांह भर दूँ,
ख़ुशबुओं को समेट कर उड़ेल दूँ तुझमे,
सौंदर्य से हर रिश्ता तेरा निर्वाह कर दूँ |

जो न हुआ कभी भी वो आज कर दूँ,
तेरे लिए इस जग को भी नाराज कर दूँ,
जमाने भर की मुस्कान बांध दूँ तेरे आँचल में,
तेरे लिए नए संसार का आगाज़ कर दूँ |

ख्वाबों की दुनिया में तेरा द्वार कर दूँ,
खुशियाँ तेरी अब एक से हज़ार कर दूँ,
एक काम कर दूँ, जहां रोशन कर दूँ,
इज़हार-ए-चाह आज सरे बाज़ार कर दूँ |

मंगलवार, 11 सितंबर 2012

ये पर्वत हैं

               ये पर्वत हैं

इन्हें न समझो तुम चट्टानें, इन्हें न समझो ये पत्थर है

ये सुन्दर है,ये  मनहर है ,झरझर झरते ये निर्झर  है
धरती माँ के स्तन मंडल,ये तो बरसाते अमृत है
                                        ये पर्वत है
हरे भरे हैं,मौन खड़े है,विपुल सम्पदा के स्वामी  है
तने हुए सर ऊंचा करके,निज गौरव के अभिमानी है
कहीं बर्फ से आच्छादित है,कहीं बरसती निर्मल धारा
कहीं अरण्य,कहीं भेषज है,सुन्दर हरित रूप है प्यारा
इनकी कोख भरी रत्नों से,कहीं स्वर्ण है,कहीं रजत है
                                       ये पर्वत  है
हिम किरीट से चमक रहे है,रजत शिखर  आलोकित सुन्दर
सूरज की किरणे भी सबसे,पहले इन्हें चूमती  आकर
कहीं देवियों के मंदिर है,कहीं वास करते  है शंकर
ये उद्गम गंगा यमुना के,इनमे ही है मानसरोवर
ये सीमाओं के प्रहरी है,अटल,अजय है,दुर्गम पथ है
                                      ये पर्वत है
मानव देव और दानव भी,काम सभी के आते है ये
अमृत मंथन को मेरु से,मथनी भी बन जाते है ये
नींव बने प्रगति ,विकास की,इनकी चट्टानों के पत्थर
किन्तु धधकता है  लावा भी,ज्वालामुखी ,सीने के अन्दर
मानव ने कर दिया खोखला,बहुत दुखी है आहत है
                                     ये पर्वत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


मगर माँ बस एक है

             मगर माँ बस एक है

कई तारे टिमटिमाते,आसमां में रात भर,

                          मगर सूरज एक है  और चंद्रमां बस एक है
कहने को तो दुनिया में कितने करोड़ों देवता,
                           मगर जो दुनिया चलाता,वो खुदा बस एक है
कई टुकड़ों में गयी बंट,देश कितने बन गए,
                           ये धरा पर एक ही है,आसमां भी एक है
 कई रिश्ते है जहाँ में,भाभियाँ है चाचियाँ,
                         बहने है,भाई कई है ,मगर माँ  बस एक है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

रात दिन कुछ नहीं देखा,उम्र के सैलाब में

जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

रातदिन खटते रहे बस लक्ष्मी की चाह में

मुश्किलें थी,दिक्कतें थी,उन्नति की राह में
             मगर हम पिसते रहे
             एडियाँ   घिसते  रहे
सिर्फ दौलत और पैसा ही बसा था   ख्वाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

पंडितों को जन्मपत्री दिखा किस्मत पूछते

आश्रम,दरगाह,मंदिर, हम सभी को पूजते
              सभी से लुटते रहे
              और हम जुटते रहे
कभी टोने टोटके में,कभी पूजा ,जाप में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

सुख नहीं कोई उठाया,मुफलिसों से हम जिये

बहुत कुछ हमने कमाया,मगर सब किसके लिये
                उम्र के इस मोड़ पर
                गए सब संग छोड़ कर
इस बुढ़ापे में सहारा,कोई भी ना साथ में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



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